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Monday 25 November 2013

इस्लाम धर्म में रैहान (तुलसी) की महत्ता

Author - Avz Muzaffarpuri

इस्लाम धर्म में  रैहान (तुलसी) की महत्ता

इस्लामी विश्वासों के अनुसार कुरान ईश्वर की तरफ से भेजी गई आखिरी किताब है और हजरत मोहम्मद नबियों के क्रम में आखिरी भेजे जाने वाले नबी (सल्ल0) हैं। कुरान के सूरह अहजाब में हजरत मोहम्मद के बारे में आता है कि वो अल्लाह के द्वारा भेजे गये आखिरी नबी (सल्ल0) हैं यानि उनके बाद नबूबत का सिलसिला खत्म कर दिया गया। इसका अर्थ ये है कि कुरान और हजरत मोहम्मद की शिक्षायें कयामत तक के लिये काम आने वाली है। तो यकीनन इनकी शिक्षाओं और संदेशों में वैसी बातें या सुझाव भी हैं जो उस जमाने के लिये भले उतनी प्रासंगिक न रही हो पर आज बड़े महत्व की है। इन्हीं तालीमों और संदेशों में पर्यावरण के बारे में प्रदत्त शिक्षायें भी हैं जो उस जमाने में उतनी प्रासंगिक नहीं थी क्योंकि तब हमारी पृथ्वी , जल और वायु प्रदूषित नहीं थे पर आज सारा विश्व भीषण पर्यावरण प्रदूषण और मानव समाज इस पर्यावरण संकट के परिणामस्वरुप पैदा हुये विभिन्न तरह-2 के रोगों से जूझ रहा है और ऐसे में कुरान और हजरत मोहम्मद की तालीमों पर अमल करना इसके समाधानार्थ तथा रोगों से बचाव के लिये कारगर उपाय हो सकता है।

हजरत मोहेहम्मद औरैर पर्यार्ववरण

आज से तकरीबन 1400 साल पहले हुये हजरत मोहम्मद (सल्ल0) समझ गये थे कि आने वाले समय में प्रदूषण और उससे जनित विभिन्न तरह के रोग मानव जाति के लिये सबसे बड़ी समस्या बनने वाली है, इसलिये उन्होनें इसके समाधानार्थ उपाय भी बताये थे और ऐसे सुझाव दिये थे जो इस संकट में निवारण में तथा उससे जनित रोगों के उपचार में सहायक हो। ईश्वर ने मनुष्यों के लिये यह धरती बनाई है जिससे हमें कई तरह के फल, फूल, खनिज पदार्थ, अन्न, जल आदि प्राप्त होतें हैं। इतनी चीजे प्रदान करने वाली इस धरती के प्रति हमारा भी ये कत्र्तव्य बनता है कि हम इसकी हिफाजत करें और इसे स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त रखें। सहीह मुस्लिम की एक हदीस में आता है- श्ज्ीम ूवतसक पे हतममद ंदक इमंनजपनिसए ंदक
ळवक ींे ंचचवपदजमक लवन ीपे हनंतकपंद वअमत पजण्श् यही कारण है कि नबी (सल्ल0) ने अपने उम्मतियों को ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने ,वृक्षों को अनावश्यक न काटने तथा औषधियों गुणों से भरपूर पौधों के इस्तेमाल करने का निर्देश दिया है। बुखारी शरीफ की एक हदीस के अनुसार पेड़ लगाना भी एक प्रकार का दान है क्योंकि वृक्ष पक्षियों और कई दूसरे जीवों के लिये आश्रय स्थली बनती है, इसके पत्ते कई जीवों के आहार के काम में आतें हैं और इसकी छाया राहगीरों को शीतलता प्रदान करती है। मस्नदे-अहमद की एक हदीस में वृक्षारोपण की फजीलत बताते हुये रसूल (सल्ल0) ने तो ये तक कहा कि ‘अगर कयामत आ जाये और उस समय किसी के हाथ में कोई बीज हो जो उसे चाहिये कि वह उसे बो दे।‘ हो सकता है कि उसका यह अमल कयामत के रोज उसके लिये मग्रिफत का जरिया बन जाये।

पवित्र कुरान में रैहान (तुलसी)

पवित्र कुरान में अनेक ऐसे वृक्ष, पौधे और फल इत्यादि का वर्णन आता है जिसमें इंसानों के लिये फायदे ही फायदे हैं। कुरान में वर्णित इन बहुपयोगी पौधों में ‘तुलसी‘ का भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। कुरान में तुलसी का वर्णन दो स्थानों पर आया है, सूरह रहमान की 11वीं और सूरह वाकिया की 89 वीं आयत में।
           सूरह रहमान की आयत में इस धरती पर पाये जाने वाले अल्लाह की नेमतों में तुलसी का नाम है तो सूरह वाकिया में इसका वर्णन जन्नती पौधे के रुप में हुआ है। यानि तुलसी उन बिशिष्ट पौधों में शामिल है जो इस धरती पर भी है और जन्नत में भी है। इसी से इस पौधे की फजीलत का पता चलता है। तुलसी को यह आला मुकाम हासिल हो भी क्यों न, क्योंकि इससे इंसान को तो हर तरह का फायदा तो पहुँचता ही है साथ ही यह पर्यावरण को भी स्वच्छ रखने में कारगर है।
कुरान के सूरह रहमान में इस पवित्र पौधे का जिक्र इस तरह आया है-
‘वल्अर्-ज व-ज-अहा लिल अनामि, फीहा फाकि हतुंव् वन्नख्लु जातुल् अक्मामि, वल्हब्बु जुल्-अस्फि वर्-रैहान, फबि-अय्यि आलाई रब्बिकुमा तुकज्जिबान !‘ यानि ‘और उसी ने खल्कत के लिये जमीन बिछायी, उसमें (धरती) मेवे और गिलाफ वाली खजूरें हैं, और भुस के साथ अनाज और रैहान (तुलसी), तो ऐ जिन्न और इंसान तुम दोनों अपने रब की कौन-2 सी नेमतों को झुठलाओगे?‘ (सूरह रहमान, 10-12)
          इसी तरह सूरह वाकिया में तुलसी का वर्णन जन्नती पौधे के रुप में है। ‘‘अम्मा इन् का-न मिनल मुकर्रबीन, फरौहुव्-व रैहानु व्-व जन्नतु नअीम।‘‘ अर्थात्, ‘‘तो जो खुदा के निकटवत्र्ती हैं (उनके लिये) आराम, खुश्बूदार फूल और रैहान (तुलसी) है।‘‘ (सूरह वाकिया, 88-89)

         सूरह रहमान में जहां इसे धरती पर अल्लाह की नेमतों में बताया गया है तो सूरह वाकिया में जन्नती पौधे के रुप में बताते हुये कहा गया है कि यह उन लोगों को प्राप्त होगा जिन्हें खुदा की निकटता हासिल होगी।
हजरत मोहेहम्मद साहब की नजर में  रैहान (तुलसी)

तुलसी द्विबीजपत्री औषधीय पौधा है, जिसकी लंबाई 1 से तीन फीट तक होती है। इसकी पत्तियां बैगनी आभा वाली तथा हल्के रोयें से ढ़की होती है। पत्तियों का आकर 1 से 2 इंच तक होती है। पुष्प मंजरी बहुरंगी छटाओं वाली होती है जिसपर बैगनी और गुलाबी आभा वाले बहुत से पुष्प लगतें हैं। तुलसी की दो प्रधान प्रजातियंा है, श्रीतुलसी जिसकी पत्तियां हरी होती है और कृष्णा तुलसी जिसकी पत्तियंा नीलाभ और कुछ-2 बैगनी रंग की होती है। अंग्रेजी में इसे भ्वसल ठंेपस नाम दिया गया है। अरबी में इसे रैहान नाम से पुकारा जाता है। सामान्यता लोगों में ये धारणा है कि तुलसी को केवल हिंदू धर्म में महत्ता दी गई है पर कुरान, हदीस और कई अन्य इस्लामी ग्रंथों का अध्ययन करने से ये पता चलता है कि इस्लाम धर्म मेंभी तुलसी की अनेक फजीलतें बताई गई हैं।
          हजरत मोहम्मद (सल्ल0) को चिकित्साशास्त्र का भी बेहतरीन ज्ञान था, हदीसों और इस्लामी तारीखी किताबें पढ़ने से ये बात मालूम होती है। नबी (सल्ल0) के चिकित्सीय ज्ञान पर डाॅ0 खालिद गजनवी ने ‘तिब्बे नबबी और जदीद साइंस‘ नाम से एक
किताब भी लिखी है। नबी (सल्ल0) यकीनन तुलसी की बेहतरीन खूबियों से न सिर्फ वाकिफ थे बल्कि वो इसके गुणों के कारण इसके कायल भी थे। नबी (सल्ल0) को तो तुलसी इतनी अजीज थी कि उन्होनें अपने प्यारे नवासों से अपनी मोहब्बत की मिसाल भी तुलसी से देते हुये फरमाया था, ‘‘अलहसन व हुसैन हमा रैहानी मिनदुनिया‘‘ अर्थात् हसन और हुसैन इस दुनिया में मेरे रैहान (तुलसी वृक्ष) है। यभ्ंकपजी दंततंजमक इल प्इद ।इप छनउए च्तवचीमज ेंपकए श्भ्ंेंद - भ्नेेंपद ंतम उल जूव ेूममजे इंेपसे पद जीपे ूवतसकश् ैंीपी ।स.ठनाींतपए ब्वउचंदपवदे व िजीम च्तवचीमजए ठववा. 5ए टवस.57ए भ्ंकपजी.
96द्ध तिर्मिजी शरीफ में हजरत अबी उस्मान अल हिंदी रिवायत करतें हैं कि नबी (सल्ल0) ने फरमाया, जब तुममें से किसी को रैहान दिया जाये तो इंकार न करो क्योंकि यह पौधा जन्नत से आया है। इस हदीस में न केवल नबी (सल्ल0) ने तुलसी से इंकार करने से मना फरमाया बल्कि ये भी फरमाया कि ये पौधा जन्नती है।

हदीसों  में  रैहान

Û तिर्मिजी शरीफ की एक हदीस में आता है कि एक वलीउल्लाह की जान निकालने मलकुलमौत 500 फरिश्तों के साथ आया और हर फरिश्ते के साथ में रैहान की डालियंा थी। इस हदीस से मुस्लिम विद्वानों ने ये भी मसला निकाला है कि अगर मरने वाले व्यक्ति के रुह को कब्ज करने आने वाले फरिश्तों के हाथ में रैहान की डालियां हैं तो इसका अर्थ है कि वो व्यक्ति जन्नती है। इस्लामी विद्वान् अबुल आलिया का भी यही अकीदा है कि खुदा के करीबियों में से अगर कोई मरने वाला होता है तो उसके पास रैहान लाया जाता है वह उसकी खुश्बू लेता है और उसकी रुह कब्ज ली जाती है।
Û इब्ने माझा में हजरत उसामा से रिवायत एक हदीस है। वो कहतें हैं नबी (सल्ल0) ने फरमाया, क्या जन्नत के लिये कोई तैयार है? बेशक जन्नत में नूर और चमकती रौशनी है तथा वह रैहान (तुलसी) की डालियां है जो लहलहातीं हैं।
Û सही बुखारी की एक हदीस में नबी (सल्ल0) ने फरमाया कि जब किसी को रैहान पेश किया जाये तो वह उसे लेने से इंकार न करे क्योंकि यह अपनी खुश्बू में निहायत उम्दा और वजन में हल्का होता है। यही हदीस तिरमिजी शरीफ में हजरत अबी उस्मान अलहिंदी से भी रिवायत है जिसमें आता है कि नबी (सल्ल0) ने फरमाया, जब किसी को रैहान पेश किया जाये तो वह उससे इंकार न करे क्योंकि यह पौधा जन्नत से आया है।
Û नबी (सल्ल0) के हदीसों में तुलसी का बड़ा बिशिष्ट स्थान है। इब्ने अब्बास से रिवायत एक हदीस है जिसमें नबी (सल्ल0) फरमातें हैं कि जलप्लावन की धटना के बाद जब हजरत नूह नाव से बाहर आये तो सबसे पहले उन्होंनें जो पौधा लगाया वो तुलसी का था।
Û अबू नुईम से रिवायत एक हदीस है जिसमें नबी (सल्ल0) फरमातें हैं कि हजरत आदम जन्नत से जब निकाले गये थे जो उनके साथ तीन तरह के महकदार पौधे थे जिसमें एक तुलसी था जो दुनिया की तमाम खुश्बूदार बूटियों की रानी है। (यानि इस धरती पर जितनी भी आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां है उसमें तुलसी का आला मुकाम है और इसी लिये हदीस में इसे बूटियों की रानी लकब दिया गया)

