Translate

Featured post

तंग गली शहर का

बरबस उतारने लगे, नाग असर जहर का। कंगन कलाई की, पूछती भाव खँजर का। ज़िंदगी! मैंने देखी, बार- बार कई बार, पुजारी अमन के, पर नोचते कबूतर का। ...

Sunday 22 November 2020

तंग गली शहर का

बरबस उतारने लगे, नाग असर जहर का। कंगन कलाई की, पूछती भाव खँजर का। ज़िंदगी! मैंने देखी, बार- बार कई बार, पुजारी अमन के, पर नोचते कबूतर का। करतूत अब बखानती, तंग गली शहर का ....
कहते कहानी भौंरे, कलियों के कहर का। काँटे लगाते फूलों पर, मरहम नश्तर का। शतरंजी प्यार में, पिट गए मोहरे सभी, दिखाकर वजीर, चलती गयी चाल नज़र का। करतूत अब बखानती, तंग गली शहर का ...
करतूत अब बखानती, तंग गली शहर का। उगलने लगती भँवरी, राज अब लहर का। तरसती रही नदिया, दरिया से मिलने को, बनकर दीवार खड़े, रहबर अब डगर का। करतूत अब बखानती, तंग गली शहर का ...
Read more »

Saturday 29 August 2020

अनुच्छेद 370 की समाप्ति : एक वर्ष बाद

५ अगस्त को अनुच्छेद ३७० की समाप्ति का एक वर्ष पूरा होगया । एक वर्ष में वहाँ क्या बदला इसका आकलन रोचक होगा।दरअसल १ वर्ष का समय बदलाव की पूरी तश्वीर को बयां नहीं कर सकती, वह भी कोरोना महामारी के समय जब पूरा तंत्र पिछले ६ महीने से उसी में जुझा हुआ है। फिरभी परिवर्तन की कई बानगियाँ दिखाई दे रही है। अगर इसको खंडो में बाँट के देखे तो इसका विस्तार राजनितिक, समाजिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक ढांचों के तहत किया जा सकता है। पहला राजनीतिक जिस विधान सभा में शेख अब्दुल्लाह ५ नवंबर को भाषण देते हुए अनुच्छेद ३७० की महिमा गाथा रची थी जिसमे उन्होंने कहाँ था कि भारतीय मुसलमानो के लिए यह अनुच्छेद धर्म-निरपेक्षता का आईना होगा, सब जातियों के लिए एक सामान ब्यस्था बनेगी और निरंतर विकाश की गति को बल मिलेगा। लेकिन हुआ ठीक इसके विपरीत। सब कुछ टूटता गया।राजनीति घरों और कुटुम्बों तक सीमित हो गया। चंद अबदुल्लाह के परिवार और बाद में चलकर मुफ़्ती कुटुंब जम्मू कश्मीर की राजनीति को अपना पुस्तैनी ठिकाना बना लिया। अगर तथ्यों और सामाजिक रिश्तो को राजनीति से जोड़ के देखा जाये तो कई बातें और तथ्य दिखाई भी देते है। दिल्ली के राजनीतिक कांग्रेस घरानो में शादियाँ भी रचाई गयी. अगर मोटे तौर पर यह कहाँ जाये कि नेशनल कॉन्फ्रेंस की सत्ता भारतीय संसद से कम नेहरू- गाँधी परिवार के आपसी रिश्तों पर चलती थी। ३७० के साथ पुश्तैनी राजनीति का अटूट बंधन टूट गया। उसके साथ अपनी सुरक्षा के लिए बनाये गए हुर्रियत नेताओं का जमावड़ा भी कमजोर पड़ गया। दशकों से इनकी मिली जुली दुकान चलती थी। जिसमे अलगाववादी संगठन भी शामिल थे। उनकी पहुँच पाकिस्तान तक थी। ये सब कुछ ३७० के साथ बदल गया। लोगो में एक नए विश्वास और उमंग उभरकर सामने दिखाई दे रहा है कि जब कभी भी जम्मू कश्मीर में चुनाव होगा, उनकी अपनी आवाज होगी जो आम जान से निकलकर आएगी। दूसरा परिवर्तन सामाजिक ढांचे के रूप में हो रहा है। अनुच्छेद ३५ए की आड़ में वहाँ की सरकार अपने राजनीतिक फायदे के लिए समाज के कई वर्गों को हासिये पर धकेल दिया। राज्य की सेवाओ और नौकरियों से उन्हें बेदखल कर दिया। घाटी के भीतर हिन्दू समुदाय को इतना डराया धमकाया गया कि वह लोग वैली से बाहर आकर शरणार्थियों कि तरह रहने के लिए अभिशप्त हो गए। वैसे लोगो की पुनर्वसन, पुर्स्थापना की कोशिश की जा रही है। पिछले दिनों गृह मंत्रालय ने एक आदेश जारी कर यह सुनिश्चित किया है कि १५ वर्षो से रहने वाले लोगो को जम्मू कश्मीर की डेमोसाईल प्रदान की जाएगी। वहाँ से १०वीं और १२ पास करने वाले विधार्थियो को भी इसकी सुविधा दी जाएगी। साथ ही केंद्रीय कर्मी के रूप में काम करने वाले लोग जो पिछले १० सालो से वहाँ रह रहे है उनको भी उसी श्रेणी में रखा जाएगा। यह बदलाव उनके सोंच को मजबूत करेगा। एक सर्वे के अनुसार लोगो के बीच लगन बढ़ी है, अब उन्हें डर नहीं है कि मेरा अर्जित धन सम्पदा छिन लिया जाएगा। श्यामा प्रसाद मुखर्जी जब १९५३ में अनुच्छेद ३७० का विरोध करते हुए वीर गति को प्राप्त हुए थे उस समय भी उनकी एक मांग थी, वह थी एक पहचान की. एक देश, एक विधान और एक संबिधान। जिस सविधान सभा में ३७० अनुच्छेद पर बहस हो रही थी उसमे श्यामा प्रसाद का यही रुख था। कश्मीर में पहचान को लेकर दलगत राजनीति की शुरुवात नहीं होनी चाहिए। वह भारत का अभिन्न अंग है, उसका स्वरुप भी वैसा ही होना चाहिए। लेकिन नहीं बन पाया। ३७० ने सांस्कृतिक विरासत को भी कमजोर किया। लोगो का सम्बन्ध क्षेत्र और जाति के रूप में बनने लगा। गरीबी और अमीरी भी राजनीतिक घरानो की नजदीकियों के आधार पर पनपने लगा। एक रिसर्च सर्वेक्षण के आधार पर पिछले ४ दशकों में ठेकेदारी केवल उन्हें ही मिलती थी जो अब्दुल्लाह परिवार के नजदीक थे। ठीक यही हालत मुफ़्ती के शासन कल में हुआ। ब्यापार, टूरिस्म इंडस्ट्रीज भी राजनीतिक रूट से होकर गुजरती थी।
लेकिन अब हालत बदल रहे है। वित् मंत्री ने ८०,००० हज़ार करोड़ की सहायता जम्मू कश्मीर को दी है। जिसमे एक आई.आई.टी और एक आई.आई.एम् को स्थापित करना है। एक एम्स की भी शुरुवात होगी। कश्मीर में पीजी पास करने के बाद २ लाख से भी ज्यादा युवक बेरोजगार बैठे हुए है। रोजगार की तलाश में दर दर की ठोकरे खाते फिर रहे है। उनमे से कई लोग हतासा की स्तिथि में आतंकियों के साथ भी मिल जाते थे। पिछले कुछ सालो से किस तरह से स्कूली बच्चो को पथरबाज बनाने की साठगांठ की गयी। कुछ पैसे के खातिर अबोध बच्चों में देश के विरुद्ध लड़ने के लिए उकसाया गया। ३७० के खत्म होते ही वह सबकुछ बंद हो गया है। तीसरा परिवर्तन जम्मू कश्मीर के बाहर भी दिखा। १९८९ के उपरांत जिस तरीके से अलगववाद एक सुनयोजित इंडस्ट्री की तरह कश्मीर में पनपने लगी, बुहरान वाणी और संसद पर आतंकी हमले के अपराधी को हीरो बनाया गया। ताज्जुब था भारत की एकेडमिक संस्थाए जो देश के लोगो के टैक्स पर चलती है उसी देश के भीतर घुसपैठ की साजिश उन्ही पैसो से रची जाती थी। सैकड़ो सेमिनार दिल्ली के जेनयू और दिल्ली विश्वविद्यालय में किये गए जिसमे हुर्रियत का नेता आकर कश्मीर से भारत को अलग करने की आवाज बुलंद कर चला गया। उसे हमारे एकेडमिक पुरोहित और चंद मीडिया के लोग लोकतंत्र की बुनियाद मानते थे। ३७० के हटने के बाद दिल्ली में कोई भी सेमिनार नहीं देखा जा सकता है जिसमे बुरहान वाणी जैसे लोगो की यश गाथा गयी जाता हो। वैसे इन सब चीजों पर पावंदी २०१४ से ही लग गयी थी। अनुच्छेद ३७० ने और पुख्ता कर दिया। प्रशासनिक तौर तरीके में भी मूल बहुत बदलाव देखा गया है। कई दशकों में भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच गया था। विकाश के नाम पर बन्दर बाँट था। इसलिए गरीबी भी तेजी से बढ़ी। आतंक की वजह से ब्यवसाय भी थम गया था। पर्यटन का केंद्र बंद हो गया। गोली और बन्दुक ने निरंतर बोट क्लब पर भी ताला जड़ दिया। अब धीरे धीरे लोगो में विश्वास की वजह से चीजे खुल रही है। फिरभी यह कयास लगाना की ७० वर्षो से जमा हुआ काई और जकरण एक साल में साफ हो जाएगा तो गलती होगी। बहुत सारे निर्णय इसलिए धीमी गति से चल रहे है कि कश्मीर भी कोरोना से जूझ रहा है। जिंदगी रुकी हुई है। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि जम्मू कश्मीर की जनता खुश है, उसे उम्मीद है कि नयी ब्यस्था में आतंक के लिए कोई जगह नहीं होगा। उनकी पहचान भी धूमिल नहीं होगा। जैसे पंजाब और बंगाल की अपनी पहचान दशकों बाद बानी हुई है, उसी तरह से उनकी सांस्कृतिक इकाई भी बनी रहेगी, यह केवल राजनीतिक षड्यंत्र मात्र भर है कि ३७० के हटने के साथ कश्मीर की मुलभुत पहचान धूमिल हो जाएगी। दरअसल कश्मीर में बदलाव का आकलन ५ वर्षो बाद ज्यादा सार्थक और तार्किक होगा। उम्मीद है कि केंद्र के द्वारा दिए गए रकम से जम्मू कश्मीर की थम सी गयी ब्यस्था पुनः खिल उठेगी।
Read more »

