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क्षेत्रीय सुरक्षा , शांति और सहयोग की प्रबल संभावना – चीथड़ों में लिपटी पाकिस्तान की राष्ट्रीयत

“ क्षेत्रीय सुरक्षा , शांति और सहयोग की प्रबल संभावना – चीथड़ों में लिपटी पाकिस्तान की राष्ट्रीयत ा “ —गोलोक विहारी राय पिछले कुछ वर्षों...

Sunday, 22 November 2020

तंग गली शहर का

बरबस उतारने लगे, नाग असर जहर का। कंगन कलाई की, पूछती भाव खँजर का। ज़िंदगी! मैंने देखी, बार- बार कई बार, पुजारी अमन के, पर नोचते कबूतर का। करतूत अब बखानती, तंग गली शहर का ....
कहते कहानी भौंरे, कलियों के कहर का। काँटे लगाते फूलों पर, मरहम नश्तर का। शतरंजी प्यार में, पिट गए मोहरे सभी, दिखाकर वजीर, चलती गयी चाल नज़र का। करतूत अब बखानती, तंग गली शहर का ...
करतूत अब बखानती, तंग गली शहर का। उगलने लगती भँवरी, राज अब लहर का। तरसती रही नदिया, दरिया से मिलने को, बनकर दीवार खड़े, रहबर अब डगर का। करतूत अब बखानती, तंग गली शहर का ...
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Saturday, 29 August 2020

