हिमालिनी के सौजन्य से -------
खामोश आतंकवाद
सन् २००० की तैयारी में जुटी पूरी दुनियां को सन्न करने वाली आतंकवादी घटना के बीज नेपाल में ही बोए गइ थे । नए दशक की शुरूआत से ठीक पहले पाक आतंकवादियों ने
काठमाण्डू से दिल्ली के लिए उडान भरी आइसी-८१४ का अपहरण कर लिया था । इस आतंकी घटना को अंजाम देने के लिए देश का एक मात्र अन्तरष्ट्रीय विमानस्थल की सुरक्षा व्यवस्था को धत्ता बताते हुए आतंकवादियों ने आराम से हथियार सहित विमान में प्रवेश किया था । बाद में जांच से मालूम हुआ कि आतंकवादियों ने इस घटना को अंजाम देने के लिए पूरे विमानस्थल की सुरक्षा व्यवस्था को ही खरद लिया था । उस विमान अपहरणकाण्ड का असर नेपाल पर तो कोई खास नहीं पडÞा मगर विमानस्थल की सुरक्षा व्यवस्था को थोडी कडÞी कर दी गई । लेकिन नेपाली सुरक्षा व्यवस् था की विश्वनीयता पर सवाल खड हो गए ।
इस घटना के ठीक एक साल बाद यानी सन् २००१ में भारतीय संसद पर आतंकियों ने हमला किया था । इस हमले के दौरान आतंकियों की बातचीत नेपाल में रहे एक शख्स के साथ हो रही थी । इस हमले का असर नेपाल पर कुछ नहीं हुआ । लेकिन भारतीय खुफिया एजेन्सी और सुरक्षाबलों की नजर में यह बात साफ हो गई कि पाक आतंकवादी नेपाल को सेफ लैण्ड के रूप में प्रयोग कर रहे हैं और नेपाल में ही बैठक कर भारत में कई आतंकी घटना को अंजाम देते हैं ।
संसद पर हमले और मुर्म्बई में हुए आतंकवादी हमले के बीच भारत के कई शहरों पर आतंकी हमले, सीरियल ब्लाष्ट की घटना को अंजाम दिया जाता रहा और हर हमले के तार किसी ना किसी रूप में नेपाल के साथ जुडे र हते थे । चाहे वह दिल्ली में हुए सीरि यल ब्लाष्ट की घटना हो या फिर जयपुर अहमदाबाद, पूणे या फिर कहीं और, हर आतंकी घटना में नेपाल की धरती का किसी ना किसी रूप में प्रयोग होने की बात सामने आती रही है ।
२६-११ को मुर्म्बई में हुए आतंकी हमलों में शुरू में तो नेपाल की किसी भी प्रकार की भूमिका सामने नहीं आई लेकिन इस हमले के ४ साल बाद अब तक के सबसे बडÞे आतंकी हमले का एक मास्टरमाईण्ड अबु जिंदाल पकडा गया तो मुर्म्बई हमले में भी नेपाल की भूमि का प्रयोग होने की बात स्पष्ट हो गई । इन सब घटनाओं से एक बात तो साफ है कि आतंकवादियों ने नेपाल की धरती का प्रयोग कर भारत में कई आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया और उन घटनाओं में अब तक हजारों की संख्या में निर्दाेष लोग मारे जा चुके हैं । इन आतंकी घटनाओं का नेपाल पर अब तक सीधा असर नहीं पडने से ना तो यहां का सरकार और ना ही यहां की खुफिया विभाग या सुरक्षा बल और ना ही गृह मंत्रालय इस बात को लेकर गम्भीर दिखाई देता है कि आतंक के पालन पोषण का असर अप्रत्यक्ष रूप से नेपाल पर पडÞता ही है । आतंक से उठने वाली चिंगाी कभी भी हमार घर को भी जला सकती है । आतंक से उठी आग की लपटों में हाथ सेंकने पर कभी ना कभी हमार ा भी हाथ जल सकता है ।