For a long times, China looked like this......
Read more »

Wednesday 6 May 2020

What will the Balkanisation map of China look like?

When Balkanisation occurred in China what would the most powerful states be?
Source:Zeshan Mahmood, studied Geography
Read more »

Tuesday 5 May 2020

If China balkanized (2027), how would it be divided ? यदि चीन 2027 में विघटित होगा तो उसका स्वरूप क्या होगा ?

If China balkanized (2027), how would it be divided ? यदि चीन 2027 में विघटित होगा तो उसका स्वरूप क्या होगा ?
Read more »

Friday 29 March 2019

No More Pakistan

* "Pakistan : Nationalism Without A Nation" — Christophe Jaffrelot * " Pakistan will be finished till 2024 " — Dr. Israr Ahmed, the great thinker of Pak * " Afghanistan and Pakistan together will become a political entity in future " — The End Of Earth by Robert D Kaplan Sardar Akhter Mengal resigned from Baloch National Party in 1998 in protest against the conduct of the Nuclear Test in Baloochistan because, he claimed, they had been decided without consulting him and the honour of the Baluchis was at stake. After the resigned, Mangel reverted back to his traditional Baluch nationalist discourse. In an interview to the Muslim he declared, for instance: 'We are forced to look for identity.' The trajectory of the Baluch Nationalist Movement comes as a reconfirmation of three key features of the ethnic issues in Pakistan. First, self-determination movement crystallize in reaction to the overgeneralized and authoritarian methods of the state ( as already noticed in the case of the movement for Bangladesh and Pakhtunistan, or Pakhtunkhwa).
The map of North West Frontier Country of Bharat Parishangh Second, the co-operation of the ethnic leaders or the making of alliances between their parties and national parties tend to defuse the centrifugal tendencies: this process reflects the integrative capacity of power that we have already underlined in the case of rural Sindh and NWFP( Khyber - Pakhtunkhwa & FATA). Third, the intensity of the nationalist feelings also depends upon the distribution of power and the socho - economic situation: this political economy of separatism, a nation which has obvious affinities with the theory that Ernest Gellner developed on the basis of other case studies , was already evident from the Pakistan Movement before 1947 and from all the ethnic Separatist Movements we have studied so far. The early 1970s when Bengali, Sindhis, Baluchis and Pathans were attracted to separatist movements. At that time, the ideology of Pakistan remained identified with the minority muslims of British India who had searched for a state to govern and even more with the Punjabis who had gradually dislodged the Mohajirs from political power. While the Bengali were further alienated by the over - centralization of the Pakistani State, and seceded in 1971, the Sindhis, the Baluchis and the Pathans, who had to suffer from the Punjabi domination too, eventually got more integrated when they secured some power or achieved upward mobility. The Punjabi domination is still very much resented, as evident from the protests against the second Sharif Goverment (1997-9) when not only the Prime Minister and 85 per cent of his ministers were from Punjab., " But also the President, Tarar, and for some time the Chief of the Army Staff, Jahangir Karamat. The domination of Punjab is almost inevitable during the democratization periods since more than half of the constituencies of the National Assembly ( 141General + 33 women out of 272 General + 60 women) are located in Punjab ( against 61+14 in Sindh, 51+9 in Khyber Pakhtunkhwa and 16 +4 in Balochistan). But it is also inevitable as the Army which rules the country is Punjabi - dominated. It is a universal truth. In October 1998, the opposition to the Punjabi 'hegemony' found a new expression in the establishment of the ' Pakistan Oppressed Nationalities Movement' ( PONM ). This anti-Punjab front, which has been initiated by ANP leaders, has separatist overtones and, furthermore, all its components, be they Pakhtun, Baloch, Sindhi, Muhajir, Taliban in FATA, Shumali in Gilgit- Galtiyan or Udabhandi in Muzaffarnagar ( Sharada pith Anchal) play the electoral game for your expansion and securities , and every time agitate for your identity, sovereignty to secure nationality. It asks for a truly federal system, proportional representation of all the provinces in the army as well as the administration and the creation of a Sraiki province. The Sraiki movement took shape in the 1970s when the speakers of Riasti ( in Bahawalpur), Multani ( in Multan) and Derajati ( in Dera Ghazi Khan) came to consider that they spoke the same language, an idiom called Shaili. This local identity come to undermine the regional , Punjabi identity. The Map of North-West Frontier countries of “Bharat-Parisangh”(भारत-परिसंघ)
Read more »

