Translate

Featured post

क्षेत्रीय सुरक्षा , शांति और सहयोग की प्रबल संभावना – चीथड़ों में लिपटी पाकिस्तान की राष्ट्रीयत

“ क्षेत्रीय सुरक्षा , शांति और सहयोग की प्रबल संभावना – चीथड़ों में लिपटी पाकिस्तान की राष्ट्रीयत ा “ —गोलोक विहारी राय पिछले कुछ वर्षों...

Monday, 30 October 2017

समीक्षा

दौड़ लगाते सोच
जिसकी प्रतिछवि
मन में उठते भाव की
वे तरंगें ही हैं जैसे
लड़ रही बाज़ से
एक स्याह भूरी चिड़िया
अपने रक्त की उजास में
जिसकी परछाई
एक उफनती नदी है

मैं दूरी से नहीं
देरी से डरता हूँ
जो घटित होना चाहता है
और सिर्फ स्मृति में नहीं
इस उधेड़बुन में कि
पहल कौन करेगा

जो सोच है
जो भाव है
मर जाते हैं
साहस की कमी से
कई बार तो मरते हैं
मौसम की उमस से
या अत्यधिक नमी से
जो शब्द, भाव, सोच
जो मरते नहीं ठंड या
ताप की प्रचंड दहक से
वे मर जाते हैं
मौसम की अतिवृष्टि से

अहर्निश लम्बी
बात सोच के बाद
हम लौटना चाहते हैं
अपने अपने खेलों में
जहाँ दिन में
किये जाने वाले
सभी काम
अपनी पूर्ण सूची के साथ
उजाले के सङ्ग टँगे हैं

जब कि
कच्चे सूत सा जीवन
खंजर सम्भाल तराशता
दूर बैठा वक़्त
पास बैठे ईश्वर से
मनुहार कर रहा होता
इस बार मेरे बीच में
मत आना

0 comments: