स्वतंत्र तिब्बत आन्दोलन -एक नयी राह,एक
नया आयाम
तिब्बत में बौद्ध भिक्षु चीन की दमनकारी शासन
के खिलाफ स्वयं को अग्नि के हवाले कर रहें हैं।
17 अक्टूबर 2011 को 20
वर्षीय तेजिन वान्ग्मो नामक
भिक्षु पूर्वोत्तर तिब्बत के Mamae आश्रम,Ngaba में
फ्री-तिब्बत का नारा देते
हुए खुद को अग्नि में समर्पित कर दिया।2009के बाद तिब्बत में औसतन 20 वर्ष आयु के 32 युवकों ने चीनी
दमनकारी शासन के विरोध में स्वतंत्र तिब्बत के उदघोष ,जयकारा के साथ
खुद को आग में जला लिया।वांगमो जिसको जलने से मृत्यु हुई,ऐसा करने वाला
पहला भिक्षु था।
बुद्धिष्टों का यह मानना है कि मानव के रुप में
पुनर्जन्म अत्यन्त ही दुर्लभ है।परन्तु इसके साथ ही साथ तिब्बतियों की यह मान्यता
एवं एवं विश्वास है कि आत्माघात करने से 500 पुनर्जन्म दूसरे रुपों में लेने के
पश्चात फिर से मानव के रूप में पुनर्जन्म हो सकता है।इस विश्वास एवं वास्तविकता के
बावजूद कि जो चेतनायुक्त जीवन और सभी संवेदनशील जीवन के सम्मान के लिए करुणा की
मौलिक शिक्षा में शिक्षित हुए वे बौद्ध भिक्षु व भिक्षुनियाँ किरोसिन तेल शरीर पर
डालकर स्वयं को आग के समर्पित कर अपने जीवन को बुझा दे रहें हैं।यह अत्यंत ही
चिन्तनीय विषय है।जीवन न्योछावर करने की इस कृति का कारण तिब्बतियों की
स्वतन्त्रता की इस आकाँक्षा को चीन के द्वारा नकारना ही नहीं बल्कि झुठलाना भी है।
तेजिन वान्ग्मो की राह पर 19 वर्षीय नोरबू दमडुल जब अपने को अग्नि में समर्पित
किया तो वह तिब्बत की आजादी के लिए एवं पूज्य दलाई लामा के तिब्बत लौटने का नारा
लगातार बुलन्द करते रहा जब तक कि वह मुर्क्षित न हुआ। लेकिन बिजिंग इस उत्कर्ष को समझने में विफल है।इन इन घटनाओं
पर टिप्पणी करते हुए चीन में मानवाधिकार के निर्देशक (Director Human rights watch ) ,सोफी
रिचर्डसन ने कहा कि "Ngaba
जैसे क्षेत्रों में लगातार बढ़ते हुए तनाव को रोकने के लिए,मुक्त
अभिब्यक्ति ,संघ,और तिब्बती मंठो
में धार्मिक विश्वास के अधिकार में कटौती कर ,सुरक्षा मापदण्ड का खाका तैयार करना है।" Ngaba में
स्थिति अत्यन्त ही खतरनाक एवं भयंकर बन चुकी थी।जो लगातार बनी हुई है।जहाँ तिब्बत
की स्वन्त्रता के लिए स्वयं को बलिदान देना एक सहज एवं सामान्य सी घटना बन चुकी
है।बीजिंग यहाँ विशेषतः अग्रणी सुरक्षा के नाम पर कड़े प्रबन्ध कर दिया है।सभी मठों
को सुरक्षा अधिकारियों द्वारा बन्द कर दिया गया है।अनिवार्य नियमों के तहत भिक्षु
और भिक्षुणियों को हिरासत में ले लिया
गया है।सरकारी परमिट प्राप्त मठवासियों को भी मंठों के प्रागंण से बाहर जाने पर
रोक लगा दिया गया है।इन घटनाओं से पहले ही अगस्त 2011 में कीर्ति मठ का पानी और