Thursday 16 August 2018

क्या आप कभी सोशल मीडिया में लोगों की राय से थक जाते हैं ?


क्या आप कभी सोशल मीडिया में लोगों की राय से थक जाते हैं?

ऐसा ही होता है।. यही कारण है कि गुणी लोग ब्लॉगिंग से प्यार करते हैं। एक ब्लॉग का विकास इतना अधिक रोचक और सामाजिक मीडिया में बहुत ही आनन्ददायक है अब तो जवाबदेह सभ्य समाज की धीरे धीरे एक धारणा विकसित हो रही है कि जो लोग ब्लॉग नहीं रखे हैं  या किसी पत्रिका से नहीं जुड़े हैं, दिलचस्प मंचों में भाग लेने या लेख लिखने के लिए , सोच की अपनी प्रक्रिया में वास्तव में गरीब है और अपने लेखन क्षमताओं पर एक जुल्म कर रहे हैं

आज ब्लॉगिंग की सोच में कोडिंग के ज्ञान, मेटा-टैगिंग, और भी अधिक की आवश्यकता है आज ऐसे लोगों की एक बड़ी भीड़ सोशल मीडिया में बढ़ गयी है, उन्हें लेकर यह सोचा जा सकता है कि क्या हम Facebook में लिखने के स्तर पर ग़ौर करते हैं? हम कैसे खुद को व्यक्त करे, पता नहीं है। ठीक से लिखना यह भी  पता नहीं है आज की  डिजिटल दुनिया में बुनियादी शिष्टाचार का पालन करते हुए इंटरनेट बंद नहीं किया जा सकता है आज सभी परेशान है और क़ीमती दिमाग की कोशिकाओं को भी अनायास  Facebook में बर्बाद कर रहे हैं।

क्या हमने कभी एक व्यक्ति जो केवल सामाजिक मीडिया में ही व्यस्त है, उससे ब्लॉगिंग के बारे में पूछा या बात की ? “हम सभी मूर्ख हैं”, माफ कीजिए , लेकिन यह सच है हमें कोडिंग html, मेटा टैग, जो करना आसान है के बारे में कुछ नहीं पता है

हम क्या हैं ? के रूप में सामाजिक मीडिया का उपयोग करें: एक उपकरण की तरह नहीं, मेरे मूल स्वभाव के एक मंच के रूप में, व्यापार के शब्दों के फैलाव और ही चैट के लिए आज हम केवल अपने सम्पर्कों और दोस्तों के साथ यहाँ चैट के लिए मेरे ब्लॉग और LinkedIn में मशगूल हैं मैं अपनी चेतना को उन सामाजिक मीडिया दुकानों से दूर रखना पसंद करता हूँ और बस उन्हें अपने मुख्य ब्लॉगिंग स्रोत के माध्यम से एक त्वरित सम्पर्कों ( instant connection ) के रूप में उपयोग करता हूँ।
मात्रा से अधिक गुणवत्ता आप सभी को खुशी और सफलता लाएगी

“ Quality over quantity will bring you happiness and success.”



Read more »

