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Saturday, 4 November 2017

सद्यः स्याह

मैंने देखा चाँद
कहाँ बताओ ?

अंधकार की गहरी खायी
भद्रजन की गहरी साजिश
लोक व्यवस्था पूरी अन्धी
राज्य व्यवस्था यों ही बहरी
फिर भी कहते युग बदला है
कहाँ बताओ ?

नंगे बदन जो दौड़ लगाये
रोगों से है जिसका रिश्ता
खाली पेट खड़ी मजबूरी
खोज रही हर दिन मजदूरी
युवकों का ये हाल चला है
या परिवर्तन का दौर चला है
कहाँ बताओ ?

बँटवारे में पायी आजादी
पहले बँटवारा फिर आज़ादी
पायी आजादी या बँटवारा
शेष घिरा है खंडित नारों में
फुटपाथों की कथा वही है
दीन हीन की व्यथा वही है
बँटवारे की इतने सालों में
किसका कितना भला हुआ है
कहाँ बताओ ?

गाँव पगडंडियाँ सुनी सुनी
शहर सड़कें भीड़ से बोझिल
बीच गाँव में रोये सियार
बीच शहर में खुले बार
कैसा सगुण गाँव शहर का
कहाँ बताओ ?

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