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Saturday 1 September 2012

चीन का बढता हस्तक्षेप


श्रीमन नारायण

चीन का बढता हस्तक्षेप
           दक्षिण एसिया मामलों के प्रभारी चीन के उपमन्त्री आई पिङ ने नेपाल के आन्तरिक मामलों में खुल कर हस्तक्षेप किया है । नेपाल इन दिनों राज्य पुनर्संरचना  के दौर से गुजर रहा है । देश की २४४ वर्षपुरानी एकात्मक शासन प्रणालीका अन्त कर संघीय शासन प्रणाली लागू करने की बात पर सैद्धान्तिक सहमति बन चुकी है और इसे देश के संविधानका अंग भी मान लिया गया है । देश की दो बडी पार्टियां नेपाली काँग्रेस एवं एमाले खुलकर इसके विपक्ष में खडी होने के कारण देश की राजनीति स्पष्टतः दो भागों में विभाजित है । एक का नेतृतव सत्ताधारी एकीकृत माओवादी  के अध्यक्ष पुष्प कमल दाहाल कर रहे हैं तो दूसरे का नेपाली काँग्रेस और प्रचण्ड के नेतृत्व  वाला संघीय लोकतान्त्रिक गणतान्त्रिक गठबन्धन में संयुक्त लोकतान्त्रिक मधेशी मोर्चा सहित तकरीबन  दो दर्जन सियासी दल इस में शामिल हैं । वहीं नेपाली काँग्रेस के नेतृत्व में संघीय लोकतान्त्रिक मोर्चा बनाने की कवायद जारी है । प्रचण्ड के नेतृत्व वाले गठबन्धनको सत्ताधारी गठबन्धन भी कहा जा सकता है । इस में शामिल दल पहचानयुक्त संघीयता के पक्षधरहैं । चीन के विदेश उपमन्त्री ही नहीं, काठमाण्डू स्थित चीनी दूतावास के राजदूत याङ होउलान भी इसी आशय की टिप्पणी करते रहे हैं । चीन के दक्षिण एसिया विज्ञ नेता ने भी भारत और नेपाल के तर्राई के जरिए चीन विरोधी पडयन्त्र होनेका आरोप लगाया है ।
सत्ताधारी एकीकृत माओवादी पार्टी आए विखराव के वाद दूसरे धडे का नेतृत्व कर रहे मोहन वैद्य “किरण” को चीन ने एक माह के अन्दर  चीन में बुलाया था । काठमाण्डू के राजनीतिक हलकों में ये कयास लगाए जा रहे थे कि चीन के इसारे पर हीं एमाओवादी पार्टी विखराव आया है । यह कयास हकीकत में तब तब्दील हुआ जब नई पार्टी खोलने के महज एक माह के अन्दर चीन से वैद्य के लिए बुलावा आया । वुलावा आने पर चीन नहीं जाने वाले कम्युनिष्ट कौन होंगे -  सो वैद्य ने अपने सहयोगी इन्द्रमोहन सिग्देल के साथ चीनका दौरा किया ।
किरण के चीन भ्रमण के दौरान उन्हें काफी खातिर दारी मिली और एक गुरुमन्त्र भी दिया गया कि जातीय संघीयताको तिलान्जलि देकर वर्ग संघर्ष  पर बल दिया जाए । काठमाण्डू वापस आकर  किरण ने पत्रकारों से मुखातिब होते हुए कहा कि चीन ने हमे संघीयता खास कर के जातीय संघीयता के विपक्ष में रहने को कहा है परन्तु इसे चीनका हस्तक्षेप हम नहीं मानते । आई पीङ्ग नेपाल में आकर  बोले कि नेपाल के लिए जातीय संघीयता ठकि नहीं होगी । चीनी राजदूत ने भी यही कहा । चीन में जाने पर किरण से यही कहा गया फिर भी नेपाल के कम्युनिष्ट, कुछ पत्रकार  एवं राजावादी यह मानने के लिए अब भी तैयार नहीं हैं कि यह नेपाल के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप है । जातीय संघीयता से विखण्डन आता है लिहाजा इससे बचना चाहिए, चीन ने यही गुरुमन्त्र एमाले के विक्षुब्ध नेता किशोर कुमार विश्वासको काठमाण्डू स्थित अपने दूतावास में बुलाकर दिया था । यह हस्तक्षेप नहीं है तो क्या है – नेपाल के कम्युनिष्टोंको स्पष्ट करना ही होगा ।
प्रधानमन्त्री डा.बाबूराम भट्टाराई एवं सताधारी दल के आला नेताओं में शुमार होकर हिसिला यमी ने भी आननफानन में चीनका भ्रमण किया । वे अपने साथ कुछ पत्रकारों को भी ले गई थी उनसे भी यही कहा गया । दर असल डा.बाबूर ाम भट्टरर् ाई के प्रधानमन्त्री बनने के वाद से ही नेपाल के भारत विरोधी पत्रकार कम्युनिष्ट पार्टी एवं राजावादी चीन का कान भर ते रहे कि जे एन यू से पढे डा.भट्टाराई भारत के हिमायती हैं । चीन ने यह मान भी लिया तभी तो सत्ताधारी दल में विभाजन कर वाया । हिसिला यमी चीन सफाई देने के लिए गयी थी कि जो कुछ उनके पति के वारे में कहा या सुना जा रहा है वही सत्य नहीं है तथा चीन के खिलाफ वे, उन के पति या उनकी पार्टी नहीं है ।
