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क्षेत्रीय सुरक्षा , शांति और सहयोग की प्रबल संभावना – चीथड़ों में लिपटी पाकिस्तान की राष्ट्रीयत

“ क्षेत्रीय सुरक्षा , शांति और सहयोग की प्रबल संभावना – चीथड़ों में लिपटी पाकिस्तान की राष्ट्रीयत ा “ —गोलोक विहारी राय पिछले कुछ वर्षों...

Wednesday, 29 November 2017

"दलितवाद" सामाजिक बिखराव की एक प्रवंचना

पीड़ित - वंचित वर्ग को परिभाषित, सम्बोधित करने का अभिप्राय यह नहीं कि हम इतिहास के अतीत पक्ष को ही केवल देखें। बल्कि उसकी उस निरन्तरता को प्रकाशित उजगारित करना होगा जो नूतन सामाजिक समग्रता की ओर उन्मुख हो रहा है। पीड़ित वंचित समाज के लिए उलाहनापूर्ण सम्बोधन " दलित " शब्द को वर्गीकृत, विशेषीकृत करने के स्थान पर हमें आम पीड़ित - वंचित जन की पीड़ाओं के साथ जुड़ना होगा। समय की आवाज़ उनके सम्पूर्ण सामाजिक ढाँचे में घुल मिल जाने की है।न कि उन्हें पृथक, विशेषीकृत - वर्गीकृत करने की है। वर्तमान राजनीति और उसके द्वारा देय सुविधा आरक्षण मात्र पीड़ित - वंचित समाज को विशेषीकृत वर्ग बनाने का एक लोक लुभावना  षडयंत्र भर है। यह सत्य भी है और कोई सन्देह भी नहीं कि कालान्तर में पीड़ित - वंचित वर्ग को सामाजिक और आर्थिक दोनों दृष्टियों से अपमान, उपेक्षा, पीछड़ापन, उत्पीड़न, प्रताड़ना, शोषण का शिकार होना...
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Monday, 27 November 2017

" The Militant Nationalism in India " by Bimal Bihari Majumdar

" The Militant Nationalism in India " by Bimal Bihari Majumdar Inspiration from the Gita, the Chandi and the Vedanta                 As most of the members of the Dhaka Anushilan Samiti and the Barisal Party were conservative Hindus and were also influenced by Hindu revivalism, it was quite natural for them to look to Hindu sacred texts such as the Gita, the Chandi, and the Vedanta for inspiration and guidance in their life and death struggle against the colonial rtule in the country.According to the Vedanta, the jivatma (individual soul) forms part or is the expression of the paramatma (supreme soul or God). The Vedantist seeks the godhead within himself in order that he may attain moksha or spiritual salvation. C.R.Das, who was Aurobindo‘s counsel...
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Thursday, 9 November 2017

हाइफा मुक्ति - आनंद कुमार, पटना

हमारा इतिहास लिखने वाले लुगदी उपन्यासकारों ने चूँकि कई तथ्य पहले ही छुपा रखे हैं इसलिए भारतीय सेना के कारनामे को छुपाना भी आसान हो गया | पहले विश्व युद्ध के दौरान कई भारतीय सिपाही भी लड़े थे और उनका इतिहास नागरिकों को कभी आजादी के बाद बताया ही नहीं गया | इसी वजह से लोगों को ये नहीं पता है कि इसराइली हैफा(Haifa) शहर को इस्लामिक ऑट्टोमन खलीफा के चंगुल से छुड़ाने वाले सैनिक भारतीय घुड़सवार थे | फिफ्टीन्थ इम्पीरियल सर्विस कैवलरी ब्रिगेड के सैनिक 1918 में इसराइल के हैफा शहर को छुड़ाने के लिए लड़े थे | इनमें से कई वहीँ वीरगति को प्राप्त हुए और करीब 900 को वहीँ दफनाया गया है | सौ साल पहले हुई इस लड़ाई में 400 साल की इस्लामिक हुकूमत से हैफा को छुटकारा मिल...
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Monday, 6 November 2017

विशुद्ध माओवाद

अभी पुष्पा को कालेज आये चार ही दिन हुए थे कि उसकी मुलाक़ात एक क्रांतिकारी से हो गयी. लम्बी कद का एक सांवला सा लौंडा… ब्रांडेड जीन्स पर फटा हुआ कुरता पहने क्रान्ति की बोझ में इतना दबा था कि उसे दूर से देखने पर ही यकीन हो जाता था ..इसे नहाये मात्र सात दिन हुये हैं….. .बराबर उसके शरीर से क्रांति की गन्ध आती रहती थी… लाल गमछे के साथ झोला लटकाये सिगरेट फूंक कर क्रांति कर ही रहा था तब तक….पुष्पा ने कहा…”नमस्ते भैया….“हुंह ये संघी हिप्पोक्रेसी.” ..काहे का भइया और काहे का नमस्ते? ..हम इसी के खिलाफ तो लड़ रहे हैं… प्रगतिशीलता की लड़ाई… ये घीसे पीटे संस्कार… ये मानसिक गुलामी के सिवाय कुछ नहीं….. आज से सिर्फ लाल सलाम साथी कहना.पुष्पा ने सकुचाते हुए पूछा.. “आप क्या करते हैं .. क्रांतिकारी ने कहा..”हम क्रांति करते हैं…. जल, जंगल, जमीन की लड़ाई लड़ते हैं.. शोषितों वंचितों की आवाज उठाते हैं..क्या तुम मेरे...
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Saturday, 4 November 2017

सद्यः स्याह

मैंने देखा चाँद कहाँ बताओ ? अंधकार की गहरी खायी भद्रजन की गहरी साजिश लोक व्यवस्था पूरी अन्धी राज्य व्यवस्था यों ही बहरी फिर भी कहते युग बदला है कहाँ बताओ ? नंगे बदन जो दौड़ लगाये रोगों से है जिसका रिश्ता खाली पेट खड़ी मजबूरी खोज रही हर दिन मजदूरी युवकों का ये हाल चला है या परिवर्तन का दौर चला है कहाँ बताओ ? बँटवारे में पायी आजादी पहले बँटवारा फिर आज़ादी पायी आजादी या बँटवारा शेष घिरा है खंडित नारों में फुटपाथों की कथा वही है दीन हीन की व्यथा वही है बँटवारे की इतने सालों में किसका कितना भला हुआ है कहाँ बताओ ? गाँव पगडंडियाँ सुनी सुनी शहर सड़कें भीड़ से बोझिल बीच गाँव में रोये सियार बीच शहर में खुले बार कैसा सगुण गाँव शहर का कहाँ बताओ...
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Thursday, 2 November 2017

एकान्त

जो आनन्द अकेले जीने में है वो भरी भीड़ में नहीं जो खुशी खुद से बतियाने में है वो और कहीं नहीं अपनी ही कहानियाँ नहीं खत्म होती औरों की बात क्या करें अजनबी गलियों के मुसाफिरों से हम कितनी बात करें जो भी हो खुद से खुद का लिखना अच्छा लगता है क्या इतना काफी नही क्या फर्क पड़ता है हमारी कोई पहचान है या नही थोड़ा ही आनन्द स...
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