Wednesday 17 January 2018

जम्बूद्वीप (एशिया) का मानचित्र

जम्बूद्वीप का मानचित्र
जम्बूद्वीप ( वर्तमान एशिया)
जम्बूद्वीप (एशिया) का मानचित्र
Jamboodweep Map
Map of Jamboodweep (Asia)
संसार में जब से भी इतिहास लिखने की शुरुवात हुई , तब से आज तक में लिखे गए सभी इतिहासों में दुनिया की सबसे पुराना इतिहास की पुस्तक यदि कोई है तो वह पुराण ही है I सिर्फ एकमात्र पुराण ही है ! सृष्टि निर्माण के प्रारंभ से  तथा  महाभारत काल से पूर्व और बाद में भी यदि उन्नत मानव जीवन को धारण करने वाला कोई दुनिया का हिस्सा,द्वीप था तो वह केवल जम्बूद्वीप ही था ,जिसे आज का एशिया महाद्वीप कहते है|इसी का प्रारम्भिक अतिप्राचीन इतिहास अनेकानेक पुराण है|
            सभी जानते है कि असुर और दानवी प्रकृतियाँ अपने कठोर श्रम एवं पुरुषार्थ से अतुल्य शक्ति एवं सामर्थ्य अर्जित करती है | उस शक्ति , सामर्थ्य का अक्षय स्रोत्र भय, उत्पीडन, विनाश व शोषण होता है|उनका ज्ञान विज्ञानं भी उनके द्वारा किये जा रहे विनाश और संहार को रोक नहीं पाता है|वे दुसरे कि कृति,यश को नकारते है|यहाँ तक कि वे दुसरे के अस्तित्व को स्वीकार ही नहीं करते है| उसका शोषण ,उत्पीडन करते है|यहाँ तक कि अपने स्वार्थ अव अस्तित्व की रक्षा हेतु उसका सदैव के लिए नामोनिशान भी मिटा देते है | विनाश कर देते है|वे अपनी श्रेष्ठता को ही सर्वोच्च मानते है। दुसरे की श्रेष्ठता को नकारा घोषित कर देते है| कुछ ऐसा ही कमोवेश अमेरिका और यूरोप का इतिहास और प्रकृति रही है और है भी| एक समय ऐसा भी आता है कि इस अत्याचार ,दमन उत्पीडन का अंत इन आसुरी शक्तियों के विनाश व अंत के साथ निश्चित ही होता है| इस समय की कभी कभी लम्बी प्रतीक्षा करनी पड़ती है | वह समय प्रारंभ हो चूका है ,वह समय आ गया है |
              आज आवश्यकता है , जम्बूद्वीप , चाहे उसे जिस नाम से कहे कोई अंतर नहीं अपने अतीत व इतिहास से प्रेरणा प्राप्त करे , अपने भूले , ध्यान रहे जो बिखरा नहीं है , को पढ़े ,उस अतीत से उर्जा प्राप्त करे , वर्तमान की सारी कटुताओं को सुलझाकर विस्मृत कर ले । एक नई एकता , दृढ़ता, शांति  व संकल्प के साथ एक नए वातावरण में  एक नए युग का , एक नए विश्व का निर्माण करे , जो विश्व को इस संक्रांति, संक्रमण की बेला में मार्गदर्शन दे सके, एक नई दिशा दे सके| पर स्मरण रहे यह जबाब देही जम्बूद्वीप की है , विश्व से अपेक्षा न करे । अपेक्षा सद्समाज , सद्व्यक्ति, सद्चरित्र से की जाती है  |धूर्त, कुटिल, अत्यधिक चतुर-चालाक , क्रूर , शोषक, तथा उत्पीड़क से नहीं की जाती है,जो आज का अमेरिका व यूरपो है |
         एक नई दृढ़ता, एकता, संकल्प के साथ सुख- शांति के वातावरण में एक नए विश्व को दिशा देने की चिरप्रतीक्षित बेला में एक जबाबदेही के साथ ......................
    वह जम्बूद्वीप ..........**यस्य विश्वे हिमवन्तो महित्वा ! समुद्रे यस्य रसाभिदाहः  ! इमाश्च में प्रदिशो यस्यबाहू | कस्मैदेवाय हविषाविधेयं !
                              ***अत्रापि भारतं श्रेष्ठं जम्बूद्वीपे महामुने |
                                   यतो हि कर्म्भूरेषा ह्यातोंया भोगभुमयाह |


सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।

नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)


Jamboodweep Social & Cultural Security 
जम्बूद्वीप सामाजिक एवं सांस्कृतिक सुरक्षा


"Jamboodweep " --- "जम्बूद्वीप"
                    
     




Read more »