रैहान के शाब्दिक अर्थ को लेकर आपत्तियां व उसका निवारण

कई मुसलमान रैहान को तुलसी कहे जाने पर आपत्ति करते हुये कहतें हैं कि रैहान का अर्थ तुलसी नहीं वरन् खुश्बूदार फूल है। जहां तक रैहान के शाब्दिक अर्थ का सवाल है तो इसके ऊपर इस्लामी विद्वानों में मतभिन्नता है पर एकाध को छोड़कर कुरान में सबने इसका अर्थ ‘सुगंधित बेल-बूटा‘ से ही किया है। परंतु नबी (सल्ल0) की एक हदीस इसका अर्थ स्पष्ट कर देती है। ये हदीस सहीह अल बुखारी में आया है और अबू मूसा अशअरी से रिवायत है। नबी (सल्ल0) ने फरमाया, कुरान पढ़ने वाले मुनाफिक की मिसाल रैहान (तुलसी) की तरह है जिसकी खुश्बू तो उम्दा होती है पर उसका जाएका कड़वा होता है। (Narrated Abu Ashri,Prophet said,"Example of a hypocrite who recites the Quran is like a Raihaan(Sweet Basil) which small good but tastes bitter."-- Bukhari, Virtue of Quran, Book No-6, Vol-61 Hadith-579) यह हदीस अबू दाऊद और मुस्लिम शरीफ में भी आई है। इस हदीस का सीधा मतलब तुलसी ही है क्योंकि तुलसी पत्र की बिशेषता भी ठीक ऐसी ही है जो नबी (सल्ल0) की इस हदीस में आई है। नबी ने जो कहा उससे किसी ऐसी चीज का पता चलता है जिसे खाया भी जा सकता हो। कोई किसी चीज की मिसाल तभी देता है जब वो चीज उस रुप में प्रयुक्त की जाती हो अथवा वो गुण उसकी बिशिष्टता हो। उदाहरणार्थ कोई यह नहीं कहता कि फ्लां चीज का स्वाद गेंदे या गुलाब जैसा है क्योंकि स्वाद गेंदे या गुलाब की बिशेषता नहीं है। गुलाब और गेंदें की मिसाल सुगंध के लिये दी जा सकती है, स्वाद के लिये नहीं। रसूल (सल्ल0) ने उक्त हदीस में सुगंध और स्वाद दोनों की बात कि और तुलसी में सुगंध और स्वाद दोनों बिशेषतायें एक साथ है। स्पष्टतः रैहान से तात्पर्य कोई और बेल-बूटा न होकर तुलसी ही है।                                                                                                                                                                            रैहान का अर्थ तुलसी है, इसके पक्ष में कई विद्वान है। इस्लाम और इस्लामी तिब्ब (चिकित्सा) की कई किताबों में रैहान का अर्थ तुलसी माना गया है। उर्दू शब्दकोशों में रैहान का अर्थ प्रायः खुश्बूदार फूल दिया जाता है, इसी तरह कई मुस्लिम विद्वान ये मानतें हैं कि रैहान से मुराद सभी खुश्बूदार फूल या पौधें हैं। मगर इसका अर्थ ये नहीं है क्योंकि नबी (सल्ल0) की उक्त हदीस से ये बात साबित है कि उन्होंनें एक बिशिब्ट पौधे का जिक्र किया था जिसकी खुश्बू उम्दा है और स्वाद कड़वा। अगर रैहान से मुराद तमाम खुश्बूदार फूल-पत्ते होंतें तो नबी (सल्ल0) उसके स्वाद का कभी जिक्र न करतें क्योंकि हो सकता है कि कई खुश्बूदार पत्तों का स्वाद मीठा भी हो।

दुबई के कुरान पार्क में तुलसी

प्रसिद्व शहर दुबई में पवित्र कुरान पार्क बनाये जाने की योजना है। इस पार्क के बनाये जाने की योजना की धोषणा दुबई नगरपालिका की तकनीकी समिति की 1000 वीं बैठक के अवसर पर परियोजना के महानिदेशक मो0 नूर मशरुम ने की। यह पार्क 60 हेक्टेयर क्षेत्र में दुबई के अल-खवानीज इलाके में बनाया जायेगा और इसमें कुरान की बिशेषतायें और कुरान में वर्णित चीजों को दिखाया जायेगा। इस पार्क की एक खासियत ये भी होगी कि इसमें वो पौधे भी लगाये जायेंगें जिसका जिक्र कुरान शरीफ में आया है। इस पार्क की स्थापना व उसकी बिशेषताओं को बताते हुये परियोजना के निदेशक ने कहा कि पवित्र कुरान में जिन 54 पौधों का जिक्र आया है उसे इस पार्क में लगाया जायेगा और लोगों को ये जानकारी दी जायेगी कि आखिर इस पौधे की ऐसी कौन सी फजीलत है जिसके चलते इसे पवित्र कुरान मंे स्थान दिया गया है। इस धोषणा में कुरान में वर्णित जिन पेड़ांे का नाम बताया गया जिन्हें इस पार्क में लगाया जाना है उनमें रैहान यानि पवित्र तुलसी ;भ्वसल ठंेपसद्ध का भी नाम है। दुबई के कुरआनी पार्क में तुलसी को लगाया जाना स्पष्ट करता है कि पवित्र कुरान में
प्रयुक्त रैहान शब्द का वास्तविक अर्थ तुलसी ही है। इस पार्क की स्थापना की खबरें और उसमें तुलसी को स्थान दिये जाने की खबरे भारतीय अखबार नवभारत टाइम्स के 21 जून 2013 के अंक में, प्दजमतदंजपवदंस ठनेपदमेे ज्पउमे के 5 अगस्त, 2013 के अंक में तथा कई अन्य प्रमुख अखबारों में प्रमुखता से प्रकाशित किया गया था। रैहान का अर्थ तुलसी ही है यह दलील उक्त उदाहरण से भी साबित है।

इंटरनेट पर उपलब्ध अरबी शब्दकोशों और बेबसाइटों  में  रैहान

इंटरनेट पर उपलब्ध कई प्रतिष्ठित व लोकप्रिय इस्लामी बेबसाइटों पर मौजूद अरबी-अंग्रेजी अथवा अरबी-हिंदी शब्दकोशों में रैहान का अर्थ तुलसी या Holy Basil ही बताया गया है। उदाहरणार्थ ,
Û प्रसिद्ध इस्लामी साइट searchtruth.com पर उपलब्ध अरबी-अंग्रेजी शब्दकोश में रैहान का अर्थ भ्वसल इंेपस यानि तुलसी बताया गया है।
Û Google Translator  पर भी तुलसी का अरबी नाम रैहान ही मिलता है।
Û एक प्रमुख इस्लामी साइट chisti.org के Foods of the Prophet section में रैहान का अर्थ तुलसी ही बताया गया है और कहा गया है कि तुलसी दिल को मजबूत करता है और अगर इसके पत्ते को पानी में मसल पर सर पे मालिश की जाये तो बड़ी अच्छी नींद आती है।
Û Islamic Research Foundation International संस्था के साइट पर ख्वाजा जाकिर हुसैन ने अपने आलेख Quranic' Botany  में कुरआन में वर्णित पौधों में रैहान का अर्थ तुलसी बताये हुये कुरआनी पौधों में तुलसी का नाम भी लिखा है।
Û jeepakistan.weebly.com  नामक एक इस्लामी साइट पर भी अर-रैहान का अर्थ तुलसी बताया गया है।
Û इसी तरह Almiskeenah नामक एक इस्लामी साइट पर भी रैहान का अर्थ तुलसी बताया गया है और इसकी कई फजीलतें बयान की गई।
Û www.learnquranonline.com पर भी रैहान का अर्थ तुलसी बताया गया है।

विद्वानों की राय

रैहान का अर्थ तुलसी ही है ये स्वीकारोक्ति ‘तिब्बे नबबी और जदीद सांइस‘ के लेखक और प्रख्यात इस्लामिक विद्वान् डाॅ0 खालिद गजनवी ने भी किया है। अपनी किताब में न सिर्फ उन्होंने रेहान का अर्थ तुलसी बताया है बल्कि ये तक लिखा है कि ‘‘कुरान मजीद ने जन्नत में मिलने वाले बेहतरीन चीजों में तुलसी को शामिल फरमाया है जिससे जाहिर ये होता है कि ये लजीज, मुफीद तथा अपने फवायद में यक्ता है।‘‘ ये आगे लिखतें हैं कि ‘‘हिंदू मजहब में तुलसी को बड़ी अहमियत हासिल है, हर वह हिंदू जिसके धर में खुली जगह मयस्सर है, तुलसी का पौधा लगाकर बाइसे बरकत इसका ख्याल रखता है। इस पौधे की परवरिश बड़ी अकीदत से की जाती है। धर के बुर्जुग सुबह उठकर इसको बड़ी अकीदत के साथ पानी देतें हैं। गुमान किया जाता है कि तुलसी जो कि अहले-खाना की मां है उनकी हिफाजत करती है और उस धर में रहमत के फरिश्ते आतें हैं। कतअ नजर अकीदत या बरकत के तुलसी का पौधा अपनी खुश्बू बिखेरता रहता है। अरबी में हम इसे रैहान कहना पसंद करतें हैं।‘‘
        इसी तरह इस्लामी विद्वान सरफराज खान मारवत-(Wensum College, Gomal University, Pakistan ) मोहम्मद (सल्ल०) असलम खान  (Arabic Deptt, Islamic studies & Research, Gomal University, Pakistan )
अब्दुल हकीम अकबरी ( Faculty of Pharmacy, Gomal University, Pakistan), मोहम्मद शोएब ( Faculty of  Agriculture, Gomal University, Pakista) एवम् मो0 अनवर शाह (Arbic Deptt., Islamic Studies & Research, Gomal University, Pakistan) ने रैहान के अर्थ को लेकर " Interpretation and Medicinal Potential of Ar- Rehan (Ocimum Basilicium) -A Review  नाम से एक संयुक्त Research Paper प्रस्तुत किया। इसमें इन लोगों ने कई आलेखों के हवाले से ये साबित किया है रैहान का अर्थ तुलसी ही है। इन्होंनें अपने शोध पत्र में भी लिखा है कि कुरान में रैहान शब्द दो बार आया है और इसके अनुवादकों ने इसका अर्थ खुश्बूदार फूल, सुगंधित बेल-बूटा आदि किया है पर किसी ने भी रैहान का शाब्दिक अर्थ नहीं लिखा।ये लिखतें हैं- " Islamic Scholar have different view regarding the interpretation of Ar - Rehan. They have interpreted it in the meaning of fragrance , fragrant plant scented herb and livelihood in their commentaries on the Holy Quran, but they did not specify the plant species . According to the traditional healrs ( Hakeen ) Rehan refers to sweet - basil ( Ocimum Basilicum ). तुलसी
                     इन्होनें अपने Research Paper में विभिन्न इस्लामी विद्वानों द्वारा लिखे गये कई किताबों और आलेखों का हवाला दिया है जिसमें रैहान का शाब्दिक अर्थ तुलसी ( Holy Basil ) बताया गया है।
Name of the Book Meaning of Rehan : References
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Plant of Northern & Central Oman (Arabic) in magazine Economic Botony
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6 Firozullughat (Urdu) Sweet Basil & its seeds , Firozuddin , Firoz Sons Ltd Private, Lahore, Pakistan
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      Pakistan
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17 Popular Jadeed Urdu Lughat Sweet Basil Oriental Book Society, Gunbat Road, Lahore, Pakistan
18 Saudi J. BiologicalnScience , Sweet Basil Rahman , M.S Al-said, Al-Yahya & J.S Mossa in their
      article named “Medical Plant Diversity in the Flora of Saudi Arabia: A report on 7 plant Families ”          published in Saudi J. Biological Science.
19 Tajul Mafr-e-Dat Sweet Basil By Tariq in Tahqikat-e-Khawasul Adwia published from Maktaba    Damniyal. Lahore, Pakistan
20 Tibbe-Nababi & Jadid Science , Tulsi Dr. Khalid Ghaznavi published by Al- Faisal Naseem wa
    Tajeran-e-Kutub, Ghazni Street, Lahore , Pakistan
21 World Spice Plants Sweet Basil Seidemann, Springer-Verlag Berlin Heidelberg, New York
22 Zipcodezoo.com Sweet Basil , http://zipcodezoo.com/Plants/O/Oscimum_basiclicum

