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Posted by Jamboodweepsecurity.blogspot.in on 11:51

एक वे भी दिन थे
जब कभी
हर शाम मेरे गाँव में
अंडी के तेल के दिये
छोटी सी ढिबरी या
लालटेनें जला करती थी
पर बिजली से
आज रौशन है, कहीं अँधेरा
दिखता नहीं
मगर लोंगों के चेहरे
जितने स्पष्ट थे तब
उस खाँसती बूढ़ी दादी का
डंडे टेककर चलते
बड़े बुजुर्गों का
आज न शिकन दिखती है
न आँखों के अन्दर का
एहसास
...
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Posted by Jamboodweepsecurity.blogspot.in on 01:06
सुबह या शाम
रेत के सिंदूरी टीले पे
उतरने लगीं कोमल बूँदें
पर्वतों के पार
उभरी उजली सी मुस्कान
दूर कहीं पानी मे लिया विश्राम
थक के सूरज के अश्व ने
मुंडेर लौटते
पंखेरुओं की हर्षित ध्वनि
खींच लाई
धुएँ की लकीर गगन में
चूल्हे पे उबलते भात ने
खुदबुदा के कहा
सर्दियों की संध्या में
ये तपिश सुहावनी है
ठंडी होती बोरसी की आग
खोरने पर बोल पड़ी
पुष की रात में
मेरी जलन भी
जीवन दायिनी ...
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Posted by Jamboodweepsecurity.blogspot.in on 08:50

"गीता” का शाब्दिक अर्थ केवल गीत अर्थात् जो गाया जा सके से लिया जाता है । किन्तु आतंरिक रूप से इसका अर्थ है कि जिसने अपने गीत को पा लिया है, स्वयं के छन्द को जान लिया है, स्वच्छंद हो गया है । माना जाता है कि पूर्व अध्यात्म की यात्रा पर ध्यान केन्द्रित करता है और पश्चिम विज्ञान की । किन्तु सत्यता इससे भी गूढ़ है । गीता के द्वारा मनुष्य अध्यात्म और विज्ञान, दोनों ही की पराकाष्ठा को प्राप्त कर लेता है ।
‘गीता’ किसी विशेष धर्म या संप्रदाय की पुस्तक नहीं है ।अपितु यह एक एक जीवंत ग्रन्थ है। जिसका दृष्टिकोण विश्चजनीन है| ज्ञान-यज्ञ का यह ग्रन्थ मानव-मात्र के हित के लक्ष्य से प्रेरित है। आज ‘योग’ जिस...
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Posted by Jamboodweepsecurity.blogspot.in on 19:40

आज नक्सलवाद सह माओवाद देश के विकास की धारा को अवरुद्ध कर खड़ा है। देश में एक बड़े भू-भाग में इस माओवाद के कारण विकास योजनाएँ ठप्प है। फिर उन क्षेत्रों में विकास के नाम पर राजनेता-प्रशासन एवं अतिवादि माओवादियों का संगठित तंत्र लूट मचाये हुए है। इसकी मूल समस्या विकास ही नहीं, सामाजिक-आर्थिक विषमता हैं। स्वाभाविक रूप से सोचना होगा। जिस जमीन पर हम और हमारे पुरखे रहते आये, जिस पर कृषि करते आयें, जीविकोपार्जन के लिए जिस भूमि का उपयोग करते आये। वह जमीन आज हमारे नाम पर बंदोबस्त है। जो आगे हमारी पीढ़ी को भी उपलब्ध रहेगी। वहीँ पर वनवासी जो पीढ़ी दर पीढ़ी जंगल में बसते रहे। जंगल ही उनका जीविकोपार्जन का साधन रहा पर आज भी उनके मकान के लिए भी जमीन बंदोबस्त...
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Posted by Jamboodweepsecurity.blogspot.in on 21:43
शब्द
जो बिछड़े थे किसी मोड़ पे
पंख लगा कर उड़ गये
शब्द जो साथ चले थे मेरे
वो थक गये... ठहर गये
शब्दों का होना अखरता है अब
शब्द राह तो रहे
पर मंज़िल न हुये
शब्दों को
लड़ना पसंद है...
मरना पसंद है
पर साथ जीना पसंद नही
कितने भोले हैं ये मेरे
शब...
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Posted by Jamboodweepsecurity.blogspot.in on 18:37
सिर पर मोरध्वज
अधरों पर मुरली
नंदलाल के मथुरा गमन पर
कान्हा की
एक हल्की सी मुस्कराहट पर
गोपियों के समूह से अलग
निमग्न हो खड़ी
राधा स्थिर चित हो
बोल पड़ी
" सुनो
जब तुम मुझे मुग्ध भाव से
देखते हो ना
मैं बिना श्रृंगार के ही
सुंदर हो जाती हूँ
मेरे जीवन में जितना
साथ है तुम्हारा है
बस
उतना ही हिस्सा जिया है मैंने
कि
जितनी तुम्हारे साथ चली
बस उतनी ही बही हूँ मैं
कि
जितनी बार तुम्हें देखा है
उतनी ही बार प्रेम किया है
तुमसे मैनें... "
एक लम्बी उच्छ्वास के साथ
राधा मनन कर रही
" तुम्हारा मेरा सम्बंध
इतना सा ही है
तुम मौन रहो
मै सुनती रहूँ
तुम विरक्त रहो
मै जुड़ती रहूँ
तुम सत्य उधेड़ो
मै स्वप्न बुनूँ
विपरीत किंतु साथ "
फिर तो
एक गहरी साँस भर
राधा फुट पड़ी
" हमारा रिश्ता
एक गहरी खाई पे
चरमराता हुआ
लटकता सा
एक पुल है
जिससे पार होना
नामुमकिन
खाई का भरना
असंभव
उम्मीद का दामन थामे
इसपार हम
उसपार तुम...
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Posted by Jamboodweepsecurity.blogspot.in on 03:51
अपनी भूख मिटाने के लिए
बाँस की कोपलों में
कुछ कीड़ों ने छेद कर दिये
उन छेदों से जब जब
हवा गुजरती
कोपलों का रोना सुनाई देता
उन कीड़ों को तो पता ही नहीं
बंशी बनाने के उपक्रम में
कि वे संगीत के सर्जन में
हस्तक्षेप कर रहे हैं
सम्यक विचारों को विस्तार दो
कहते ही चेहरा विदीर्ण हो उठता
नजरें नीचे झुका तिरछे देख
तुम्हारे होंठ फड़फड़ा जाते हैं
एक बध और
क्या यह अन्तिम है ?
इसके बाद
मेरी सोच काँप उठती है
मेरे विचार कुण्ठित हो उठते हैं
मैं वापस लेता हूँ
नहीं चाहिये तुम्हारा यह सहयोग
तुम्हारा यह साथ सहकर्म
जो केवल कुंठा व ईर्ष्या से
अपने को सिद्ध कर सकता है
एक अयोग्य, निरा शून्य
नहीं चाहिये वह विश्वास
जिसकी चरम परिणति
तुम्हारी द्वेष, जलन, ईर्ष्या हो
जहाँ कर्म, सामर्थ्य और पुरुषार्थ की
हत्या हो
मैं
अधिक सहिष्णु हूँ अपनी आस्था में
मैं
अधिक तपी हूँ अपने अकर्मों में
मैं
अधिक धार्मिक हूँ अपनी नास्तिकता में
मैं
अधिक...
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