Translate

Featured post

क्षेत्रीय सुरक्षा , शांति और सहयोग की प्रबल संभावना – चीथड़ों में लिपटी पाकिस्तान की राष्ट्रीयत

“ क्षेत्रीय सुरक्षा , शांति और सहयोग की प्रबल संभावना – चीथड़ों में लिपटी पाकिस्तान की राष्ट्रीयत ा “ —गोलोक विहारी राय पिछले कुछ वर्षों...

Friday, 20 November 2015

अब अरब लोगों का इस्लाम से मोहभंग होना शुरू :अरब लोग इस्लाम को अब तेजी से छोड़ रहे हैं अ-👍हमद नूर

अरब जगत में नास्तिक होना कितना सुरक्षित?

अब अरब लोगों का इस्लाम से मोहभंग होना शुरू
अरब लोग इस्लाम को अब तेजी से छोड़ रहे हैं

अरब मुस्लिमImage copyrightGetty
कथित ‘अरब बसंत’ के बाद एक तरफ़ जहां अरब जगत में कट्टर धार्मिक आवाज़ों का शोर बढ़ रहा है वहीं दूसरी तरफ़ कई अरब नौजवान अब ख़ुद के नास्तिक होने की घोषणा सरेआम करने लगे हैं.
ये नौजवान धार्मिक विचार और बहस का सोशल मीडिया पर खुलेआम मज़ाक़ उड़ा रहे हैं.
अरब जगत में धर्म पर सवाल खड़ा करना एक तरह से वर्जित है, इसीलिए नौजवानों के नास्तिक होने पर बहुत गंभीर बहस छिड़ गई है, ख़ासकर सोशल मीडिया पर.