Saturday 6 January 2018

एशिया का वॉटर टॉवर - चीन का जल उपनिवेश

IMG_0085
तिब्बत एशिया की प्रमुख नदियों का स्रोत हैं | ये नदियाँ हैं: सिंधु, ब्रह्मपुत्र, सतलज, करनाली, अरुणकोशी. घघरा, मानस, दिबांग, लोहित, इरावदी, सालविन, मेकांग, यांगत्से तथा हुआंगहो | ये नदियाँ अंतर्राष्ट्रीय नदियाँ है | तिब्बत, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान, बंगलादेश, म्यांमार, थाललैंड, लॉस, कम्पुचिया, बियतनाम तथा चीन होकर बहती है | ये देश विश्व की घनी आबादी वाले उपजाऊ देश है | जहाँ आधी मानव जाति निवास करती है | ये नदियाँ एशिया के इन देशों की प्राणधाराएँ हैं | विश्व की 47 प्रतिशत जनसंख्या का ये नदियाँ भरण-पोषण करती है | ये नदियाँ एशिया के इन देशों की साझी विरासत है | (Comman Heritage) है चीन की बपौती नहीं |
ये नदियाँ Ecologically बहुत महत्वपूर्ण है | तिब्बत का पर्यावरण बहुत नाजुक है | तिब्बत के ECO system में कोई भी छेड़छाड़ होने से उसका दुष्परिणाम एशिया के सभी देशों को भोगना पड़ता है | चीन ने तिब्बत में जंगलों की अंधाधुंध कटाई करके, खनिज पदार्थों के लिए पर्यावरण का ध्यान न रखते हुये, अनियंत्रित खनन कर इन नदियों पर अनगिनत बांध बनाकर भूमि का over use, over grazing तथा गलत फसलें उपजाकर पर्यावरण की सोचनीय स्थिति पैदा कर दी है | इस कारण तिब्बत की नदियों के पानी को जंगलों के विनाश कर जल संग्रहण, जल को रोकने और थोड़ा-थोड़ा छोड़ने की क्षमता घटा दी है | इस कारण पर्यावरण तथा जल की कमी, भूक्षरण, सूखा, बाढ़, आदि की समस्याएँ बढ़ गई है और एशिया का वाटर टावर खत्म हो रहा है | पर्यावरण की कोई राष्ट्रीय सीमा नहीं है |
Strange Geological Phehomeon
तिब्बत से निकलने वाली नदियों के दो मुख्य water shed है | एक उत्त्तर पश्चिम में कैलाश मानसरोवर का दूसरा उत्त्तर-पूर्व आमनेमाछेन पर्वत का | कैलाशमानसरोवर में भगवान शंकर तथा देवी पार्वती का निवास माना जाता है | हिंदु, बौद्ध, जैन कैलाश मानसरोवर खण्ड की तीर्थ यात्रा, प्रदक्षिणा करते हैं | इसी तरह आमदो के आमनेमाछेन में तिब्बती देवता माछेन पोमरा का निवास माना जाता है | तिब्बत के लोग उनको अपना शुभचिंतक देवता मानते हैं | वे आमनेमाछेन की तीर्थ यात्रा के लिये जाते हैं | उसकी परिक्रमा करते हैं |
कैलाश मानसरोवर खण्ड से सिंधु, ब्रह्पुत्र, सतलज तथा करनाली नदियाँ निकलती है | उनका उद्वगम स्थान पास-पास ही है | पर वे अलग अलग दिशाओं में बहती हैं | सिंधु पहले पश्चिम फिर दक्षिण दिशा में बहती है | ब्रह्मपुत्र कैलाश मानसरोवर के पहले पूर्व-दक्षिण तथा फिर दक्षिण पूर्व की ओर बह जाती है | सतलज तथा करनाली दक्षिण की ओर जाती हैं |
IMG_0086
हिमालय – कैलाश पर्वत
भारत के इतिहास में अतिप्राचीन काल से हिमालय के प्रति बहुत आदर, संभ्रम, विस्मय, गर्व तथा श्रद्धा का भाव रहा है | हिमालय भारत माता का हिम क्रीट है | भारत की कला, संस्कृति, साहित्य, जीवन पद्धति, धन-धान्य तथा उत्तरी भारत की प्रमुख नदियों का स्रोत है | हिमालय की सर्वदा हिमाच्छादित उत्त्तरी श्रृंखला – हिमाद्री – भारत की उत्त्तरी सीमा है | विष्णु पुराण में कहा गया है कि उतरं यत् समुद्रस्य, हिमाद्रिश्चैय दक्षिणम तद्वर्ष भारते नाम भारती यत्र संतति
महाकवि कालिदास के कुमार संभव का प्रथम श्लोक है |
अत्युत्ररस्यां दिशि हिमालयों नाम नगाधिराज | दिनकर जी ने हिमालय के प्रति लिखा है : मेरे नगपति मेरे विशाल, साकार दिव्य गौरव विराट, मेरी जननी के हिमक्रीट……
हिमालय की हिममंडित उत्तरी पर्वत श्रेणी को हिमाद्री कहते हैं | यही भारत की उत्त्तरी सीमा है | इसी हिमाद्रि में पवित्र कैलाश, पवित्र मानसरोवर है | कैलाश को अंग्रेजी में होली कैलाश तथा तिबब्ती में कांग रिम्पोछे कहते है | मानसरोवर को तिबब्ती में Tso Mapam कहते हैं | कैलाश मानसरोवर खण्ड हिन्दुओ, बौद्धों, जैनों के पवित्र तीर्थ स्थान है | कैलाश हिमाद्री की सबसे उत्त्तरी श्रृंखला के दक्षिणी Flank पर है | इसकी ऊँचाई समुद्र तट से 22, 281 फीट है | इसका घेरा 51.5 किलो मीटर है | इसके चतुर्दिक झेत्र से इसकी ऊँचाई 2133 मीटर है | पवित्र मानसरोवर कैलाश के आधार पर 18 मील दक्षिण है | मानसरोवर का घेरा 56 मील है | क्षेत्रफल 200 वर्ग मील है | गहराई 300 फीट है | कैलाश मानसरोवर का पूरा क्षेत्र कैलाश-मानस खण्ड कहलाता है | कैलाश मानस खण्ड का क्षेत्रफल 322 वर्ग किलो मीटर है | पूर्व से पश्चिम तक की लम्बाई 161 किलो मीटर है | कैलाश पर्वत पर भगवान शंकर तथा भगवती पार्वती का निवास है | इसे श्रृष्टि का केंद्र भी कहा जाता है | यही पुराणों में वर्णित ब्रह्म सरोवर है – गन्धमादन आदि चार पर्वतों के बीच |
दशावतारों के पहले के 24 अवतारों में प्रथम अवतार भगवान ऋषभ देव जी ने यही तपस्या कर ज्ञान की प्राप्ति की थी | भगवान श्रीकृष्ण, भीम तथा अर्जुन भी यहाँ पधारे थे | भारत के संत महात्मा लोग यहाँ तपस्या के लिये आते रहे हैं | कैलाश मानसरोवर खण्ड की परिक्रमा तथा यात्रा हिंदु, बौद्ध तथा जैन सभी करते हैं | यह हिंदु धर्म का अविछिन्न अंग हैं | मानसरोवर को श्रृष्टिकर्ता ब्रह्मा का मानस कहा जाता है | मानस से 8 किलो मीटर दूर राकसताल है | रावण की तपस्यास्थली | राकसताल का घेरा 124 किलो मीटर, गहराई 150 फीट है | बौद्ध मानसरोवर को अवन्तक – Beyond heat and trouble मानते हैं |
कैलाश मानसरोवर खण्ड उत्तरी भारत की प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल है | यही से सिंधु, ब्रह्मपुत्र, सतलज (शतदु – Fastes river of the World) है | करनाली का उद्गम यही है | कहते हैं कि गंगा जी का भी गुप्त उद्गम यही है |
यह अनोखी बात है कि उत्त्तर भारत की चार प्रमुख नदियों का उद्गम एक ही स्थान – कैलाश मानसरोवर की हिम नदियों से हुआ है और वे विभिन्न दिशाओं में बहती है | सिंधु उत्त्तर की ओर जाकर फिर पश्चिम की ओर, ब्रह्मपुत्र पूर्व की ओर जाकर फिर दक्षिण की ओर, सतलज दक्षिण की ओर जाकर फिर पश्चिम की ओर, करनाली दक्षिण की ओर | सिंधु का उद्गम स्थल 5183 मीटर पर, ब्रह्मपुत्र का 5,300 मीटर, सतलज का 5,200 मीटर | सतलज की लम्बाई 1448 किलो मीटर (900 मील) | पंजाब की पाँच नदियों में यह सबसे लम्बी नदी है |
पूर्वगामी ब्रह्मपुत्र में मानसरोवर तथा पे के बीच (1623 किलो मीटर) 14 नदियाँ उत्त्तर दिशा से आकर मिलती है | जिसमें प्रमुख है रोंगोछू, Key chhu, जियाम्बदा छू, तथा Po Tsango | ये नदियाँ पूरब बहने वाले शांको से 30 किलो मीटर उत्त्तर दिशा में जो हिमाद्रि श्रृंखला है – (Nenchentangla) जो मेन वाटरशेड है | वहीँ भारत के इतिहास पुराण के अनुसार भारत की उत्त्तरी सीमा है | कैलाश मानसरोवर खण्ड तथा पूर्वगामी ब्रह्मपुत्र के 30 किलो मीटर उत्त्तर तक का क्षेत्र भारत का भू-भाग है |
इसी तरह तीन महानदियाँ यांगत्से, मेंकांग, सालविन, आननेमाछेन क्षेत्र से निकलकर विभिन्न दिशाओं में बहती है | लेकिन तिब्बत के खाम प्रदेश तथा म्यांमार बोर्डर के निकट ये एक दूसरे के समानान्तर पांच डिग्री के अंतर पर बहते हैं | इनके (three riever) तीन समानांतर नदियों के पश्चिम अरुणाचल प्रदेश के सामने तीन बड़ी नदियाँ लोहित, दिवांग समानान्तर दक्षिण दिशा में अरुणाचल होकर असम में जाती है | लोहित तथा दिवांग के पश्चिम थोड़ी दूर पर अरुणाचल प्रदेश के सिंयाग जिले के सामने कैलाश से सीधा पूरब 1600 किलो मीटर आकर ब्रह्पुत्र अचानक दक्षिण की ओर मुड़ जाता है तथा लोहित और दिवांग के समानान्तर अरुणाचल होकर असम में चली जाती है तथा ये तीनों नदियाँ असम में सदिया के पास एकाकर होकर ब्रह्पुत्र के नाम से दक्षिण पश्चिम की ओर प्रस्थान करती है |
तिब्बतन वाटरशेड से निकलने वाली नदियों में एशिया की प्रमुख नदियाँ जैसे:- सिंधू (कुल लम्बाई-2900 किलो मीटर, जिसमें 800 किलो मीटर तिब्बत में है), सिंधू भारत की सात पवित्र नदियों-सप्त सिंधूओं में एक है | प्रातः स्मरणीय है | जिनका आह्वान स्नान के समय हम करते हैं | ‘गंगे च यमुने च गोदावरी, सरस्वती, नर्मदे, सिंधु, कावेरी जलेस्मन सन्निधं कुरु | इसके तट पर भारत की सभ्यता विकसित हुई | सिंधु पंजाब-सिंध (पाकिस्तान) के 80 प्रतिशत भाग को सींचती है | सिंध को सिंधु नदी का दान कहते हैं | सिंधु विश्व की उन दस नदियों में जिनका आगामी 20 वर्षो में सूख जाने की आशंका है | सिंधु बेसिन के 90 प्रतिशत वन काट डाले गये हैं | अब यहाँ केवल 0.4 प्रतिशत वन हैं | सिंधु बेसिन में चीन 60 मीटर से अधिक ऊँचाई के तीन डैम बना रहा है | सिंधु का तिब्बती नाम सिंगेखबाब है (सिंग मुखी) | ब्रह्मपुत्र (कुल लम्बाई-2897 किलो मीटर, जिसमें 1623 किलो मीटर तिब्बत में, कैलाश मानसरोवर के अपने उदगम से 1600 किलोमीटर तीर के तरह सीधा पूर्व की दिशा की ओर बहता हुआ यह हठात पे के पास दक्षिण की ओर मुड़कर एक तंग और गहरे Gorge में प्रवेश करता है। यह Gorge नामच्छा बरवा (25445 फीट ऊँचाई) ग्यालाफेरी (23450 फीट) पर्वत के बीच में है। यह विश्व का सबसे गहरा Gorge है। ब्रह्मपुत्र का यह मोड़ Great band कहलाता है । Tsangpo के Great band के पेमाको क्षेत्र से बहता हुआ कोरबो के पास भारतीय सीमा में अरुणाचल प्रदेश के सियांग जिला में प्रवेश करता है । कोरबो से लेकर अरुणाचल के Foothilsh पासी घाट तक गहरे Gorge से ही होकर गुजरता है । भारत की सीमा से पासी घाट तक जिस गौर्ज से यह गुजरता है उस गौर्ज की चौड़ाई 100 मीटर से लेकर 1000 मीटर तक है । भारत में प्रवेश करने के स्थान कोरबो से पासीघाट तक यह सियांग के नाम से जाना जाता है। सादिया में इसका मेल दिवांग तथा लोहित नदियों से होता है । यहाँ से इसका नाम ब्रह्मपुत्र हो जाता है।
असम में डिबुगढ़ के पास ब्रह्मपुत्र की चौड़ाई 10 किलो मीटर है | यहाँ से यह दो धाराओं में बहतती है जोरहट के पास इन दो धाराओं के मध्य में 100 किलो मीटर लम्बा विश्व का सबसे बड़ा नदी द्विप मांजुली है | भारत सरकार ने इस अनूठे द्विप के संरक्षक के लिये प्रयास करने का आरंभ कर दिया है | असम की वैष्णव सभ्यता तथा संस्कृति का भंडार कोष है |
गुवाहाटी के पास सराईघाट में ब्रह्मपुत्र की चौड़ाई 01 किलो मीटर है और एक ही धारा में बहती है | इसलिए ब्रह्मपुत्र में सबसे पहला रेल रोड पुल 1962 में सराईघाट में बना |
विदेशी मुसलमान आक्रमणकारियों ने असम में प्रवेश करने की कई बार असफल चेस्टाएँ की थी | चूंकि सराईघाट में ब्रह्मपुत्र की चौड़ाई सबसे कम है इसलिए विदेश आक्रमणकारियों ने सराईघाट को ही असम में प्रवेश के लिये चुना | पर उनके (तुर्क अफगान, पठान) बार-बार के आक्रमण को असम के वीरबांकुरे हिन्दुओं ने विफल कर दिया। असम में अंतिम मुस्लिम आक्रमण औरंगजेब के समय 1671 में हुआ। विशाल मुगल सेना ने सरईघाट में ब्रह्मपुत्र को पार कर असम में तथा असम द्वारा दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रवेश करने की अनेक चेष्टाएँ की पर वे विफल हो गयी |
1671 में औरंगजेब की विशाल सेना ने असम पर आक्रमण की पर वे ब्रह्मपुत्र को पार करने में मुगल सेना सफल नहीं हुई | 1671 की सराईघाट की लड़ाई इतिहास में प्रसिद्ध है | यही असम के लोगों ने लाक्षितबरफुकन के नेतृत्व में मुगल सेना को छापामार युद्ध में बुरी तरह पराजित किया | लक्षितबरफुकन की तुलना वीर शिवाजी से की जाती है। सराईघाट की पराजय के बाद मुसलमानों ने असम की तरफ रुख करना छोड़ दिया और इस्लाम का प्रचार असम, वर्मा, लॉस, कम्पुचिया, थाईलैंड तथा वियतनाम में नहीं हो पाया |
यदि मुगल सेना 1671 में असम तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रवेश करने में सफल हो गयी होती तो असम तथा दक्षिण पूर्व एशिया के देशों का वहीँ हस्र होता, जो इण्डोनेशिया का हुआ | इण्डोनेशिया जो सैकड़ों वर्षों तक हिन्दू / बौद्ध देश था। फिर बाद में मुस्लिम आक्रमण के कारण मुसलमान हो गया | उनका बलात धर्मपरिवर्तन कर मुसलमान बना दिया गया | आज इण्डोनेशिया की 86 प्रतिशत आबादी मुसलमान है और 09 प्रतिशत इसाई है तथा शेष 05 प्रतिशत हिन्दू तथा बौद्ध हैं | हिंदु संस्कृति का प्रभाव इण्डोनेशिया में अभी भी स्पष्ट है | इण्डोनेशिया का बाली द्विप हिंदु है | इण्डोनेशिया की भाषा Bahasa इण्डोनेशिया तथा मलाया की भाषा संस्कृत से प्रभावित है | मुस्लिम इण्डोनेशिया में रामायण एवं महाभारत का अभी भी बहुत प्रभाव है | इण्डोनेशिया के भूतपूर्व राष्ट्रपति सुकरणो का कहना था कि 2000 वर्ष पहले भारत के लोग इण्डोनेशिया आये। जो उस समय यवद्विप तथा स्वर्णद्विप कहलाता था तथा वहाँ शक्तिशाली हिंदु राज्य स्थापित किये | इन हिदु राज्यों के नाम थे – श्रीविजय, माताराम तथा महामजापहित |
ब्रह्मपुत्र 278 अरुणाचल में तथा 640 किलो मीटर असम में, 354 किलो मीटर बंगला देश में इसका तिब्बती नाम यारलुंग सांगपो, यामचोक खबाब | त्सांगपो का अर्थ – Purifir – पवित्र करने वाला है | ये तिब्बत, भूटान तथा आसम में पवित्र महानदी माना जाता है | ब्रह्मपुत्र तिब्बत को दक्षिणी एशिया से जोड़ता है | यह तिब्बती सभ्यता का पालना (Cradle) कहा जाता है | यह विश्व की सबसे ऊँचे धरातल (13 हज़ार फ़ीट की ऊँचाई) पर बहने वाली नदी है । इसी की धारा पर चीन Great Band में अति ख़तरनाक मानवता के नाश का एक भयंकर राक्षस के प्रतिरोपण बाँध बनाकर डैम का निर्माण कर चुका है।
IMG_0088
सालविन
सालविन की कुल लम्बाई है 2800 किलो मीटर जिसका 1000 किलो मीटर तिब्बत में है | इसका तिब्बती नाम ग्यामो डुल छू, चीनी नाम है नू जियांग | तिब्बत के नागछू के पास ही कुछ झीलें है | यह सेंट्रल तिब्बत खाम, वर्मा, पश्चिमी थाईलैंड होकर बहती है | यह मेकांग के समानान्तर बहती है | यहाँ एक प्राकृतिक अजूबा करिश्मा देखनों को मिलता है | एशिया के तीन महान नदियाँ यांग्तसे, सालविन तथा मेकांग एक दूसरे के बहुत निकट से अलग-अलग गौर्जो में समानान्तर बहती है | इन समानान्तर नदियों के गौर्ज को यूनेस्को द्वारा वर्ल्ड हेरीटेज साईट घोषित किया गया है | प्राकृतिक के रत्न | इसके बावजूद चीन की सरकार हेरीटेज साईट के निकट व्यवसायी गतिविधियाँ चला रही है | खनिज पदार्थो का खनन कर रही है | बांध बना रही है जिससे वर्ल्ड हेरीटेज खतरे में पड़ गया है | यूनेस्को ने चीन की सरकार से वर्ल्ड हेरीटेज के आस पास अवांछित कार्यवाई नहीं करने का अनुरोध किया था | पर चीन की सरकार ने यूनेस्को की आपत्ति की कोई परवाह नहीं की | चीन अपने दम्भ में किसी का परवाह नहीं करता | चाहे वह एशिया के पड़ोसी देश हो या यूनेस्को हो | वह अपनी दादागिरि चलाता रहता है |
मेकांग
मेकांग का तिब्बती नाम है ‘जा छू’ तथा चीनी नाम ‘चांग जियांग’ इसकी लम्बाई 4500 किलो मीटर है। जिसमें 1500 किलो मीटर तिब्बत में है | यह तिब्बत की नदियों में सबसे अधिक अन्तर्राष्ट्रीय नदी है | छः देंशो से होकर बहती है | यह देश है :- तिब्बत, चीन (ह्यूनान) लाओस, वर्मा, थाईलैंड, कंपूचिया तथा वियतनाम | मेकांग में बड़े जहाजों के आवागमन की सुविधा के लिये चीन ने मेंकांग के पेट में जहाँ–तहाँ जो बड़ी बड़ी चट्टानें थी, उनको बम से उड़ाकर नदी को बड़े जहाजों के आवागमन के लिये योग्य बनाया | इस नदी की जीव विभिन्नता (Bio-Diversity) की अपूरणीय क्षति हुई |
इस नदी पर चीन ने 30 डैम बनाये है और 14 से अधिक बांधो का कैशकेड डैम भी बनाया है | लॉस आदि देशों ने इन बांधों के बनने से उनको होने वाले नुकसान के कारण चीन से अपनी चिंता जाहिर की थी, पर चीन ने कोई परवाह नहीं की | अपना निर्माण जारी रखा | चीन के वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने भी चीनी सरकार से अनुरोध किया था कि वह मेकांग के पर्यावरण तथा जैव विभिन्नता (Bio-diversity) की रक्षा करें पर उनका अनुरोध निष्फल हुआ |
मेंकांग को साउथ इस्ट एशिया का हृदय कहते है | यहाँ 60 मिलियन लोग रहते हैं जो मेकांग पर खाद्य पदार्थ, जल तथा आवागमन के लिये निर्भर हैं | मेकांग में मछलियों की जितनी प्रजातियाँ पायी जाती है वह उतनी आमेजन नदी के अलावा विश्व की किसी और नदी में नहीं पाई जाती है | यहाँ छोटी से छोटी मछली से लेकर 300 किलो ग्राम तक मछली, 14 फीट डायना वाली मछलियाँ भी पाई जाती है | इसलिये मेकांग को थाईलैंड में माईखंग कहते हैं | माई का अर्थ हुआ थाई भाषा माँ होता है तथा खंग गंग का अपभ्रंस हैं | इस प्रकार माईखंग का अर्थ हुआ माँ गंगे |
चीन द्वारा मेकांग नदी पर दक्षिण – पश्चिम ह्यूनान प्रान्त में अंधाधुंध बाँध बनाने से चीन के पड़ोसी देशों में भयंकर भय व्याप्त हो गया है | थाईलैंड, लॉस, वियतनाम तथा कम्पुचिया देशों ने 04 अप्रैल 2010 को चीनी सरकार से अपनी चिंता अवगत कराने का निश्चय किया है |