अनुच्छेद 370 की समाप्ति : एक वर्ष बाद

५ अगस्त को अनुच्छेद ३७० की समाप्ति का एक वर्ष पूरा होगया । एक वर्ष में वहाँ क्या बदला इसका आकलन रोचक होगा।दरअसल १ वर्ष का समय बदलाव की पूरी तश्वीर को बयां नहीं कर सकती, वह भी कोरोना महामारी के समय जब पूरा तंत्र पिछले ६ महीने से उसी में जुझा हुआ है। फिरभी परिवर्तन की कई बानगियाँ दिखाई दे रही है। अगर इसको खंडो में बाँट के देखे तो इसका विस्तार राजनितिक, समाजिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक ढांचों के तहत किया जा सकता है। पहला राजनीतिक जिस विधान सभा में शेख अब्दुल्लाह ५ नवंबर को भाषण देते हुए अनुच्छेद ३७० की महिमा गाथा रची थी जिसमे उन्होंने कहाँ था कि भारतीय मुसलमानो के लिए यह अनुच्छेद धर्म-निरपेक्षता का आईना होगा, सब जातियों के लिए एक सामान ब्यस्था बनेगी और निरंतर विकाश की गति को बल मिलेगा। लेकिन हुआ ठीक इसके विपरीत। सब कुछ टूटता गया।राजनीति घरों और कुटुम्बों तक सीमित हो गया। चंद अबदुल्लाह के परिवार और बाद में चलकर मुफ़्ती कुटुंब जम्मू कश्मीर की राजनीति को अपना पुस्तैनी ठिकाना बना लिया। अगर तथ्यों और सामाजिक रिश्तो को राजनीति से जोड़ के देखा जाये तो कई बातें और तथ्य दिखाई भी देते है। दिल्ली के राजनीतिक कांग्रेस घरानो में शादियाँ भी रचाई गयी. अगर मोटे तौर पर यह कहाँ जाये कि नेशनल कॉन्फ्रेंस की सत्ता भारतीय संसद से कम नेहरू- गाँधी परिवार के आपसी रिश्तों पर चलती थी। ३७० के साथ पुश्तैनी राजनीति का अटूट बंधन टूट गया। उसके साथ अपनी सुरक्षा के लिए बनाये गए हुर्रियत नेताओं का जमावड़ा भी कमजोर पड़ गया। दशकों से इनकी मिली जुली दुकान चलती थी। जिसमे अलगाववादी संगठन भी शामिल थे। उनकी पहुँच पाकिस्तान तक थी। ये सब कुछ ३७० के साथ बदल गया। लोगो में एक नए विश्वास और उमंग उभरकर सामने दिखाई दे रहा है कि जब कभी भी जम्मू कश्मीर में चुनाव होगा, उनकी अपनी आवाज होगी जो आम जान से निकलकर आएगी। दूसरा परिवर्तन सामाजिक ढांचे के रूप में हो रहा है। अनुच्छेद ३५ए की आड़ में वहाँ की सरकार अपने राजनीतिक फायदे के लिए समाज के कई वर्गों को हासिये पर धकेल दिया। राज्य की सेवाओ और नौकरियों से उन्हें बेदखल कर दिया। घाटी के भीतर हिन्दू समुदाय को इतना डराया धमकाया गया कि वह लोग वैली से बाहर आकर शरणार्थियों कि तरह रहने के लिए अभिशप्त हो गए। वैसे लोगो की पुनर्वसन, पुर्स्थापना की कोशिश की जा रही है। पिछले दिनों गृह मंत्रालय ने एक आदेश जारी कर यह सुनिश्चित किया है कि १५ वर्षो से रहने वाले लोगो को जम्मू कश्मीर की डेमोसाईल प्रदान की जाएगी। वहाँ से १०वीं और १२ पास करने वाले विधार्थियो को भी इसकी सुविधा दी जाएगी। साथ ही केंद्रीय कर्मी के रूप में काम करने वाले लोग जो पिछले १० सालो से वहाँ रह रहे है उनको भी उसी श्रेणी में रखा जाएगा। यह बदलाव उनके सोंच को मजबूत करेगा। एक सर्वे के अनुसार लोगो के बीच लगन बढ़ी है, अब उन्हें डर नहीं है कि मेरा अर्जित धन सम्पदा छिन लिया जाएगा। श्यामा प्रसाद मुखर्जी जब १९५३ में अनुच्छेद ३७० का विरोध करते हुए वीर गति को प्राप्त हुए थे उस समय भी उनकी एक मांग थी, वह थी एक पहचान की. एक देश, एक विधान और एक संबिधान। जिस सविधान सभा में ३७० अनुच्छेद पर बहस हो रही थी उसमे श्यामा प्रसाद का यही रुख था। कश्मीर में पहचान को लेकर दलगत राजनीति की शुरुवात नहीं होनी चाहिए। वह भारत का अभिन्न अंग है, उसका स्वरुप भी वैसा ही होना चाहिए। लेकिन नहीं बन पाया। ३७० ने सांस्कृतिक विरासत को भी कमजोर किया। लोगो का सम्बन्ध क्षेत्र और जाति के रूप में बनने लगा। गरीबी और अमीरी भी राजनीतिक घरानो की नजदीकियों के आधार पर पनपने लगा। एक रिसर्च सर्वेक्षण के आधार पर पिछले ४ दशकों में ठेकेदारी केवल उन्हें ही मिलती थी जो अब्दुल्लाह परिवार के नजदीक थे। ठीक यही हालत मुफ़्ती के शासन कल में हुआ। ब्यापार, टूरिस्म इंडस्ट्रीज भी राजनीतिक रूट से होकर गुजरती थी।
लेकिन अब हालत बदल रहे है। वित् मंत्री ने ८०,००० हज़ार करोड़ की सहायता जम्मू कश्मीर को दी है। जिसमे एक आई.आई.टी और एक आई.आई.एम् को स्थापित करना है। एक एम्स की भी शुरुवात होगी। कश्मीर में पीजी पास करने के बाद २ लाख से भी ज्यादा युवक बेरोजगार बैठे हुए है। रोजगार की तलाश में दर दर की ठोकरे खाते फिर रहे है। उनमे से कई लोग हतासा की स्तिथि में आतंकियों के साथ भी मिल जाते थे। पिछले कुछ सालो से किस तरह से स्कूली बच्चो को पथरबाज बनाने की साठगांठ की गयी। कुछ पैसे के खातिर अबोध बच्चों में देश के विरुद्ध लड़ने के लिए उकसाया गया। ३७० के खत्म होते ही वह सबकुछ बंद हो गया है। तीसरा परिवर्तन जम्मू कश्मीर के बाहर भी दिखा। १९८९ के उपरांत जिस तरीके से अलगववाद एक सुनयोजित इंडस्ट्री की तरह कश्मीर में पनपने लगी, बुहरान वाणी और संसद पर आतंकी हमले के अपराधी को हीरो बनाया गया। ताज्जुब था भारत की एकेडमिक संस्थाए जो देश के लोगो के टैक्स पर चलती है उसी देश के भीतर घुसपैठ की साजिश उन्ही पैसो से रची जाती थी। सैकड़ो सेमिनार दिल्ली के जेनयू और दिल्ली विश्वविद्यालय में किये गए जिसमे हुर्रियत का नेता आकर कश्मीर से भारत को अलग करने की आवाज बुलंद कर चला गया। उसे हमारे एकेडमिक पुरोहित और चंद मीडिया के लोग लोकतंत्र की बुनियाद मानते थे। ३७० के हटने के बाद दिल्ली में कोई भी सेमिनार नहीं देखा जा सकता है जिसमे बुरहान वाणी जैसे लोगो की यश गाथा गयी जाता हो। वैसे इन सब चीजों पर पावंदी २०१४ से ही लग गयी थी। अनुच्छेद ३७० ने और पुख्ता कर दिया। प्रशासनिक तौर तरीके में भी मूल बहुत बदलाव देखा गया है। कई दशकों में भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच गया था। विकाश के नाम पर बन्दर बाँट था। इसलिए गरीबी भी तेजी से बढ़ी। आतंक की वजह से ब्यवसाय भी थम गया था। पर्यटन का केंद्र बंद हो गया। गोली और बन्दुक ने निरंतर बोट क्लब पर भी ताला जड़ दिया। अब धीरे धीरे लोगो में विश्वास की वजह से चीजे खुल रही है। फिरभी यह कयास लगाना की ७० वर्षो से जमा हुआ काई और जकरण एक साल में साफ हो जाएगा तो गलती होगी। बहुत सारे निर्णय इसलिए धीमी गति से चल रहे है कि कश्मीर भी कोरोना से जूझ रहा है। जिंदगी रुकी हुई है। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि जम्मू कश्मीर की जनता खुश है, उसे उम्मीद है कि नयी ब्यस्था में आतंक के लिए कोई जगह नहीं होगा। उनकी पहचान भी धूमिल नहीं होगा। जैसे पंजाब और बंगाल की अपनी पहचान दशकों बाद बानी हुई है, उसी तरह से उनकी सांस्कृतिक इकाई भी बनी रहेगी, यह केवल राजनीतिक षड्यंत्र मात्र भर है कि ३७० के हटने के साथ कश्मीर की मुलभुत पहचान धूमिल हो जाएगी। दरअसल कश्मीर में बदलाव का आकलन ५ वर्षो बाद ज्यादा सार्थक और तार्किक होगा। उम्मीद है कि केंद्र के द्वारा दिए गए रकम से जम्मू कश्मीर की थम सी गयी ब्यस्था पुनः खिल उठेगी।
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For a long times, China looked like this......
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Wednesday, 6 May 2020

What will the Balkanisation map of China look like?

When Balkanisation occurred in China what would the most powerful states be?
Source:Zeshan Mahmood, studied Geography
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Tuesday, 5 May 2020

If China balkanized (2027), how would it be divided ? यदि चीन 2027 में विघटित होगा तो उसका स्वरूप क्या होगा ?

If China balkanized (2027), how would it be divided ? यदि चीन 2027 में विघटित होगा तो उसका स्वरूप क्या होगा ?
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