इराक- क्या ऑटोमन साम्राज्य की बुनियाद ही गलत थी
आधुनिक मध्य एशिया की सीमा रेखा कमोबेश पहले विश्व युद्ध के दौरान की विरासत है. ऑटोमन साम्राज्य के पराजय और बिखराव के बाद उपनिवेशवादी शक्तियों ने ये सीमाएँ तय की थीं.
प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व जब कभी यूरोप ने इस्लामी अरब साम्राज्य के हिस्से को पराजित कर ऑटोमन साम्राज्य का निर्माण की बुनियाद ही गलत रही|
भूगोल,इतिहास,व समाज के खोने का संकट आज की समस्या है|
अब ये दो कारणों से संकट में है, पहला सीरिया में लगातार जारी हिंसा और विभाजन, दूसरा इराक़ में आईएसआईएस की तरफ़ से किए जा रहे हमले बशर्ते आईएसआईएस को मिली सैन्य बढ़त को पलट नहीं दिया जाता. इराक़ को पहले इतना ख़तरा कभी नहीं था.
इसका इस क्षेत्र की भौगोलिक राजनीति एवं उसके बाहर व्यापक प्रभाव पड़ेगा. इराक़ एक के बाद दूसरे संकट में फंसता जा रहा, लेकिन इसके लिए कौन से कारण ज़िम्मेदार हैं?सीरिया और इराक़ के संयुक्त संकट से एक नए 'राष्ट्र' के उदय की संभावना बन गई है, जो पू्र्वी सीरिया और पश्चिमी इराक़ से बना होगा. यह वह इलाक़ा है जहाँ आईएसआईएस से जुड़े जिहादी का प्रभाव है.
1. बुनियादी गड़बड़
कुछ लोगों के लिए इराक़ की समस्याओं की शुरुआत आधुनिक इराक़ की स्थापना के साथ हो गई थी. उपनिवेशवादी शक्ति रहे ब्रिटेन ने यहाँ हाशमाइट साम्राज्य की स्थापना की थी. यह साम्राज्य शिया या कुर्द जैसे दूसरे समुदायों के प्रति ज़्यादा ध्यान नहीं देता था. इराक़ के उथलपुथल भरे इतिहास में यह समस्या बार-बार सिर उठाती रही है.
राजशाही का समापन एक सैन्य तख़्तापलट से हुआ. ये तख़्तापलट मिस्र में हुए नासिर के तख़्तापलट जैसा ही था. तख़्ता पलट करने वाले धर्मनिरपेक्ष, राष्ट्रवादी और आधुनिकता के पैरोकार थे.
इसी सिलसिले में अंततोगत्वा सद्दाम हुसैन सत्ता में आए जिनके सुन्नी प्रभुत्व वाले शासन में शियाओं और कुर्दों के साथ कड़ा बर्ताव किया गया.
सद्दाम के शासन काल में हुए ईरान-इराक़ युद्ध के दौरान पश्चिमी शक्तियों से उन्हें मिले समर्थन ने उनके क्रूर शासन को मज़बूती दी.
2. ऑपरेशन इराक़ी फ्रीडम
बाथ पार्टी की सरकार को 2003 में अमरीका और ब्रिटेन की सेना के हमले ने ख़त्म कर दिया. सद्दाम हुसैन को गद्दी से हटा दिया गया, और इराक़ी सरकार ने उनपर मुक़दमा चलाकर उन्हें फांसी दी. इराक़ की सैन्य शक्ति को लगभग विघटित कर दिया गया और उसकी जगह एक नए सुरक्षा बल का गठन किया गया.
इराक़ में हुए युद्ध को कुछ नवरूढ़िवादी अमरीकी इस क्षेत्र में लोकतंत्र बहाल करने के लिए उठाया गया क़दम मानते हैं. लेकिन इस युद्ध ने यहाँ के राजनीतिक समीकरण बदल दिए जिसके तहत सभी समुदायों को एक करने की बात की गई लेकिन असलियत में एक ऐसा राज्य बना जिसमें बहुसंख्यक शिया समुदाय का ज़्यादा प्रभाव हो गया.