वैसे तो विश्व के ज्यादातर हिस् सों में इन दिनों अशांति व्याप्त है । सभी महाद्वीपों में कहीं न कहीं आतंककारि यों ने सामान्य लोगों का जीना दूभर कर दिया है । नेपाल इस मामले में खुशनसीब है कि अब तक उसे इस भयानक त्रासदी का सामना नहीं कर ना पडा है । लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जब तक हिंसा नहीं फैलती, जब तक धमाके नहीं होते, जब तक सामुहिक त्रासदी नहीं होती तब तक आतंक को हम पहचाने ही नहीं या फिर जान बूझ कर उससे अंजान बने र हे । मुश्किल यह है कि जब तक हिंसा नहीं फैलती, हम आतंकी चेहर ों को पहचान नहीं पाते । भार त सहित दुनियां के कई हिस् सों में होने वाली आतंकी घटनाओं पर तो हमार ी नजर र हती है पर अपने ही देश में पनप र हे ‘खामोश आतंकवाद’ की तर फ तो हमार ा ध्यान ही नहीं है ।
भार त में होने वाले हर आतंक की घटना का किसी ना किसी रूप में नेपाल से जुडेÞ होना इस बात का पर्याय है कि हमार ा देश आतंक की काली साया से पर े नहीं है । नेपाल को आतंकियों ने अपना सेफलैण्ड बना लिया है । खुली सीमा, लचर सुर क्षा व्यवस् था, अस् िथर आन्तरि क र ाजनीति और गैर जिम्मेदार सर कार ी रवैया के कार ण नेपाल में तेजी से खामोश आतंकवाद ने अपना दबदबा कायम कर लिया है । इस बात की पुष्टि विकिलिक्स के द्वार ा र्सार्वजनिक किए गए अमेरि की दस् तावेज में भी किया गया है जिसको विस् तार से हिमालिनी के पिछले वर्षजनवर ी के अंक में प्रकाशित किया गया था ।
भार त के मुर्म्बई में हुए २६-११ के हमले का मास् टर माईण्ड अबु जिंदाल उर्फअबु हमजा की गिर फ्तार ी के बाद जो तथ्य सामने आए हैं वह वाकई में हैर ान और पर ेशान कर ने वाले हैं । पूछताछ के दौर ान अबु जिंदाल ने जो तथ्य भार तीय सुर क्षा एजेन्सियों के सामने बयान किया है उससे नेपाली सुर क्षा अंगों की नींद चाहे हर ाम ना हर्ुइ हो लेकिन यहां के बुद्धिजीवी वर्ग और सचेत नागरि कों की नींद जरूर हर ाम हो गई है । यदि समय र हते यहां की सर कार और सुर क्षा बल सचेत नहीं हुए तो वह दिन दूर नहीं जब आतंक की धधकती ज्वाला नेपाल में भी दिखाई देगी और उसकी लपटों में हम सभी को जलना पडेगा ।
इस घटना के ठीक एक साल बाद यानी सन् २००१ में भारतीय संसद पर आतंकियों ने हमला किया था । इस हमले के दौरान आतंकियों की बातचीत नेपाल में रहे एक शख्स के साथ हो रही थी । इस हमले का असर नेपाल पर कुछ नहीं हुआ । लेकिन भारतीय खुफिया एजेन्सी और सुरक्षाबलों की नजर में यह बात साफ हो गई कि पाक आतंकवादी नेपाल को सेफ लैण्ड के रूप में प्रयोग कर रहे हैं और नेपाल में ही बैठक कर भारत में कई आतंकी घटना को अंजाम देते हैं ।
संसद पर हमले और मुर्म्बई में हुए आतंकवादी हमले के बीच भारत के कई शहरों पर आतंकी हमले, सीरियल ब्लाष्ट की घटना को अंजाम दिया जाता रहा और हर हमले के तार किसी ना किसी रूप में नेपाल के साथ जुडे र हते थे । चाहे वह दिल्ली में हुए सीरि यल ब्लाष्ट की घटना हो या फिर जयपुर अहमदाबाद, पूणे या फिर कहीं और, हर आतंकी घटना में नेपाल की धरती का किसी ना किसी रूप में प्रयोग होने की बात सामने आती रही है ।