धर्म से जुड़े विषय पर खुलेआम बातचीत करना मुश्किल है इसलिए इसका भी सही-सही आकलन नहीं किया जा सकता है कि मध्यपूर्व और उत्तरी अफ़्रीका में दर असल कितने नास्तिक हैं लेकिन कुछ मुसलमान धर्मगुरू इस बारे में कुछ आंकड़े ज़रूर पेश करते हैं.
मिस्र के दारुल इफ़्ता (धार्मिक मामलों पर फ़तवा देने वाली सरकारी संस्था) की पिछले साल जारी रिपोर्ट के मुताबिक़ दिसंबर 2014 तक मिस्र में 866 नास्तिक थे. रिपोर्ट में इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि वो इस संख्या पर कैसे पहुंचे.
लेकिन पिछले साल ही सऊदी अरब के कई मीडिया संस्थानों ने विन-गैलप इंटरनेशनल का एक अध्ययन जारी किया. इसमें कहा गया था कि पांच प्रतिशत सऊदी आबादी नास्तिक है.
सऊदी अरब की कुल आबादी 2.9 करोड़ है.
नास्तिक अरब दुनिया में किस माध्यम से अपने विचार प्रकट करते हैं?
नास्तिक अपने विचार व्यक्त करने के लिए फ़ेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब और ब्लॉग का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं.
बीबीसी मॉनीटरिंग ने अरबी सोशल मीडिया पर जब अंग्रेज़ी और अरबी में नास्तिक शब्द की खोज की तो ऐसे हज़ारों फ़ेसबुक पेज और ट्विटर अकाउंट मिले जिसमें ख़ुद को नास्तिक घोषित किया गया था. यही नहीं, इनके फ़ॉलोवर्स भी हज़ारों लोग थे.
फ़ेसबुक पर तो अरब देशों के ऐसे असंख्य नास्तिक समूह मौजूद हैं जो अपने फॉलोवर्स में काफ़ी लोकप्रिय हैं.
‘ट्यूनीशियन एथीस्ट’ पर 10,000 लाइक्स हैं, ‘सुडानीज़ एथीस्ट’ पर तीन हज़ार लाइक और ‘सीरियन एथीस्ट नेटवर्क’ पर 4,000 लोगों ने लाइक किए हैं.
ट्विटर पर खुद को नास्तिक घोषित करने वाले एक ट्विटर हैंडल @mol7d_Arabi के फॉलोवर्स की संख्या 8,000 से लेकर कई हज़ार तक है.
Image captionइराक़ी एथीस्ट ट्विटर हैंडल पर डाली गई इस तस्वीर के साथ लिखा गया है, "मक्का में जिस काले पत्थर की पूजा होती है वैसे ही काले पत्थर की पूजा अन्य जगह भी होती है."
इनमें से कुछ का कहना है कि ‘वो तर्क से धर्म की रुढ़ियों को ख़त्म करना चाहते हैं.’
कुछ लोग इस्लाम विरोधी तस्वीरें और टिप्पणियां पोस्ट करते हैं. जैसे क़ुरान की फटी हुई किताब.
Ir@qi @theist ट्विटर हैंडल के 678 फॉलोवर हैं. इसमें कुछ पोस्ट ऐसे हैं जिनमें कहा गया है कि ‘इस्लामिक विचार अन्य धर्मों के ख़िलाफ़ हिंसा को बढ़ावा देता है.’
कुवैती ट्विटर यूज़र @Q8yAtheist (91 फॉलोवर) खुद को ‘एक कुवैती क़ाफ़िर, एक नास्तिक’ के रूप में घोषित करता है.
अरबी नास्तिकों के यूट्यूब पर भी हज़ारों चैनल हैं और उनके फॉलोवर भी हज़ारों की संख्या में हैं.
इस्लाम की आलोचना वाले वीडियो और ‘क़ुरान के अंधविश्वास’ जैसे शीर्षकों के नाम से वीडियो यूट्यूब पर अपलोड किए गए हैं.
इसके अलावा अरबी लोगों ने एक ऑनलाइन टीवी चैनल ‘फ़्री माइंड टीवी’ भी शुरू किया है. इसकी वेबसाइट के मुताबिक़, “यह एक सेक्युलर ऑनलाइन मीडिया है जो मध्यपूर्व और दुनिया भर के लोगों के लिए धर्म और सरकारों के सेंसर से मुक्त सेक्युलर ख़बरों का स्रोत है.”
अरब के लोग क्यों धर्म छोड़ रहे हैं?
हालांकि अरब वासी भी नास्तिकता की ओर जाने की तमाम वजहें वही बताते हैं जो बाक़ी दुनिया के लोग बताते हैं लेकिन कुछ कारण अरब दुनिया से ख़ास तौर से जुड़े हैं. जैसे कट्टर इस्लामिक समूहों की हिंसा से कुुछ लोग दुखी होकर नास्तिक हो रहे हैं क्योंकि कुछ लोगों को लगता है कि इस्लाम का मुख्य सिद्धांत ही सवालों के घेरे में है.
मिस्र का दारुल इफ़्ता भी मानता है कि नास्तिकता के बढ़ते चलन के लिए धार्मिक हिंसा ख़ास कारण है.
इसका दावा है कि ‘अतिवादी, चरमपंथी और तकफ़ीरी (कट्टर सुन्नी इस्लाम)’ समूहों ने इस्लाम के नाम पर बर्बर कार्रवाइयां की हैं, इसकी छवि को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है और लोगों का नास्तिकता की ओर क़दम बढ़ाने के लिए मजबूर किया है.
दूसरी वजह जो बताई गई वो है निजी और सार्वजनिक जीवन में राजनीतिक इस्लाम की घुसपैठ.
2014 में ही फ़लस्तीनी अल-कुद्स अल-अरबी न्यूज़ वेबसाइट ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें कहा गया है कि अरब देशों में इस्लामी सरकारों की ग़लतियों के कारण युवा धर्म छोड़ रहे हैं.
