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तंग गली शहर का

बरबस उतारने लगे, नाग असर जहर का। कंगन कलाई की, पूछती भाव खँजर का। ज़िंदगी! मैंने देखी, बार- बार कई बार, पुजारी अमन के, पर नोचते कबूतर का। ...

Wednesday 4 January 2012

ढाका में त्रिदिवसीय रवीन्द्र उत्सव

त्रिदिवसीय रवीन्द्र उत्सव बंगलादेश की राजधानी ढाका में रवीन्द्रनाथ टैगोर के १५० वीं जयंती के अवसर पर्मनाया गया ! इस उत्सव का आयोजन सुरेर धारा संगीत विद्यालय की शिक्षिका एवं रवीन्द्र संगीत की प्रख्यात गायिका रिजवाना चौधरी वन्या द्वारा किया गया ! प्रधानमंत्री शेख हसीना बंग वन्धु इंटरनॅशनल कन्वेंशन सेंटर में इस पर्व का उदघाटन की! इस अवसर पर सुरेर धारा द्वारा २२२२ नृत्य गीत और नाटक की 22DVD का एक एलबम श्रृंखला जारी किया गया ! 
                प्रख्यात अर्थ शाश्त्री अमर्त्य सेन ने श्रुति गीतवितान शीर्षक DVD का अनावरण किय१ कार्यक्रम में टैगोर एक गीत का एकल चरण गायन में १००० गायकों ने भाग लिया! इस सहस्त्रो कंठेय गायन का शीर्षक गायन भारतीय संगीत निर्देशक और प्रख्यात संगीतकार देव ज्योति मिश्र द्वारा शुरू किया गया! 
             उत्सव के उदघाटन समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री शेख हशीना ने कहा कि अब हम एक मुक्त वातावरण में रवीन्द्र गीत गाते है !जिसके लिए एक लम्बे समय तक संघर्ष कर बंगाली स्मिता एवं राज्य की स्थापना हुआ !अब हम अपने साहित्यिक कृतियों का अभ्यास कर सकते है!   सरकार भी पटिसार और शाहजहाँपुर में कविगुरु के यादों को बनाये रखेगी !उनकी यद् में रवीन्द्रनाथ के विचारों और आदर्शों के विस्तार के लिए रवीन्द्र विश्वविद्यालय की स्थापना करेगी !उनहोंने जोर देकर कहा कि जब तक बंगला भाषा और बंगाली संस्कृति जीवित है, तब तक वे बंग वासियों के दिल में जीवित रहेगें और तब तक बंगलादेश जीवित रहेगा !    


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Monday 2 January 2012

भारत वर्ष

भारत वर्ष 
1869-- Milchell 55-s-Asia
British Indian Empire 1909 Imperial Gazetteer of I ndia
               इतिहास साक्षी है , जब विदेशी शक्तियों ने अटोमन साम्राज्य पर आक्रमण कर उसका इतना टुकड़ा कर दिया कि आज इराक है , तुर्की है या एनी छोटे बड़े देश है, पर आज विश्व के मानचित्र से अटोमन साम्राज्य गायब है|कुछ ऐसा ही भारत के साथ हुआ | एक नहीं , दो नहीं, नौ- नौ टुकडे किया गया|फिर भी आज विश्व के नक़्शे पर भारत बचा हुआ है| इसे एक संयोग ही कहे , या ईश्वर की कृपा कहे , या इस भूमि की अपनी सुदृढ़ एवं बलशाली समाज का पुरुषार्थ और सनातन से काल से | चली आ रही गौरवशाली संस्कृति का प्रभाव कहे | १९ शताव्दी के ३० के दशक से जो विभाजन अंग्रेजों ने इस देश का करना शुरू किया वह ७० के दशक तक चलता रहा|अंततः मालद्वीप के विभाजन के साथ रुका | अफगानिस्तान, वर्मा, श्रीलंका, तिब्बत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान , बंगलादेश, और मालद्वीप अलग किया गया |भारत सहित कुल नौ (९) हिस्सों में विभाजित हो गया !  जो भी हो आज भी इन सभी देशों का प्राचीन इतिहास एक ही है, इनके पुरखे, कला,  संस्कृति, साहित्य, ज्ञान- विज्ञानं , एवं सामाजिक उत्सव सब साझे है | न पाकिस्तान कह सकता है कि पाणनी उसके गोद में उत्पन्न नहीं हुए और न भारत कह सकता है कि पाणनी उसके नहीं है |
           अतः जम्बूद्वीप , आर्यावर्त के अन्दर जो भारत वर्ष  था ! वह आज भारत सहित अपनी विकास एवं उन्नति का मार्ग तलास रहा है |जहाँ ज्ञान विज्ञानं और समाज निर्माण की पहली किरण पड़ी | इन सभी देशों का विकास, समृधि, एवं सुरक्षा के लिए शांति अत्यावश्यक है , भारत वर्ष के सांस्कृतिक एकता पर टिकी रह सकती है | भारत वर्ष के सांस्कृतिक एकता और गौरव विश्व को पता है ,जिसे विश्व की महाशक्तियां कभी भी स्वीकार न करेगी | पर इसके साथ यह विस्वाश  भी है कि एक न एक दिन हमारी एकता दृढ़ता के साथ कड़ी होगी , जो विश्व के समृधि व विकास में मार्गदर्शन करेगी |
अग्नि पुराण बड़े ही प्रमाणिक रूप से कहता है कि ...... क्षीरोदधेरूतरम यद् हिमाद्रेश्चैव दक्षिणं !                                                   
                                                                       ज्ञेयं तद भारतं वर्षं सर्वकर्मफलप्रदम !!  (अग्नि पुराण)
       विष्णु पुराण ..........अत्रापि भारतं श्रेष्ठं जम्बूद्वीपे महामुने ! यतो हि कर्मभूरेषा ह्यतोअन्या भोगभूमयः !!
भारत वर्ष ..........अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, तिब्बत, भूटान, म्यांमार, बंगलादेश ,श्रीलंका, मालद्वीप 
                                    



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जम्बूद्वीप

संसार में जब से भी इतिहास लिखने की शुरुवात हुई , तब से आज तक में लिखे गए सभी इतिहासों में दुनिया की सबसे पुराणी इतिहास की पुस्तक यदि कोई है तो वह पुराण ही है I सिर्फ एकमात्र पुराण ही है ! सृष्टि निर्माण के प्रारंभ से  तथा  महाभारत काल से पूर्व और बाद में भी यदि उन्नत मानव जीवन को धारण करने वाला कोई दुनिया का हिस्सा,द्वीप था तो वह केवल जम्बूद्वीप ही था ,जिसे आज का एशिया महाद्वीप कहते है|इसी का प्रारम्भिक अतिप्राचीन इतिहास अनेकानेक पुराण है|
            सभी जानते है कि असुर और दानवी प्रकृतियाँ अपने कठोर श्रम एवं पुरुषार्थ से अतुल्य शक्ति एवं सामर्थ्य अर्जित करती है | उस शक्ति , सामर्थ्य का अक्षय स्रोत्र भय, उत्पीडन, विनाश व शोषण होता है|उनका ज्ञान विज्ञानं भी उनके द्वारा किये जा रहे विनाश और संहार को रोक नहीं पाता है|वे दुसरे कि कृति,यश को नकारते है|यहाँ तक कि वे दुसरे के अस्तित्व को स्वीकार ही नहीं करते है| उसका शोषण ,उत्पीडन करते है|यहाँ तक कि अपने स्वार्थ अव सतीत्व की रक्षा हेतु उसका सदैव के लिए नामोनिशान भी मिटा देते है | विनाश कर देते है|वे अपनी श्रेष्ठता को ही सर्वोच्च मानते है !दुसरे की श्रेष्ठता को नकारा घोषित कर देते है|कुछ ऐसा ही कमोवेश अमेरिका और यूरोप का इतिहास और प्रकृति रही है और है भी|एक समय ऐसा भी आता है कि इस अत्याचार ,दमन उत्पीडन का 
अंत इन आसुरी शक्तियों के विनाश व अंत के साथ निश्चित ही होता है| इस समय की कभी कभी लम्बी प्रतीक्षा करनी पड़ती है | वह समय प्रारंभ हो चूका है ,वह समय आ गया है |
              आज आवश्यकता है , जम्बूद्वीप , चाहे उसे जिस नाम से कहे कोई अंतर नहीं अपने अतीत व इतिहास से प्रेरणा प्राप्त करे , अपने भूले , ध्यान रहे जो बिखरा नहीं है , को पढ़े ,उस अतीत से उर्जा प्राप्त करे , वर्तमान की सारी कटुताओं को सुलझाकर विस्मृत कर ले ! एक नई एकता , दृढ़ता, शांति  व संकल्प के साथ एक नए वातावरण में  एक नए युग का , एक नए विश्व का निर्माण करे , जो विश्व को इस संक्रांति, संक्रमण की बेला में मार्गदर्शन दे सके, एक नई दिशा दे सके|पर स्मरण रहे यह जबाब देहि जम्बूद्वीप की है , विश्व से अपेक्षा न करे ! अपेक्षा सद्समाज , सद्व्यक्ति, सद्चरित्र से की जाती है |धूर्त, कुटिल, अत्यधिक चतुर-चालाक , क्रूर , शोषक, तथा उत्पीड़क से नहीं की जाती है,जो आज का अमेरिका व यूरपो है |
         एक नई दृढ़ता, एकता, संकल्प के साथ सुख- शांति के वातावरण में एक नए विश्व को दिशा देने की चिरप्रतीक्षित बेला में एक जबाबदेही के साथ ......................
    वह जम्बूद्वीप ..........**यस्य विश्वे हिमवन्तो महित्वा ! समुद्रे यस्य रसाभिदाहः  ! इमाश्च में प्रदिशो यस्यबाहू | कस्मैदेवाय हविषाविधेयं !
                              ***अत्रापि भारतं श्रेष्ठं जम्बूद्वीपे महामुने |
                                   यतो हि कर्म्भूरेषा ह्यातोंया भोगभुमयाह |

सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।

नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)


Jamboodweep Social & Cultural Security 

जम्बूद्वीप सामाजिक एवं सांस्कृतिक सुरक्षा

"Jamboodweep " --- "जम्बूद्वीप"
जम्बूदीप ---- सम्पूर्ण एशिया
आर्यावर्त ---- पारस (इरान), अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, तिब्बत, भूटान, म्यांमार, श्रीलंका, मालद्वीप, थाईलैंड, मलेशिया, कम्बोडिया,    
                   वियतनाम, लाओस तक
भारत वर्ष---- अफगानिस्तान , पाकिस्तान, भारत, नेपाल, तिब्बत, भूटान, म्यांमार, श्रीलंका, मालद्वीप
                    
     
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आर्यावर्त

आर्यावर्त  
       समाज  निर्माण के प्रारंभ से ही जो ब्यक्तियों का समूह समुन्नत हुआ , जो पृथ्वी के जम्बूद्वीप के भारत वर्ष क्षेत्र में निवास करता था ,वे ज्ञान विज्ञान कृषि के क्षेत्र में अत्यधिक समुन्नत हुए !उनके अन्दर एक सामाजिक, राष्ट्रिक, एवं सांस्कृतिक भावना का विकास हुआ | विकास की यह कालांतर में  धारा सनातन- सनातन समाज -सनातन धर्मावलम्बी के नाम से जाना जाने लगा ! जिसने वेदों सहित समाज के नियमन के लिए अनेकानेक संहिताओं की रचना की|यह कार्य एक व्यवस्थित समाज जीवन में बैठ कर किया गया|भले ही आधुनिक अल्प बुद्धि मूर्खों ने इसे आज अरण्य साहित्य के नाम से पुकारते है|यह एक विडम्बना ही है|इस विकाश की धारा को सनातन धर्म एवं सनातन संस्कृति या भारतीय संसकृति के नाम की संज्ञा उसी कल खंड में मिल चुकी थी|क्यों कि यह विकास की धारा भारत वर्ष खंड में हुई |वास्तव में वे लोग सम्पूर्ण दुनिया , एवं उसके एक द्वीप जम्बूद्वीप के अन्दर श्रेष्ठ थे , आर्य थे|श्रेष्ठता का दूसरा नाम ही, पर्यायवाची "आर्य" है इ अतः उन्हें शेष दुनिया ने आर्य कह संबोधित किया|इस ज्ञान - विज्ञान , कृषि  व विकास की धारा को वह विकसित समाज एवं उस समाज के जनक ऋषि मुनिओं ने हिमालय का उलंघन न करते हुए हिमालय से दक्षिण के भूभाग या हम जिसे यों कह सकते है कि भारत वर्ष के पूर्व एवं पश्चिम के क्षेत्रों में फैलाया|या उस पूर्व पश्चिम के क्षेत्रों में रहने वाले मानव एवं मानव को सुसंस्कृत एवं सुशिक्षित किया|भारत के पूर्व एवं पश्चिम का यह क्षेत्र पारस (इरान) से लेकर थाईलैंड इंडोनेशिया तक के फैलाव के साथ है ! इस कार्य को सनातन समाज के लोंगो ने किया , जो श्रष्ट - आर्य मने जाते थे !जिन्होंने इस पूरे क्षेत्र में एक "एक सामान जीवन दर्शन , सनातन जीवन दर्शन" का फैलाव किया एवं इसे दुनिया तथा सृष्टि का श्रेष्ठ हिस्सा आर्यावर्त के नाम से पुकारा | जिसे आर्यावर्त के नाम से दुनिया जानती थी ! बारहवी शदी के पूर्वाद्ध तक इसी नाम से जाना जाता था |
                         आर्यावर्त का फैलाव दक्षिण एशिया , एवं दक्षिण - पूर्व एशिया यानि इरान (पारस), अफगानिस्तान, भारत, नेपाल, तिब्बत, भूटान, म्यांमार, श्रीलंका, मालदीप, सिंगापुर, पूर्वी तिमोर, थाईलैंड, फिलिपिन्स,इंडोनेशिया, वियतनाम, कम्बोडिया, लाओस तक था | दूसरी शदी में पल्लव वंश  ने जावा और सुमात्रा में हिन्दू राज्य स्थापित किया|आठवी शदी में कम्वोडिया , थाईलैंड पर उसी वंश का राजा याशोवार्मा ने शासन किया जिसके राज्य को कम्बोज कहा जाता था|कन्नौज के शासक यशोवर्मन एवं गुप्त वंशीय  समुद्र गुप्त का शासन सेन्ट्रल एशिया तुर्की, बल्तिस्तान, एवं दर्दिस्तान  तक फैला हुआ था | वही मौर्य वंशीय सम्राट अशोक का राज्य तिब्बत तक था |
           कालिदास कुमार सम्भव में इसके फैलाव, क्षेत्र , सीमा का वर्णन करते हुए कहते है कि ...............................
                                   अस्त्युत्तरस्याम दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराजः !
                                     पूर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य स्थितः पृथिव्या इव मानंदः !!
     
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