२६-११ को मुर्म्बई में हुए आतंकी हमलों में शुरू में तो नेपाल की किसी भी प्रकार की भूमिका सामने नहीं आई लेकिन इस हमले के ४ साल बाद अब तक के सबसे बडÞे आतंकी हमले का एक मास्टरमाईण्ड अबु जिंदाल पकडा गया तो मुर्म्बई हमले में भी नेपाल की भूमि का प्रयोग होने की बात स्पष्ट हो गई । इन सब घटनाओं से एक बात तो साफ है कि आतंकवादियों ने नेपाल की धरती का प्रयोग कर भारत में कई आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया और उन घटनाओं में अब तक हजारों की संख्या में निर्दाेष लोग मारे जा चुके हैं । इन आतंकी घटनाओं का नेपाल पर अब तक सीधा असर नहीं पडने से ना तो यहां का सरकार और ना ही यहां की खुफिया विभाग या सुरक्षा बल और ना ही गृह मंत्रालय इस बात को लेकर गम्भीर दिखाई देता है कि आतंक के पालन पोषण का असर अप्रत्यक्ष रूप से नेपाल पर पडÞता ही है । आतंक से उठने वाली चिंगाी कभी भी हमार घर को भी जला सकती है । आतंक से उठी आग की लपटों में हाथ सेंकने पर कभी ना कभी हमार ा भी हाथ जल सकता है ।
वैसे तो विश्व के ज्यादातर हिस् सों में इन दिनों अशांति व्याप्त है । सभी महाद्वीपों में कहीं न कहीं आतंककारि यों ने सामान्य लोगों का जीना दूभर कर दिया है । नेपाल इस मामले में खुशनसीब है कि अब तक उसे इस भयानक त्रासदी का सामना नहीं कर ना पडा है । लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जब तक हिंसा नहीं फैलती, जब तक धमाके नहीं होते, जब तक सामुहिक त्रासदी नहीं होती तब तक आतंक को हम पहचाने ही नहीं या फिर जान बूझ कर उससे अंजान बने र हे । मुश्किल यह है कि जब तक हिंसा नहीं फैलती, हम आतंकी चेहर ों को पहचान नहीं पाते । भार त सहित दुनियां के कई हिस् सों में होने वाली आतंकी घटनाओं पर तो हमार ी नजर र हती है पर अपने ही देश में पनप र हे ‘खामोश आतंकवाद’ की तर फ तो हमार ा ध्यान ही नहीं है ।
भार त में होने वाले हर आतंक की घटना का किसी ना किसी रूप में नेपाल से जुडेÞ होना इस बात का पर्याय है कि हमार ा देश आतंक की काली साया से पर े नहीं है । नेपाल को आतंकियों ने अपना सेफलैण्ड बना लिया है । खुली सीमा, लचर सुर क्षा व्यवस् था, अस् िथर आन्तरि क र ाजनीति और गैर जिम्मेदार सर कार ी रवैया के कार ण नेपाल में तेजी से खामोश आतंकवाद ने अपना दबदबा कायम कर लिया है । इस बात की पुष्टि विकिलिक्स के द्वार ा र्सार्वजनिक किए गए अमेरि की दस् तावेज में भी किया गया है जिसको विस् तार से हिमालिनी के पिछले वर्षजनवर ी के अंक में प्रकाशित किया गया था ।
भार त के मुर्म्बई में हुए २६-११ के हमले का मास् टर माईण्ड अबु जिंदाल उर्फअबु हमजा की गिर फ्तार ी के बाद जो तथ्य सामने आए हैं वह वाकई में हैर ान और पर ेशान कर ने वाले हैं । पूछताछ के दौर ान अबु जिंदाल ने जो तथ्य भार तीय सुर क्षा एजेन्सियों के सामने बयान किया है उससे नेपाली सुर क्षा अंगों की नींद चाहे हर ाम ना हर्ुइ हो लेकिन यहां के बुद्धिजीवी वर्ग और सचेत नागरि कों की नींद जरूर हर ाम हो गई है । यदि समय र हते यहां की सर कार और सुर क्षा बल सचेत नहीं हुए तो वह दिन दूर नहीं जब आतंक की धधकती ज्वाला नेपाल में भी दिखाई देगी और उसकी लपटों में हम सभी को जलना पडेगा ।