बहुत सारे धर्मनिरपेक्ष अरब मानते हैं कि मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड ने अपने निजी और गुप्त फ़ायदे के लिए इस्लाम धर्म का इस्तेमाल किया.
क्या यह सेक्युलर या नास्तिक ढर्रा है?
अरब जगत में नास्तिकता (इलहाद) को सेक्युलरिज़्म (इल्मानिया) से जोड़कर देखा जाता है.
लेकिन दोनों ही चीज़ें अरबी समाज के कई हिस्सों में अस्वीकार्य हैं.
एक निजी न्यूज़ वेबसाइट 'डेली न्यूज़' के मुताबिक़, मिस्र के दारुल इफ़्ता ने नास्तिकों को तीन हिस्सों में बांटा है: पहले वे जो इस्लाम धर्म का नहीं बल्कि राजनीति के इस्लामीकरण का विरोध करते हैं और एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की मांग करते हैं, दूसरे वे जो धर्म को पूरी तरह ख़ारिज करते हैं और तीसरे हिस्से में वे लोग हैं जिन्होंने इस्लाम को छोड़ कोई और धर्म अपना लिया है.
अधिकांश कट्टर सलफ़ी मुसलमानों के लिए भी ‘सेक्युलरिज़्म’ को ‘नास्तिकता’ एक ही है.
कुछ मुसलमानों का मानना है कि वे अपने धर्म के प्रति तो कटिबद्ध हैं लेकिन वे चाहते हैं कि धर्म और शाषण बिल्कुल अलग-अलग रहें.
वो मानते हैं कि इस्लामी विचारों की नई व्याख्या करके और दमनकारी धार्मिक रवायतों को चुनौती देकर विकास और सुधार हासिल किया जा सकता है.
मिस्र के लेखक सईद अल-किमिनी ने अपने लेखों और साक्षात्कारों में ‘सिविल स्टेट’ की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है और ‘इस्लाम की नई व्याख्या’ की वकालत की है.
इसी तरह मिस्र के एक निजी टीवी चैनल के एंकर इस्लाम अल-बहरीरी ने अपने शो में हदीस के कुछ संदर्भों पर सवाल खड़ा कर दिया जिस पर काफ़ी विवाद हुआ है. हदीस क़ुरान के बाद इस्लामी विचारों और क़ायदे-क़ानून का दूसरा अहम ग्रंथ है.
अल-किमीनी के फ़ेसबुक पेज पर 9,000 और बहरीरी के पेज पर 10,000 लाइक्स हैं.
हालांकि दोनों को ही अपने विचारों के कारण आलोचना का शिकार होना पड़ा है.
अल-किमीनी को कुछ सलफ़ी क़ाफिर मानते हैं जबकि अल-बहरीरी को ईशनिंदा के लिए पांच साल की सज़ा हो चुकी है. इराक़ के किरकुक में कुछ प्रदर्शनकारियों ने इराक़ी सरकार के भ्रष्टाचार के लिए संप्रदायवाद को ज़िम्मेदार ठहराते हैं.
वे प्रदर्शन में नारे लगा रहे थे, “सुन्नी नहीं, शिया नहीं, सेक्युलरिज़्म, सेक्युलरिज़्म.”
अरब जगत में नास्तिक होना कितना सुरक्षित?
अरब दुनिया में नास्तिक होना उतना आसान नहीं है. इसके लिए यहां कई लोगो को जेल हुई है.
सऊदी अरब में एक नौजवान को क़ुरान को फाड़ते हुए एक वीडियो अपलोड करने के लिए फांसी दे दी गई थी.
अंग्रेज़ी अख़बार सऊदी गैज़ेट के मुताबिक़, इसी साल फ़रवरी में सऊदी अरब के इस्लामिक कोर्ट ने इस्लाम छोड़ने के लिए एक आदमी को मौत की सज़ा सुनाई थी.
पिछले साल मिस्र के एक छात्र क़रीम अशरफ़ मुहम्मद अल-बन्ना को फ़ेसबुक पर अपनी पोस्ट में ईशनिंदा के लिए तीन साल की सज़ा दी गई थी.
ह्यूमन राइट्स वॉच ने इस सज़ा को नास्तिकता और अन्य असहमति वाले विचारों को दबाने वाली सरकारी योजना का हिस्सा बताया था.
अरब की राजनीतिक और धार्मिक संस्थाओं ने क्या किया?
हाल तक अरब टेलीविज़न पर नास्तिकता एक आम मुद्दा होता था और इस्लामिक मौलवियों और नास्तिकों को साथ बैठाया जाता था.
आमतौर पर एंकर नास्तिक से पूछते थे कि किस कारण उन्होंने इस्लाम छोड़ा, जबकि मौलवी इसे किशोरवय और निजी दिक़्क़तों का परिणाम मानते थे. कुछ अन्य शोज़ में इन दोनों में बहस कराई जाती थी.
मिस्र में नास्तिकता के बढ़ते चलन पर पाबंदी लगाने की सरकारी या धार्मिक संस्थाओं की कोशिशों को वहां की मीडिया वॉर ऑन एथीज़्म (नास्तिकता के ख़िलाफ़ युद्ध) कहती है.
जून में मिस्र के युवा मंत्रालय ने सर्वोच्च सुन्नी मुस्लिम संस्था अल अज़हर के साथ मिलकर ‘चरमपंथ और नास्तिकवाद’ के ख़िलाफ़ एक अभियान शुरू की.
इस योजना के संयोजक शेख़ अहमद तुर्की ने अल-अहराम को बताया कि “इसका मक़सद नास्तिकता के ख़िलाफ़ युवाओं को वैज्ञानिक तर्कों से लैस करना है.”
उन्होंने बताया, “नास्तिकता राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है... अगर नास्तिक धर्म के ख़िलाफ़ विद्रोह करते हैं तो वो हर चीज़ के ख़िलाफ़ विद्रोह करने लगेंगे.”

0 comments: