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Saturday 2 January 2016

नेपाल का संविधान : हेनान से लुम्बनी

सारी, वैमनस्य,भेदभाव और खास दबंगता से भरा नेपाल का संविधान लाख विरोधों के बाद भी चीन के हेनान से बुद्ध के लुम्बनी के बीच एक deal के रूप में बन ही गया।सभी प्रकार के सांस्कृतिक, परंपरा और बेटी-रोटी के संबंधों को ठुकरा कर आज का नया नेपाली संविधान "लुम्बनी से सारनाथ" और "जनकपुर से अयोध्या" की जन भावनाओं पर प्रत्यक्षतः एक भीषण कुठाराघात करते हुए उभर कर सामने आया। आज का तराई-मधेश का संघर्ष इसी कुठाराघात की असह्य वेदना का प्रतिफल है।

चीन का झिजियांग और फुजियान प्रान्त आज पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव से आच्छादित है।,जिसमें धार्मिक असहिष्णुता की चीन की कम्युनिष्ट पार्टी के सरकारी दबाव की नीतियों के बावजूद भी 30 वर्ष के आयु के 25% युवा ईसाईयत से प्रभावित हैं,आबादी का 40% बौद्ध मत का अनुयावी है।

चीन आज अपने को दक्षिण पूर्व एशिया में एक Soft Power बनने के लिए अपने पूर्व चीन हेनान को 128 मीटर ऊँची बुद्ध की मूर्ति के साथ अंतरराष्ट्रीय बौद्ध विश्वविद्यालय और 500 से अधिक गुम्फा का शहर बना चूका है।

2006, 2009, व 2012 में पूर्व चीन के ज़िन्गसू प्रान्त के लिंग्सान में अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मलेन सफलता पूर्वक आयोजित कर चुका है। अब तो 2012 के इस सम्मलेन में प्रस्ताव पारित कर स्थायीरूप से लिंग्सान में  प्रत्येक दो वर्ष पर अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मलेन करने का निर्णय भी लिया।

चीन अपने इस Soft Power के औरा को अपने विस्तारवादी नीति के तहत "एशिया पैसिफिक एंड कोऑपरेसन फाउंडेशन" (एपेक) के माध्यम से 6 अरब डॉलर का सहयोग कर, नेपाल के लुम्बनी के क्षेत्र में चीनी कल्चरल सेण्टर और मंडारिन भाषा का शिक्षा केंद्र चला रहा है।

आज इसी चीनी Soft Power का स्वरुप नेपाली संविधान में स्पष्ट झलक रहा है। जो तराई मधेश के नवलपरासी से पश्चिम के जिलों को, थारु विकास को उपेक्षित व तिरोहित कर, एक प्रान्त के रूप में चिन्हित न करते हुए इस पुरे क्षेत्र को एनी कई पहाड़ी प्रांतों के साथ टुकड़े टुकड़े कर जोड़ दिया। आज का नेपाली संविधान चीन के इस soft power के पीछे छुपा हुआ विस्तारवादी नीति के छाया में हेनान से लुम्बनी तक के चीनी विस्तारवादी मार्ग को ही सुगम व प्रशस्त करने का सुस्पष्ट एक नियोजित परिणाम है।

अब मात्र एक प्रतीक्षा तराई मधेश का यह अपने अधिकारों , हक़ और हकूक की लड़ाई सीता की एक और अग्नि परीक्षा की चित्कार अंतरराष्ट्रीय वैश्विक जगत सुन पाता है कि नहीं ?, विश्व को शांति सदभाव का बुद्ध का सन्देश लुम्बनी से चल गया में बौद्धिसत्व को प्राप्त करेगा? ताकि सारनाथ से विकरित किरणें विश्व को फिर से शांति का सन्देश दे पायेगी?

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