इन चार देशों ने 1995 में मेकांग River commission (MRC) बनाया । MRC का निर्माण Joint Management के लिये किया गया था | पर चीन इसमें शामिल नहीं हुआ | जैसे MRC देशों की चिंता है वैसी ही चिंता विगत वर्षो में भारत ने भी चीन से जाहिर की थी कि Yarlong TSangpo पर चीन द्वारा अनेक बांधो के निर्माण का दुष्प्रभाव भारत पर भी पड़ रहा है तथा और भी पड़ेगा | पर चूँकि इन नदियों के उपरी हिस्सों पर चीन का कब्जा है इसलिये चीन इन नदियों के निचले भागों वाले देशों की चिंता की परवाह नहीं करता है | इस मामले में अन्तर्राष्ट्रीय कानून भी लचर है |
थाईलैंड के प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक रूप से मार्च 2010 कहा था कि मैं अपने विदेश मंत्री से इस संदर्भ में चीन से बात करने के लिये कहूँगा क्योंकि चीन की दादागीरी से मेकांग के बेसिन में रहने वाले छ: करोड़ लोग दुष्प्रभावित है | चीन ने 2011 तक मेकांग पर चार बांध बना लिये थे तथा पाँच और निर्माणाधीन थे जिसे अबतक शायद पूर्ण भी कर लिया हो | उनमें से एक Xiowan Dam है जो विश्व का सबसे (292 मीटर ऊँचा) ‘ऊँचा’ डैम है | इस बांध पर चीन ने चार Billian अमेरिकी डॉलर खर्च किया है |
United Nations Environment programme ने इस संदर्भ में चेतावनी डी है कि इन बाँधों से निचले देशों के जल प्रबंधन तथा सुरक्षा को खतरा है |
IMG_0087
Xiowan Dam
यांगत्से
यांगत्से का चीनी नाम है चांग झियांग तथा तिब्बती नाम ड्रिछू है | यह विश्व की तीसरी सबसे लम्बी नदी है | इसकी कुल लम्बाई-6380 किलो मीटर है | उदगम स्थान तिब्बत के आमदो प्रदेश का थांगला पर्वत श्रृंखला जिसकी ऊँचाई 4900 मीटर है | यह अपने उदगम स्थान से पूर्व, दक्षिण-पूर्व फिर दक्षिण चीन के यूनान के आमदो तथा खाम में आ जाती है | वहाँ से फिर दक्षिण-पश्चिम जाकर चीन के सिंचुआन प्रान्त में प्रवेश करती है | वहाँ से वह वह शंघाई होते हुये पूर्वी चीन सागर में मिल जाती है | यह 1.8 विलियन वर्ग किलो मीटर भूमि को सींचती है | यह भी विश्व की उन दस नदियों में है जिनका अस्तित्व खतरे में है | यांगत्से इलाके में सालविन, मेकांग ब्रह्मपुत्र तथा Tsangpo के Catchment की तरह तिब्बत में बड़े प्राचीन घने जंगल थे | इन जंगलों के वृक्ष दो-ढाई सौ साल पुराने थे | इन जंगलों की अंधाधुंध कटाई कर चीन ने इस नदियों का सत्यानाश कर दिया है | इससे बाढ़, सिलटेशन तथा प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो गई है | जिसका प्रभाव नीचे वाले देशों तथा चीन पर भी पड़ रहा है |
हुआंगहो
हुआंगहो तिब्बत से ही निकलती है तथा दक्षिणी पूर्व एशिया तथा चीन को सींचती है | चीनी भाषा में हुआंगहो तथा तिब्बती भाषा में इसका नाम है ‘माछू’ | अंग्रेजी में इसे Yello river भी कहते हैं, क्योंकि इसके पानी में पीली मिट्टी घुलकर आता है जिससे पानी का रंग पीला रहता है | इसकी लम्बाई 5,461 किलो मीटर है | जिसमें 1100 किलो मीटर तिब्बत में है | इसका उदगम स्थान आमनेंमाछेन ग्लेशियर तिब्बत के आमदो प्रान्त में है | इस नदी में विश्व की सभी नदियों से अधिक सिल्ट आता है | अपने हाई सिल्ट लोड के कारण यह पावर जेनेरेशन के लिये अनुपयुक्त है | यह अत्यधिक प्रदूषित नदी है | चीन की 80 प्रतिशत नदिया बुरी तरह से प्रदूषित हैं | यह कोशी की तरह मनमौजी है | इसलिए इसको चीन का शोक भी कहते हैं | चीन की सभ्यता इसी नदी के तट पर विकसित हुई | इसके बेसिन में 20 करोड़ लोग निवास करते हैं | ये चीन का Bread Basket कहलाता है, लेकिन इस नदी के कारण बाढ़ से भी बहुत नुकसान होता है | यह चीन का वरदान भी है और अभिशाप भी है | इस नदी की 1931 की बाढ़ में चालीस लाख लोग मरे थे | चीनी लोग इस नदी को माँ के समान मानते हैं | इसके अपर बेसिन में बहुत सारे पनबिजली बाँध बनाये गये हैं | जहाँ पेट्रो केमिकल्स, एलमुनियम के कारखाने हैं | सन 2004 में इसकी उपरी हिस्से में 4.5 छोटे डैम और 12 बड़े डैम बनाये गये | जो 2010 में पूरे हो गये | बड़े बांधों से पर्यावरण की भी समस्याएँ खड़ी हो गई है | चीन की नेताओं की प्राथमिकता बड़े बांध बनाने की है | जो उनका नाम इतिहास में दर्ज करवायेंगे |
2007 में एक सर्वे में पाया गया कि पीली नदी का पानी न पीने योग्य है और ना मछलियों के रहने योग्य है और न ही खेती और उद्योग के लिये है | इस नदी के बेसिन में भूगर्भ जल का अत्यधिक उपयोग होता है | जिस कारण भूगर्भ जल का स्तर आधा मिल नीचे चला गया है और हर साल डेढ़ मीटर नीचे चला जाता है | बीजिंग में एक तिहाई कुएँ सूखे गये हैं | भूगर्भ जल के अत्यधिक उपयोग के कारण | इसलिए इस समस्या से निपटने के लिये चीन के नेताओं ने यह निश्चय किया है कि इस नदी का जल संकट राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) का विषय है,जिसका अविलम्ब समाधान आवश्यक है | इसी समस्या के समाधान के लिये चीन के शीर्ष नेताओं और चीन के नेतृत्व ने यह निर्णय लिया कि ब्रह्मपुत्र का पानी लाकर पीली नदी में मिलाया जाय जिससे उत्त्तरी चीन का जाल संकट दूर हो | भूगर्भ जल का जलस्तर उपर उठे तथा Yello River प्रदूषण मुक्त हो सके |
लेकिन अध्ययन के बाद पाया गया कि केवल ब्रह्मपुत्र का पानी इस समस्या से निबटने के लिये पर्याप्त नहीं होगा | इसलिये निश्चय किया गया कि ब्रह्मपुत्र के साथ ही साथ यांग्त्से, सालविन तथा मेकांग के पानी को भी एकत्र कर नहरों द्वारा Yellow River में मिलाया जाय जिससे ने केवल उत्त्तरी चीन की जाल समस्या का समाधान होगा बल्कि इनरमंगोलिया, मंचूरिया, सिंकियांग, जुंगर बेसिन, छपदहगपं जैसे शुष्क रेगिस्तान इलाकों को भी हरा भरा किया जा सकेगा | ये शुष्क इलाके औद्योगिक दृष्टी से चीन के लिये बहुत महत्वपूर्ण है |
पर आज चीन की चोरी और सीनाज़ोरी से एशिया की साँझी नदियों का पानी लूट की साज़िश का शिकार बन गया है और एशिया के वॉटर टावर को चीन अपना जल उपनिवेश बना लिया है।
तिब्बत से निकली नदियाँ
Read more »