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क्षेत्रीय सुरक्षा , शांति और सहयोग की प्रबल संभावना – चीथड़ों में लिपटी पाकिस्तान की राष्ट्रीयत

“ क्षेत्रीय सुरक्षा , शांति और सहयोग की प्रबल संभावना – चीथड़ों में लिपटी पाकिस्तान की राष्ट्रीयत ा “ —गोलोक विहारी राय पिछले कुछ वर्षों...

Wednesday, 29 November 2017

"दलितवाद" सामाजिक बिखराव की एक प्रवंचना

पीड़ित - वंचित वर्ग को परिभाषित, सम्बोधित करने का अभिप्राय यह नहीं कि हम इतिहास के अतीत पक्ष को ही केवल देखें। बल्कि उसकी उस निरन्तरता को प्रकाशित उजगारित करना होगा जो नूतन सामाजिक समग्रता की ओर उन्मुख हो रहा है। पीड़ित वंचित समाज के लिए उलाहनापूर्ण सम्बोधन " दलित " शब्द को वर्गीकृत, विशेषीकृत करने के स्थान पर हमें आम पीड़ित - वंचित जन की पीड़ाओं के साथ जुड़ना होगा। समय की आवाज़ उनके सम्पूर्ण सामाजिक ढाँचे में घुल मिल जाने की है।न कि उन्हें पृथक, विशेषीकृत - वर्गीकृत करने की है। वर्तमान राजनीति और उसके द्वारा देय सुविधा आरक्षण मात्र पीड़ित - वंचित समाज को विशेषीकृत वर्ग बनाने का एक लोक लुभावना  षडयंत्र भर है।

यह सत्य भी है और कोई सन्देह भी नहीं कि कालान्तर में पीड़ित - वंचित वर्ग को सामाजिक और आर्थिक दोनों दृष्टियों से अपमान, उपेक्षा, पीछड़ापन, उत्पीड़न, प्रताड़ना, शोषण का शिकार होना पड़ा। यह भी सच है कि इस उपेक्षा, अपमान और प्रताड़ना के लिए क्षेत्रानुसार समाज के कुछ वर्ग विशेष के लोग ही दोषी हों। किन्तु सम्पूर्ण सनातन समाज को इसके लिए दोषी ठहराना एक अतिवादी सोच व निष्कर्ष है। सनातन समाज को देश, काल और परिवेश में सतत होने वाले युगान्तकारी परिवर्तनों - बदलावों को अनदेखा करके अत्याचारी और शोषक मान लेना, स्थायी सामाजिक विखराव का रेखांकन कर मात्र सत्ता के लिए अपनी राजनैतिक रोटी सेकना है। जो कुछ दल व राजनेता कर रहे हैं। जिनको भारत, भारतीयता व भारत की आत्मा से कोई सरोकार नहीं है।

सनातन स्वभाव सम्पूर्ण जड़ और चेतन में एक ही परामत्व तत्व का दर्शन करता है। कुछ तथाकथित अपवादों को छोड़कर हमारे वेदों, उपनिषदों, पुराणों, अरण्य शास्त्रों और अन्यान्य धर्म ग्रंथों में व्यापक मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा है। हम सनातनी विद्या, विनय और करुणा से सम्पन्न पक्षी, चींटी, गाय, हाथी, व्राह्मण और चाण्डाल में एक ही आत्मा का दर्शन करते हैं। वही एकत्व का दर्शन करने वाला पंडित कहलाया।

पीड़ित - वंचित वर्गों में धर्म को लेकर तथाकथित दलित राजनीति के पुरोधाओं ने बहुत सारा सन्देह, भ्रम और पूर्वाग्रह उत्पन्न किये। जो तार्किक होते हुए भी नकारात्मक थी। " होइहि सोई जो राम रचि राखा " इस नियतिवाद, कर्मफलवाद, भाग्यवाद से बाहर निकलना होगा, जो आज अपनी परिस्थितियों, सामाजिक जड़ता और आर्थिक - राहनीतिक सता को बदलने का प्रयत्न नहीं कर पा रही है।

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