बिजली आपूर्ति बन्द कर दिया गया।तथा भिक्षुओं के रिश्तेदार और आगन्तुकों का मठ
परिसर में प्रवेश प्रतिबन्धित कर दिया गया।Human rights watch की प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार Ngaba में
बीजिंग सार्वजनिक सुरक्षा पर खर्च सिचुआन प्रान्त के अन्य counties के
अपेक्षा 4 से 5 गुना खर्च कर रहा है।
सुरक्षा में सुधार करने की कोशिश के नाम पर चीन
कीर्ति मठ के तीनों मुख्य प्रवेश द्वार पर एक सशस्त्र चौकी तैनात कर रखा है।इसके
अलावे एक और सशस्त्र दल मठ के भीतर 20 कमरों वाला एक
प्रकोष्ठ (अनुभाग)में रह रहा है।इस सुरक्षा योजना के तहत मंठों के क्षेत्र को 5
वर्गों,प्रत्येक वर्ग को 50 छोटे
डिभिजन,जो आसन्न सुरक्षा नियंत्रण
के लिए छोटी-छोटी इकाइयोंइकाईयों में विभाजित है।जो भीक्षुओं के देशभक्ति शिक्षा
एवं हड़ताल पर रोक के लिये एक बहुत ही कठोर अभियान के रूप में देखा जा रहा है।इस
कठोर सुरक्षा तन्त्र के कारण अपनी स्वतन्त्रता की तीव्र वैचारिक अनुभूति रखने वाले
तनावग्रस्त 2500 भिक्षु-भिक्षुणी आज
अपने-अपने कक्षों (शयन-कक्ष) में वास्तविक रूप (पूर्णतया) में कैद हैं। इसके अलावे
भी चीन एक वृहत्त एवं सूक्ष्म सुरक्षातंत्र मठवासी क्षेत्र में खड़ा कर रखा है।
इस यातना पूर्ण स्थिति में सुरक्षा अधिकारीयों
द्वारा आज उन भिक्षुओं से दबाव पूर्वक
कहलवाया जाता है कि "मै दलाई लामा गुट का विरोधी हूँ।मै इस विभाजन का पक्षधर
नहीं हूँ।मै कम्युनिष्ट पार्टी से प्यार करता हूँ।व मेरे उपर कम्युनिष्ट पार्टी की
बड़ी असीम कृपा है।"
अन्तर राष्ट्रिय प्रेक्षकों द्वारा कीर्ति मठ के
भिक्षुओं की स्वतन्त्रता की मांग समय-समय पर उठायी जाती रही है।जो बीजिंग के लिए
एक लम्बी चिन्ता का विषय बन चूका है।बीजिंग इस तरह के सार्वजनिक विरोध का कठोरता
पूर्वक प्रतिक्रिया देता आया है।जो चीनी छात्रों का 1989 में त्यान आमेन
स्क्वायर पर विरोध के समय दमन में,या
2008 में
तिब्बत और झिजियंग प्रान्त दोनों में लोकप्रिय विरोध के दमन में,या आज Ngaba में
वर्तमान दमन के दौरान दिखायी पड़ता है।जो इन क्षेत्रों में शान्ति एवं सुरक्षा के
नाम पर एक अस्थायी समाधान ही है।इन प्रदर्शनों एवं विरोधों के मूल कारण से मुंह का
अर्थ है कि Ngaba में
विरोध जारी रहेगा और स्वतन्त्रता के लिए बलिदान देने के लिए इच्क्षुक तिब्बतियों
की संख्या में वृद्धि होना भी निश्चित रहेगा।चीन की सरकार को यह एहसास होना चाहिए
कि तिब्बत में सशस्त्र सुरक्षा बलों की तैनाती में वृद्धि भी एक मुख्य कारण है,जिससे विशेष रूप
से Ngaba में
भिक्षुओं और पूर्व भिक्षुओं अपने को अग्नि के हवाले कर अपना बलिदान प्रदर्शित कर