सन् २००६ के मधेश आन्दोलन के दरम्यान भी चीन ने नेपाल सरकार को यह विश्वास दिलाया था कि मधेश में जो कुछ हो र हा है वह विदेश से सञ्चालित है तथा जरुरत पडने पर चीन नेपाल को किसी भी तरह का सहयोग कर ने को तैयार हैं । दर असल श्रीलंका में तमिल आन्दोलन को कुचल देने के बाद चीन को लगा कि मधेश आन्दालेन को भी उसी तरह कुचला जा सकता है । चीनको इस बातका डर सताए जा रहा है कि नेपाल के पहाडी या बफिर्ली जिलों में संघीयता आ जाने के बाद तिब्बत में एवं उइगर  मुसलमानों की आवादी वाले शिवजियाङ्ग में भी स्वायतता, संघीयता या जातीयता की माँग जोड पकडने लगेगी । नेपाल में अमेरिकी एवं पश्चिमी कुटनीतिज्ञों की उपस्थिति एवं तिब्बतीयों के प्रति जो उनकी सहानुभूति है उससे चीन में किसी भी समय आन्दोलन भडक जाने का डर चीन को है । चीनको यह भी लग रहा है कि संघीयता को माँग भारत के कहने पर मधेशीयों ने किया है और भारत ने नेपाल के बजाय तिब्बत एवं चीन को ध्यान में रखकर  यह विषय चर्चा में लाया है ।
सैद्धान्तिक रुप में नेपाल एक स्वतन्त्र देश है तथा यहाँ की शासन प्रणाली कैसी हो यह नेपाली जनताको हीं तय करना है । इस में न तो भारत और ना ही चीन की दिलचस्पी होनी चाहिएं । एक पडोसी के नाते से दोनों देश हमारे शुभेच्छुक एवं सहयोगी है । परन्तु किसी के द्वारा भी हस्तक्षेप होना ठीक नहीं है ।
दरअसल चीन नेपाल के जरिए दक्षिण एशिया में अपना बर्चस्व बढ़ाना चाहता है । अब तक भूटान उस की पकड से बाहर था । अगस्त के तीसरे सप्ताह में काठमाण्डू आने से पूर्व चीन के विदेश उपमन्त्री भूटान भी गए थे । फू यिंग अपने थिम्पु यात्रा के दौरान वहां चीनी दूतावास खोलने पर  सहमति बनी । बहुत जल्द ही वहाँ चीनी दूतावास खुलने जा रहा है । चीन भूटान के साथ प्रत्यक्ष तौर पर व्यापार संयन्त्र बनाना चाहता है । प्रत्यक्ष रुपमे विमान सेवा भी शुरु करना चाहता है । थिम्पु का नजरिया भी इस में सकारात्मक है ।
चीन अब भूटान के सियासी एवं कुटनीतिक मामलों में दखलंदाजी बढा कर वहाँ से भारत का प्रभाव समाप्त कर  खूद स्थापित होना चाहता है । पाकिस्तान, श्रीलंका, आफगानिस्तान और नेपाल में भी चीन का वर्चस्व है ।  नेपाल के अधिकांश विकास परियोजनाओं में चीन का दखल है । नेपाल में कुछ ऐसे भारत विरोधी तत्व है, जो एक सुनियोजित षडयन्त्र के तहत भारत का विरोध करते है तथा गोप्य रुप से परियोजना सञ्चालन की जिम्मेवारी चीन को मिल जाती है । नेपाल के अधिकांश बडी परियोजनाओं का निर्माण चीन के द्वारा  हो रहा है । त्रिभुवन विमान स्थल का और  पोखरा  विमान स्थल का निर्माण चीन को दे दिया गया । एमआरपी में भी यही हुआ । चर्चा भारत की होता है, आयोजना का जिम्मा चीनको मिलता है । शान्त कूटनीति के जरि ए लाभ लेना कोई चीन से सीखे ।
चीन दक्षिण एशिया में थल एवं हवाई मार्ग सर्म्पर्क बढाना चाहता है । नेपाल चीन परामर्श संयन्त्र के नौवें वैठक में चीन ने द्विपक्षीय संयुक्त प्रयास का प्रस्ताव भी किया है । चीन ने केरुङ्ग होते हुए लुम्बिनी तक रेल पहुचानेका प्रंस्ताव भी किया है । पाकिस्तान में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है । लुम्बिनी में भारत के विरोध को देखते हुए नई दिल्ली से भी चीन सहयोग लेना चाहता है । दक्षिण एशिया में चीन की बढती सक्रियता से नेपाल को र्सतर्क रहना होगा । संघीयता के सवाल पर  चीन के रवैये से नेपाल की जनजातियों को भी वाकिफ होना होगा । संघीयता की जितनी आवश्यकता मधेशियों को है उससे कही अधिक जरुरी पहाडी क्षेत्र के जनजाति को है । इस बारे में सभी को गम्भीरता से सोचना जरुरी है।

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