कई लोगों को इस बात पर अब संदेह हो गया है कि इराक़ को अखंड राष्ट्र के रूप में बचाया जा सकता है क्योंकि देश के उत्तरी कुर्द बहुल इलाक़े ने काफ़ी हद तक स्वायत्तता हासिल कर ली थी.
3. अमरीकी सेना का जाना
अमरीकी सेना ने दिसबंर 2011 में इराक़ छोड़ दिया. पहले अमरीका इराक़ी सेना की मदद के लिए कुछ सैन्य टुकड़ियाँ छोड़ने वाला था लेकिन दोनों देशों के बीच इसे लेकर सहमति नहीं बन सकी थी. उसके बाद से इराक़ की सुरक्षा पूरी तरह से इराक़ की सेना के हवाले रह गई जो कि बहुत ज़्यादा सक्षम नहीं है.
अमरीका अल-क़ायदा समर्थक जिहादी चरमपंथ का मुक़ाबला करने के लिए कई सुन्नी समूहों को अपने साथ लाने में सफल रहा था. अमरीकी सेना के जाने के बाद यह व्यवस्था शीघ्र ही समाप्त हो गई.
शिया प्रभुत्व वाली सरकार के शासन में सुन्नियों को सुरक्षा बलों की ज़्यादतियों का शिकार होना पड़ रहा था.
बहुत संभव है कि इराक़ी सेना के दबंग रवैए के कारण ही आईएसआईएस के लिए नए लड़ाकों को शामिल करना आसान बना दिया हो.
4. नए इराक़ में संप्रदायवाद
अमरीका के ज़रिए सद्दाम हुसैन को सत्ता से बाहर करने का सबसे बड़ा विद्रूप इस इलाक़े में ईरान के प्रभुत्व में बढ़ोतरी के रूप में सामने आया. ईरान इराक़ के शियाओं को एक व्यापक क्षेत्रीय संघर्ष में अपने सहयोगी के तौर पर देखने लगा.
संभव है कि ईरान से मिले समर्थन के कारण उपजे इराक़ी प्रधानमंत्री नूरी अल-मलिकी के शिया वर्चस्ववादी रवैये ने बहुत से सुन्नियों को नाराज़ किया हो जिससे देश में सुरक्षा व्यवस्था की स्थिति बिगड़ी.
5. आर्थिक और सामाजिक विफलता
अलगाववाद और शिया-सुन्नी विभेद को बहुत से राजनीतिक टिप्पणीकार मुर्ग़ी और अंडे वाली स्थिति मानते हैं.
क्या अलगाववाद के कारण उपजे मतभेद देश की असल समस्या हैं? या इराक़ की आर्थिक और सामाजिक विफलता ने समाजिक विभेद को बढ़ावा दिया है?
तेल के समृद्ध भंडार होने के बावजूद इराक़ी जनता ग़रीबी की मार झेलती रही है. देश में भ्रष्टाचार का स्तर भी काफ़ी ऊपर रहा है.
6. क्षेत्रीय संदर्भ
मध्य एशिया में कुछ भी यूँ ही नहीं होता. इराक़ की जनता अपनी समस्याओं के बीच फंसी रही लेकिन उसने देखा की अरब में आई क्रांति आई भी चली गई, मिस्र की राजनीतिक स्थिती कमोबेश गोल-गोल घूमती रही, और सबसे महत्वपूर्ण पड़ोसी सीरिया में उथलपुथल मची हुई है. इराक़ में जिहादी उभार का असर उसके पड़ोसी देशों पर भी पड़ना तय है.
खाड़ी देशों के कट्टर सुन्नी लड़ाकों से मिले समर्थन ने आईएसआईएस जैसे संगठन के उभरने और संगठित होने में मदद की और इसे एक व्यापक क्षेत्रीय उद्देश्य उपलब्ध कराया है.
सीरिया की असल सरकार और जिहादियों के बीच सीधी टक्कर को प्रमाणित करना मुश्किल है. ऐसी ख़बरें आती रही हैं कि सीरिया की सेना को ऐसे संगठनों पर कम और अधिक उदार पश्चिमी समर्थक लड़ाकों पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा गया है. इसकी वजह से आईएसआईएस को इस इलाक़ें में अपनी प्रशासकीय व्यवस्था स्थापित करने में मदद मिली है.
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