रहें हैं।छः दशकों से चला आ रहा इस अहिंसक आन्दोलन के करवायी के अन्तिम एवं
बाध्यकारी रूप ही इस प्रकार के आत्मबलिदान का कारण हो सकता है।इसी प्रकार की एक
घटना Damdul में
7 अक्टूबर 2011 को 20 वर्षीय Khaying और 18 वर्षीय Choephel के
आत्मबलिदान के समय अग्नि से बाहर निकालकर चीनी लाल सैनिकों द्वारा बुरी तरह पीटा
गया।जिनके विषय में आज तक उनकी चिकित्सीय अवस्था की सूचना Damdul के लोगों
को नहीं है कि वे जीवित भी हैं या मरे।7 अक्टूबर 2011 की
यह घटना अवश्य ही इस समस्या को गहरा दिया और आन्दोलन को तीव्र बना दिया।
विरोध प्रदर्शन का आत्मबलिदान का यह तरीका भले
ही हताशा का भी हो सकता है,परन्तु बीजिंग बस,सडकों,और
रेलवे के निर्माण से इस गुस्से को ठण्डा नहीं कर सकता है।जब Ngaba स्वतन्त्रता
आन्दोलन की बहुत ही संकटपूर्ण चुनौतियों से जूझ रहा था,तब
तिब्बत के किसान व गृहस्थ गृहस्वामी "फ्री-तिब्बत"के नारे के साथ अपनी
बकरियाँ चराने जाते थे।इस प्रकार चीनी नेतृत्व को इस तथ्य का सामना करना ही होगा
कि प्रतिरोध या तो जारी रहेगा या तिब्बतियों को उनके आत्मनिर्णय के क़ानूनी अधिकार
देना ही पड़ेगा।
यह 6
दशक पुराना तिब्बत मुक्ति का आन्दोलन 2008 से एक नये आयाम
से जुड़ चुका है।हिमाल के शेरपा और भोट की केरुंग -कुन्ती के प्रति चाह और उसके
आनन्द को भूल नहीं पाते हैं।और यह आनन्द तभी उनको प्राप्त हो पायेगा,जब
तिब्बत की अपनी सार्वभौमिकता हो।और यही आनन्द हिमाल के शेरपा और भोट को 2008-2009
में स्वतंत्र-तिब्बत आन्दोलन को नैतिक समर्थन देने के लिए अभिभूत किया,प्रेरित
किया।और सिमकोट से ताप्लेजुंग तक पूरे हिमाल का नैतिक समर्थन इसको प्राप्त
हुआ।जिसमे सुख-दुःख का सम्पर्क मार्ग ग्याला,लम्जुंग
और थाप्ले भन्जियांग रहा है।
इसका दूसरा कारण यह भी है कि 27 सितम्बर
2004 में पाँचथर के माओवादी PLGA के शिविर पर
नेपाली सेना के अभियान में पकडे गये 27 लड़ाकुओं को भले
ही चीन अपना नागरिक होने से इन्कार कर दिया,पर हिमाल
के लोगों को यह पूर्णतः आभास हो गया कि वर्त्तमान नेपाल की अशान्ति एवं अस्थिरता
में माओवादियों को चीन द्वारा ही सहयोग प्राप्त है।जिसके कारण हिमाल के लोगों के
परिवार व कुटुम्ब के सदस्यों की हजारों की संख्या में हत्या हुई और सैकडों अभी तक
लापता है।जो नेपाली माओवादियों द्वारा किया गया।जिसका प्रतिवाद तिब्बत की
स्वतन्त्रता ही है।अतः आज तिब्बत की स्वतन्त्रता की आवाज की प्रेरणा पूज्य दलाई
लामा एवं धर्मशाला के हाथों से बाहर निकलकर सिमकोट से ताप्लेजुंग के हिमाल के
लोगों के साथ जुड़ चुकी है।
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