औषधीय  गुणों  से भरपूर है तुलुलसी

हिंदू धर्म और इस्लाम दोनों ही धर्मों में तुलसी को अत्यंत बिशिष्ट स्थान प्राप्त है। इस्लाम में जहां इसे खुदा की नेमत और जन्नती पौधा बताया गया है वहीं हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि जिस धर में तुलसी का पौधा नहीं होता वहां ईश्वर आना पसंद नहीं करते। तुलसी को पूजनीया माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अलावे तुलसी आयुर्वेद और चिकित्साशास्त्र में भी बिशिष्ट स्थान रखता है। भारतबर्ष समेत दुनिया के तमाम हिस्सों में रोगोपचार और उससे बचाव के लिये सदियों से तुलसी का इस्तेमाल किया जाता रहा है। प्राचीन तथा आधुनिक चिकित्सा शास्त्र की कोई भी विधि हो (एलोपैथी, होमियोपैथी, आयुर्वेद या यूनानी) तुलसी सभी में प्रयुक्त की जाती है। सामान्यतया हिंदू अपने गले में तुलसी की माला धारण करतें हैं परंतु इसका माला धारण करने की परंपरा अवश्य ही इस्लामी मान्यताओं में भी है तभी तो अपनी किताब ‘तिब्बे नबबी और जदीद साइंस‘ में डाॅ0 खालिद गजनवी ने लिखा है, ‘यकीन किया जाता है कि तुलसी के पत्तों व शाखों का हार बनाकर अगर इसे मुस्तकिल पहना जाये तो जरासीम से होने वाली अक्सर बीमारियां नहीं होंगी बल्कि इसकी खुश्बू से कई तरह की बीमारियां भी ठीक हो जायेगी।‘

अंत में-

इस धरती पर तो पेड़-पौधों की हजारों किस्में है पर अल्लाह ने उनमें से सिर्फ कुछ को ही अपने किताब में स्थान दिया है तो निःसंदेह इनकी फजीलत बहुत ज्यादा होगी। इसलिये खुदा के इस देन की देखभाल करना ,उसे अपने धरों में स्थापित करना और उसका इस्तेमाल करना ईश्वर को खुशी देगा। कुरआन में वर्णित पौधों में तुलसी का एक अति बिशिष्ट मुकाम है, क्योंकि कुरान ने और खुद नबी (सल्ल0) ने अपनी पाक जुबान से इसकी फजीलतें बयान की है, अपने प्यारे नवासे की इससे मिसाल दी है, ये भी फरमा दिया है कि जन्नतुल-फिरदौस में नूर और रौशनी रैहान (तुलसी) की चमकती डालियों से होंगी और तो और मलकुलमौत और रुह कब्ज करने वाले फरिश्तों के हाथ में इस पवित्र पौधे का होना जन्नती होने की बशारत (खुशखबरी) होगी। इतनी बिशेषतायें वाले इस पौधे जिसके चिकित्सीय और औषधीय गुणों का चिकित्सा शास्त्र भी कायल है,
को अपने धर में स्थान देना और माला के रुप में अपने गले में धारण करना न केवल एक जन्नती पौधे को स्थापित करना है वरन् अपने धर के वातावरण को स्वच्छ रखना और रोगों के निवारणकत्र्ता के रुप में एक वैध को रखना भी है। रसूल (सल्ल0) ने इसके बारे में फरमाया था कि जब किसी को रैहान पेश किया जाये तो उसे चाहिये कि वह उसे लेने से इंकार न करे यानि तोहफे के रुप में अपने मित्रों और नाते-रिश्तेदारों को तुलसी का पौधा या माला भेंट करना रसूल (सल्ल0) को खुशी देगा।





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