नेपाल में आतंक की पाठशाला
मुर्ंबई पर २६ नवंबर २००८ को हमला करने वाले आतंकवादियों को पाकिस्तान से दिशा निर्देश दे रहे औरअब भारत की गिरफ्त में आए अबू जिंदाल ने आतंकवाद का पहला
पाठ उस समय सीखा था जब लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी मोहम्मद असलम उर्फअसलम कश्मीरी ने नेपाल में २००४ में उसके लिए हथियार प्रशिक्षण की व्यवस्था की । तीस वषर्ीय जिंदाल ने जांच कर रहे अधिकारियों को बताया कि उसे राजौरी, जम्मू-कश्मीर के हसप्लोते निवासी असलम कश्मीरी ने नेपाल के मदरसे में ‘जेहाद’ का पाठ पढाया था ।
भार त के गृह मंत्रालय को सौंपी गई उसकी पूछताछ रिपोर्ट के अनुसार जबीउद्दीन उर्फअबू जिंदाल ने कहा कि पुंछ क्षेत्र के जरिए सीमा पार कराने के लिए महाराष्ट्र और गुजरात के चार युवक २००४ में असलम कश्मीरी को सौंपे गए थे, लेकिन सेना ने उन्हें मार गिर ाया, जिससे कश्मीरी की भूमिका को लेकर संदेह पैदा हो गया । असलम कश्मीर ी ने जबीउद्दीन और फैयाज कागजी से पुनः सर्ंपर्क किया और उनसे हथियार प्रशिक्षण के लिए अपने साथ नेपाल चलने को कहा, लेकिन चार युवकों के मारे जाने की घटना से यह संदेह पैदा हो गया था कि हो सकता है कि असलम कश्मीर ी सेना के लिए काम कर र हा हो ।
जबीउद्दीन ने जांचकर्ताओं को बताया कि इस पर असलम ने अपने बार े में यह साबित कर ने के लिए कि वह आतंकी समूह के लिए ही काम कर ता है, उनकी बात फोन पर पाकिस्तान में लश्कर के शर्ीष्ा आतंकियों से करर् ाई । इसके बाद बीडÞ महार ाष्ट्र निवासी जबीउद्दीन चार लोगों के साथ नेपाल र वाना हुआ जहां उसे हथियार चलाने एवं विष्फोट में प्रयोग किए जाने वाले आर्ईईडी बनाने का प्रशिक्षण दिया गया ।
अपनी वापसी के बाद जबीउद्दीन ने और अधिक युवकों की विचार धार ा को बदलने का काम शुरू कर दिया, ताकि आतंकी नेर्टवर्क का विस् तार किया जा सके । उन्नीस फर वर ी २००६ को अहमदाबाद र ेलवे स् टेशन पर हुए विस् फोट की जांच के दौर ान पता चला कि नेपाल से प्रशिक्षण लेकर आए आतंकी ही इन गतिविधियों में लिप्त हैं ।
१९ फर वर ी २००६ को तडÞके १ बजकर ४३ मिनट पर अहमदाबाद स् टेशन पर जबर दस् त विस् फोट हुआ था । इस में २५ लोग घायल हो गए थे । यह सौभाग्य की बात थी कि उस दिन र विवार होने के कार ण स् टेशन पर ज्यादा लोग नहीं थे । पूछताछ में जबीउद्दीन ने दावा किया कि आर्ईईडी का टाइमर सेट कर ने में थोडÞी गलती हो गई थी, जिससे धमाका समय से पहले ही हो गया । बम दो पहर बाद फटना था, जब स् टेशन पर ज्यादा भीडÞ होती है ।
जांच में पता चला कि इस मामले में बम बनाने वाला वही जबीउद्दीन था जिसने नेपाल में आतंक की चल र ही पाठशाला से प्रशिक्षण लेकर लौटा था । बाद में इसकी पुष्टि असलम कश्मीर ी ने भी कर दी, जिसे केद्रीय सुर क्षा एजेंसियों से मिली गुप्त सूचना के बाद २५ अगस् त २००९ को दिल्ली र ेलवे स् टेशन से महार ाष्ट्र जाते समय गिर फ्तार किया गया था ।
