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बरबस उतारने लगे, नाग असर जहर का। कंगन कलाई की, पूछती भाव खँजर का। ज़िंदगी! मैंने देखी, बार- बार कई बार, पुजारी अमन के, पर नोचते कबूतर का। ...

Friday 22 January 2016

पुरातत्ववेत्ता डॉ. के के मुहम्मद का खुलासा, वामपंथियों ने हल नहीं होने दिया अयोध्या विवाद


          वामपंथियों की भारत और खासतौर से हिन्दू विरोधी भूमिका अब कोई छिपी बात नहीं है. विदेशी विचारधारा से संचालित ये मुट्ठी भर लोग स्वतन्त्रता के पश्चात भारतीय व्यवस्था के हर महत्वपूर्ण अंग में किसके द्वारा और किस प्रकार रोपित किए गए, ये भी लगभग सर्व विदित है.
लेकिन ऐसा किया क्यों गया, ये भेद ज़रूर अब धीरे-धीरे उजागर होने लगा है. विश्व की कुछ शक्तियां नहीं चाहती कि भारत कभी विकास कर सके सो उसे उलझाए रखने के लिए कुछ न कुछ विवाद सुलगाए रखना ही इन शक्तियों का ध्येय है.
इसकी मिसाल जानेमाने पुरातत्ववेत्ता डॉ. केके मुहम्मद की आत्मकथा में मिलती है जिसमें उन्होंने वामपंथी इतिहासकारों को अयोध्या मामले का हल नहीं निकलने के लिए जिम्मेदार ठहराया है. उनके अनुसार वामपंथियों ने इस मसले का समाधान नहीं होने दिया.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) उत्तर क्षेत्र के पूर्व निदेशक डॉ. मुहम्मद ने मलयालम में लिखी आत्मकथा जानएन्ना भारतीयन (मैं एक भारतीय) में यह दावा किया है.
डॉ मुहम्मद के मुताबिक़, वामपंथी इतिहासकारों ने इस मुद्दे को लेकर बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के नेताओं के साथ मिलकर देश के मुस्लिमों को गुमराह किया. उनके अनुसार, इन लोगों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट तक को भी गुमराह करने की कोशिश की थी.
आत्मकथा में डॉ. मुहम्मद ने दावा किया है कि 1976-77 के दौरान एएसआइ के तत्कालीन महानिदेशक प्रो. बीबी लाल के नेतृत्व में पुरातत्ववेत्ताओं के दल द्वारा अयोध्या में की गई खुदाई के दौरान विवादित स्थल से हिंदू मंदिर के अवशेष मिले थे.
डॉ. मुहम्मद भी उस दल में शामिल थे. आत्मकथा में वामपंथी विचारकों और अन्य के बीच लंबे समय से चले आ रहे मतभेदों को भी उजागर किया गया है.
डॉ. मुहम्मद ने बताया कि इरफान हबीब (भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के तत्कालीन चेयरमैन) के नेतृत्व में कार्रवाई समिति की कई बैठकें हुईं थीं. उन्होंने कहा, अयोध्या मामला बहुत पहले हल हो जाता, यदि मुस्लिम बुद्धिजीवी, वामपंथी इतिहासकारों के ब्रेन-वाश का शिकार न हुए होते.
डॉ. मुहम्मद के मुताबिक़, रोमिला थापर, बिपिन चंद्रा और एस गोपाल सहित इतिहासकारों के एक वर्ग ने तर्क दिया था कि 19वीं शताब्दी से पहले मंदिर की तोड़फोड़ और अयोध्या में बौद्ध जैन केंद्र होने का कोई जिक्र नहीं है. इसका इतिहासकार इरफान हबीब, आरएस शर्मा, डीएन झा, सूरज बेन और अख्तर अली ने भी समर्थन किया था.
डॉ. मुहम्मद कहते हैं, ये वे लोग थे, जिन्होंने चरमपंथी मुस्लिम समूहों के साथ मिलकर अयोध्या मामले का एक सौहार्दपूर्ण समाधान निकालने के प्रयासों को पटरी से उतार दिया. इनमें से कइयों ने सरकारी बैठकों में हिस्सा लिया और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का खुला समर्थन किया.
पुस्तक के एक अध्याय में डॉ. मुहम्मद ने लिखा है, जो कुछ भी मैंने जाना और कहा है, वह और कुछ नहीं बल्कि ऐतिहासिक सच है.
उनके अनुसार, हमे विवादित स्थल पर एक नहीं, बल्कि 14 स्तंभ मिले थे. सभी स्तंभों पर गुंबद खुदे थे. ये 11वीं व 12वीं शताब्दी के मंदिरों में पाए जाने वाले गुंबदों के समान थे. गुंबद ऐसे नौ प्रतीकों में एक हैं, जो मंदिर में होते हैं.
डॉ. मुहम्मद ने बताया कि यह भी काफी हदतक स्पष्ट हो गया था कि मस्जिद एक मंदिर के मलबे पर खड़ी है. उन दिनों मैंने इस बारे में अंग्रेजी के कई समाचार पत्रों को लिखा था. मेरे विचार को केवल एक समाचार पत्र ने प्रकाशित किया और वह भी लेटर टू एडिटर कॉलम में.
डॉ. मुहम्मद के अनुसार, वामपंथी इतिहासकारों ने इस मुद्दे पर इलाहाबाद हाई कोर्ट को भी गुमराह करने की कोशिश की. अदालत द्वारा निर्णय दिए जाने के बाद भी इरफान और उनकी टीम सच मानने को तैयार नहीं है.

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