अपनी भूख मिटाने के लिए
बाँस की कोपलों में
कुछ कीड़ों ने छेद कर दिये
उन छेदों से जब जब
हवा गुजरती
कोपलों का रोना सुनाई देता
उन कीड़ों को तो पता ही नहीं
बंशी बनाने के उपक्रम में
कि वे संगीत के सर्जन में
हस्तक्षेप कर रहे हैं
सम्यक विचारों को विस्तार दो
कहते ही चेहरा विदीर्ण हो उठता
नजरें नीचे झुका तिरछे देख
तुम्हारे होंठ फड़फड़ा जाते हैं
एक बध और
क्या यह अन्तिम है ?
इसके बाद
मेरी सोच काँप उठती है
मेरे विचार कुण्ठित हो उठते हैं
मैं वापस लेता हूँ
नहीं चाहिये तुम्हारा यह सहयोग
तुम्हारा यह साथ सहकर्म
जो केवल कुंठा व ईर्ष्या से
अपने को सिद्ध कर सकता है
एक अयोग्य, निरा शून्य
नहीं चाहिये वह विश्वास
जिसकी चरम परिणति
तुम्हारी द्वेष, जलन, ईर्ष्या हो
जहाँ कर्म, सामर्थ्य और पुरुषार्थ की
हत्या हो
मैं
अधिक सहिष्णु हूँ अपनी आस्था में
मैं
अधिक तपी हूँ अपने अकर्मों में
मैं
अधिक धार्मिक हूँ अपनी नास्तिकता में
मैं
अधिक सरल हूँ अपनी कठोरता में
मैं
अधिक उदार हूँ अपनी उदासी में
मैं
अधिक मुक्त हूँ अपनी अकेलेपन में
नहीं चाहिये तुम्हारी शोहरत, जो
लोभ, ईर्ष्या, द्वेष, लोभ, चाटुकारिता
दलाली के रंग से तुम पाये हो
बाँस की कोपलों में
कुछ कीड़ों ने छेद कर दिये
उन छेदों से जब जब
हवा गुजरती
कोपलों का रोना सुनाई देता
उन कीड़ों को तो पता ही नहीं
बंशी बनाने के उपक्रम में
कि वे संगीत के सर्जन में
हस्तक्षेप कर रहे हैं
सम्यक विचारों को विस्तार दो
कहते ही चेहरा विदीर्ण हो उठता
नजरें नीचे झुका तिरछे देख
तुम्हारे होंठ फड़फड़ा जाते हैं
एक बध और
क्या यह अन्तिम है ?
इसके बाद
मेरी सोच काँप उठती है
मेरे विचार कुण्ठित हो उठते हैं
मैं वापस लेता हूँ
नहीं चाहिये तुम्हारा यह सहयोग
तुम्हारा यह साथ सहकर्म
जो केवल कुंठा व ईर्ष्या से
अपने को सिद्ध कर सकता है
एक अयोग्य, निरा शून्य
नहीं चाहिये वह विश्वास
जिसकी चरम परिणति
तुम्हारी द्वेष, जलन, ईर्ष्या हो
जहाँ कर्म, सामर्थ्य और पुरुषार्थ की
हत्या हो
मैं
अधिक सहिष्णु हूँ अपनी आस्था में
मैं
अधिक तपी हूँ अपने अकर्मों में
मैं
अधिक धार्मिक हूँ अपनी नास्तिकता में
मैं
अधिक सरल हूँ अपनी कठोरता में
मैं
अधिक उदार हूँ अपनी उदासी में
मैं
अधिक मुक्त हूँ अपनी अकेलेपन में
नहीं चाहिये तुम्हारी शोहरत, जो
लोभ, ईर्ष्या, द्वेष, लोभ, चाटुकारिता
दलाली के रंग से तुम पाये हो
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