असलम कश्मीर ी जबीउद्दीन के सहयोग से महार ाष्ट्र एवं गुजर ात में हथियार एवं गोला-बारूद की आपर्ूर्ति भी कर ता था जो वह नेपाल की खुली सीमाओं का फायदा उठाकर भार त में आसानी से ले आता था । एक बार तो भार तीय खुफिया एजेंसियों ने समय पर नासिक-और ंगाबाद र ाजमार्ग पर ४३ किलोग्राम आर डीएक्स, १६ एके ४७ असाल्ट र ाइफलें, ३२०० गोलियां और ५० हथगोले बर ामद कर ने में सफलता पाई । ये सभी हथियार और गोला बारूद नेपाल के र ास् ते ही लाए गए थे । हालांकि जबीउद्दीन और असलम कश्मीर ी अंधेर े का लाभ उठाकर चकमा देकर भागने में सफल हो गए ।
असलम कश्मीर ी को लश्कर का कट्टर आतंकवादी माना जाता है, जो अपने आतंकी समूह के जिला कमांडर हुफैजा शाह के मार े जाने के बाद प्रसिद्ध होना चाहता था । उत्तर प्रदेश से अर बी भाषा में स् नातकोत्तर उपाधि र खने वाला असलम और ंगाबाद में हथियार जब्त होने के बाद २००६ से घर से लापता हो गया था और तीन सालों तक वह नेपाल में ही छिपा र हा । दिल्ली में उसकी गिर फ्तार ी तक उसे खूंखार आतंकवादी माना जाता था ।
अबु जिंदाल ने पुछताछ में एक और चौंकाने वाली बात बताई । उसने नेपाल में आतंक की पाठशाला चलाने वाले अपने आकाओं के वो मोबायल नम्बर भी बताए जिस पर सभी आतंकी घटना को अंजाम देने के लिए बातचीत की जाती थी । जिंदाल ने आतंकवादियों के जो नम्बर भार तीय खुफिया एजेन्सी को बताई वह ९७७-९८१८६२७५७८, ९७७-९८१३२८५५७३ और ९७७-९८५५९२२२११ है । यह तीनों नंबर नेपाल के हैं, जिसने लश्कर और नेपाल के कनेक्शन को भी उजागर कर दिया है । जी हां इन्हीं नंबर ों के माध्यम से लश्कर के आका नेपाल में आतंक की नर्सर ी चलाते हैं । जिंदाल ने यह भी बताया है कि नेपाल ट्रेनिंग सेंटर की जिम्मेदार ी ताहिर उर्फचौधर ी को सौंपी गई है । जिंदाल ने इस बात का भी खुलासा किया है कि पाकिस् तान से आने वाले आतंकवादियों को नेपाल में ही आसानी से फर्जी पाकिस् तानी और नेपाली पासपोर्ट बनवा दिया जाता है । ताकि समय समय पर उसका प्रयोग किया जा सके ।
भार त के गृह मंत्रालय को सौंपी गई उसकी पूछताछ रिपोर्ट के अनुसार जबीउद्दीन उर्फअबू जिंदाल ने कहा कि पुंछ क्षेत्र के जरिए सीमा पार कराने के लिए महाराष्ट्र और गुजरात के चार युवक २००४ में असलम कश्मीरी को सौंपे गए थे, लेकिन सेना ने उन्हें मार गिर ाया, जिससे कश्मीरी की भूमिका को लेकर संदेह पैदा हो गया । असलम कश्मीर ी ने जबीउद्दीन और फैयाज कागजी से पुनः सर्ंपर्क किया और उनसे हथियार प्रशिक्षण के लिए अपने साथ नेपाल चलने को कहा, लेकिन चार युवकों के मारे जाने की घटना से यह संदेह पैदा हो गया था कि हो सकता है कि असलम कश्मीर ी सेना के लिए काम कर र हा हो ।
जबीउद्दीन ने जांचकर्ताओं को बताया कि इस पर असलम ने अपने बार े में यह साबित कर ने के लिए कि वह आतंकी समूह के लिए ही काम कर ता है, उनकी बात फोन पर पाकिस्तान में लश्कर के शर्ीष्ा आतंकियों से करर् ाई । इसके बाद बीडÞ महार ाष्ट्र निवासी जबीउद्दीन चार लोगों के साथ नेपाल र वाना हुआ जहां उसे हथियार चलाने एवं विष्फोट में प्रयोग किए जाने वाले आर्ईईडी बनाने का प्रशिक्षण दिया गया ।
अपनी वापसी के बाद जबीउद्दीन ने और अधिक युवकों की विचार धार ा को बदलने का काम शुरू कर दिया, ताकि आतंकी नेर्टवर्क का विस् तार किया जा सके । उन्नीस फर वर ी २००६ को अहमदाबाद र ेलवे स् टेशन पर हुए विस् फोट की जांच के दौर ान पता चला कि नेपाल से प्रशिक्षण लेकर आए आतंकी ही इन गतिविधियों में लिप्त हैं ।
१९ फर वर ी २००६ को तडÞके १ बजकर ४३ मिनट पर अहमदाबाद स् टेशन पर जबर दस् त विस् फोट हुआ था । इस में २५ लोग घायल हो गए थे । यह सौभाग्य की बात थी कि उस दिन र विवार होने के कार ण स् टेशन पर ज्यादा लोग नहीं थे । पूछताछ में जबीउद्दीन ने दावा किया कि आर्ईईडी का टाइमर सेट कर ने में थोडÞी गलती हो गई थी, जिससे धमाका समय से पहले ही हो गया । बम दो पहर बाद फटना था, जब स् टेशन पर ज्यादा भीडÞ होती है ।
जांच में पता चला कि इस मामले में बम बनाने वाला वही जबीउद्दीन था जिसने नेपाल में आतंक की चल र ही पाठशाला से प्रशिक्षण लेकर लौटा था । बाद में इसकी पुष्टि असलम कश्मीर ी ने भी कर दी, जिसे केद्रीय सुर क्षा एजेंसियों से मिली गुप्त सूचना के बाद २५ अगस् त २००९ को दिल्ली र ेलवे स् टेशन से महार ाष्ट्र जाते समय गिर फ्तार किया गया था ।
असलम कश्मीर ी जबीउद्दीन के सहयोग से महार ाष्ट्र एवं गुजर ात में हथियार एवं गोला-बारूद की आपर्ूर्ति भी कर ता था जो वह नेपाल की खुली सीमाओं का फायदा उठाकर भार त में आसानी से ले आता था । एक बार तो भार तीय खुफिया एजेंसियों ने समय पर नासिक-और ंगाबाद र ाजमार्ग पर ४३ किलोग्राम आर डीएक्स, १६ एके ४७ असाल्ट र ाइफलें, ३२०० गोलियां और ५० हथगोले बर ामद कर ने में सफलता पाई । ये सभी हथियार और गोला बारूद नेपाल के र ास् ते ही लाए गए थे । हालांकि जबीउद्दीन और असलम कश्मीर ी अंधेर े का लाभ उठाकर चकमा देकर भागने में सफल हो गए ।
असलम कश्मीर ी को लश्कर का कट्टर आतंकवादी माना जाता है, जो अपने आतंकी समूह के जिला कमांडर हुफैजा शाह के मार े जाने के बाद प्रसिद्ध होना चाहता था । उत्तर प्रदेश से अर बी भाषा में स् नातकोत्तर उपाधि र खने वाला असलम और ंगाबाद में हथियार जब्त होने के बाद २००६ से घर से लापता हो गया था और तीन सालों तक वह नेपाल में ही छिपा र हा । दिल्ली में उसकी गिर फ्तार ी तक उसे खूंखार आतंकवादी माना जाता था ।
अबु जिंदाल ने पुछताछ में एक और चौंकाने वाली बात बताई । उसने नेपाल में आतंक की पाठशाला चलाने वाले अपने आकाओं के वो मोबायल नम्बर भी बताए जिस पर सभी आतंकी घटना को अंजाम देने के लिए बातचीत की जाती थी । जिंदाल ने आतंकवादियों के जो नम्बर भार तीय खुफिया एजेन्सी को बताई वह ९७७-९८१८६२७५७८, ९७७-९८१३२८५५७३ और ९७७-९८५५९२२२११ है । यह तीनों नंबर नेपाल के हैं, जिसने लश्कर और नेपाल के कनेक्शन को भी उजागर कर दिया है । जी हां इन्हीं नंबर ों के माध्यम से लश्कर के आका नेपाल में आतंक की नर्सर ी चलाते हैं । जिंदाल ने यह भी बताया है कि नेपाल ट्रेनिंग सेंटर की जिम्मेदार ी ताहिर उर्फचौधर ी को सौंपी गई है । जिंदाल ने इस बात का भी खुलासा किया है कि पाकिस् तान से आने वाले आतंकवादियों को नेपाल में ही आसानी से फर्जी पाकिस् तानी और नेपाली पासपोर्ट बनवा दिया जाता है । ताकि समय समय पर उसका प्रयोग किया जा सके ।
आतंक फैलाने का रास्ता बनता नेपाल-बिहार की खुली सीमा
नेपाल सीमा से लगा मधुबनी अपनी बेहतरीन साडियों और पेंटिंग्स के लिए मशहूर है, लेकिन अब यह आतंकियों के लिए दबे पांव भार त में घुसने का सुर क्षित रास् ता बन र हा है । नेपाल बिहार सीमा क्षेत्र का मधुबनी जिला आतंकवादियों के लिए भर्ती के नए केंद्र और छिपने के अड्डे के तौर पर भी उभर ा है । २००६ से, पुलिस अकेले मधुबनी से आतंकवादियों के छह खुंखार एजेंटों को गिर फ्तार कर चुकी है ।
२०११ नवंबर के आखिर से लेकर दिसंबर की शुरुआत तक दो सप्ताह तक चले एक आँपरेशन में दिल्ली पुलिस ने यहां से इंडियन मुजाहिदीन -आइएम) के तीन और संदिग्ध कारि ंदों को पकडÞा है । आर ोप है कि ये लोग १३ सदस् यों के उस आइएम माँड्यूल के हिस् से हैं, जिसने फर वरी २०१० में पूणे की जर्मन बेकरी और अप्रैल २०१० में बंगलुरू के चिन्नास् वामी स् टेडियम में हुए विस् फोटों और सितंबर २०१० में जामा मस् िजद में हर्ुइ गोलीबार ी की साजिश र ची और उसे अंजाम दिया । ऐसा माना जाता है कि इस माँड्यूल के लीडर रि याज भटकल और इकबाल भटकल हैं । इन्हीं दोनों भाइयों ने इंडियन मुजाहिद्दीन को खडÞा किया था और दोनों फर ार हैं । उन्होंने ही इन हमलों की साजिश र ची और स् थानीय लोगों की मदद से उसे अंजाम दिया था । जर्मन बेकर ी में हुए धमाकों में १७ लोगों की जान गई थी और बंगलुरू में स् टेडियम के बाहर हुए विस् फोट में १५ लोग घायल हो गए थे । १९ सितंबर को, दिल्ली में काँमनवेल्थ खेलों के शुरू होने से ठीक पहले जामा मस् िजद पर हर्ुइ गोलीबार ी में दो ताइवानी पर्यटक घायल हुए थे ।
४१ लाख से ज्यादा की जनसंख्या वाला नेपाली सीमावर्ती मधुबनी जिला ‘एक और आजमगढÞ’ होने की बदनामी झेल र हा है । पर्ूर्वी उत्तर प्रदेश के आजमगढÞ जिले ने कई आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार इंडियन मुजाहिदीन के कम-से-कम १३ कारि ंदे भेजे थे । इन हमलों में दिल्ली में २००८ में हुए सिलसिलेवार धमाके भी शामिल थे जिनमें दो दर्जन से ज्यादा लोग मार े गए थे । दिल्ली पुलिस ने ६ दिसंबर को नेपाली सीमा से सटे एक गांव से फारूक उर्फनवाब उर्फआफताब आलम को कथित तौर पर चिन्नास् वामी स् टेडियम में बम र खने के आर ोप में गिर फ्तार किया था । फारूक, जो दुनिया को दिखाने के लिए किर ाने की छोटी-सी दूकान चलाता था, दिल्ली पुलिस की गिर फ्तार में आया आइएम का कथित सातवां कारि ंदा है ।
२२ नवंबर को दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे से दिल्ली पुलिस ने इंडियन मुजाहिदीन के पहले कारि ंदे कतील सिद्दीकी को गिर फ्तार किया । काफी दिनों तक नेपाल बिहार की सीमावर्ती क्षेत्रों में र हने के बाद वह दिल्ली गया ही था कि उसकी गिर फ्तार ी हो गई । उसके बाद के घटनाक्रम में ये सार ी गिर फ्तारि यां एक के बाद एक ताबडÞतोडÞ तेजी से होती गईं । बिहार पुलिस के साथ तालमेल से काम कर र ही दिल्ली पुलिस ने २४ नवंबर को २१ साल के छात्र और मजहबी तालीम देने वाले गयूर अहमद और एक २८ साल के पाकिस् तानी नागरि क मोहम्मद अजमल उर्फशोएब को नेपाल के सीमावर्ती मधुबनी से सटे अलग-अलग इलाकों से दबोच लिया गया था । मधुबनी में सकर ी के पछिया टोला के एक गर ीब, मगर प्रतिष्ठित परि वार के गयूर की गिर फ्तार ी से स् थानीय मुसलमान नार ाज हो गए । वे उसे बेकसूर मानते हैं । अजमल ऊनी कपडÞों का दूकानदार बन कर र हता था और उसने सकर ी से १५ किमी दूर सिग्निया चौक पर इसी साल सितंबर में कमर ा किर ाए पर लिया था ।
कमर ा लेने के बाद दो महीने के भीतर ही उसकी मौजूदगी सबकी नजर में आ गई थी । उसके हैर ान-पर ेशान मकान मालिक मोहम्मद नासिर का दावा है कि उसकी बूढÞी मां ने विश्वास के आधार पर उसे कमर ा किर ाए पर दे दिया था । नासिर का कहना है, ‘वह सिर्फर ात में घर लौटता था । हमार ी उससे बहुत कम मुलाकात हर्ुइ । कभी-कभार अनजान लोग उससे मिलने आते थे । पडÞोसियों से उसने सिर्फएक बार तब बात की थी, जबर् इद-उल-जुहा पर उसने एक बकर ा कर्ुबान किया था ।’ अजमल और गयूर इंडियन मुजाहिदीन के उन छह संदिग्धों में से हैं, जिन्हें ५ दिसंबर को १० दिन के लिए दिल्ली पुलिस की हिर ासत में सौंपा गया है । इन पर जामा मस् िजद गोलीबार ी और पुणे तथा बंगलुरू सहित विभिन्न आतंकवादी वार दातों को अंजाम देने का आर ोप है । हालांकि इंडियन मुजाहिदीन से जुडÞने वाली कडिÞयों की छानबीन कर र हे दिल्ली पुलिस के अधिकारि यों ने दोनों से बर ामद चीजों के बार े में बताने से इनकार कर दिया, लेकिन सूत्रों से मिली जानकार ी के मुताबिक अजमल के कब्जे से ६३५ डाँलर , पांच भार तीय और और ६ नेपाली सिम कार्ड तथा तीन मोबाइल फोन बर ामद हुए हैं ।
पुलिस का यह भी कहना है कि आतंकवादी हमलों की झडी लगाने के बाद अजमल मधुबनी के पास नेपाली सीमावर्ती गांव में सुस् ता र हा था । उसने किर ाए पर कमर ा इस वजह से लिया था जिससे उसके परि वार को पता न चल सके कि वह क्या कर र हा है । बुलाए जाने पर गयूर तो पुलिस के पास चला गया, मगर अजमल ने पिंड छुडÞाने के लिए तमाम चालें चलीं । एक आला पुलिस अधिकार ी के मुताबिक, ‘उसने कहा कि वह जयपुर का र हने वाला भार तीय है, लेकिन दिल्ली पुलिस के पास उसके खिलाफ सबूत थे ।’
पूर े आँपर ेशन को दिल्ली पुलिस ने अंजाम दिया और बिहार पुलिस की भूमिका सिर्फछापेमार ी के दौर ान उसकी मदद कर ने की र ही । बिहार के एक वरि ष्ठ आइपीएस अधिकार ी का कहना है कि वे यह नहीं समझ सके कि दिल्ली पुलिस ने अजमल के भार तीय ससुर ाल वालों से पूछताछ न कर ने का फैसला क्यों किया । नेपाली सीमावर्ती मधुबनी जिला आतंकवादियों का अड्डा क्यों बना – दर भंगा में एक वरि ष्ठ पुलिस अधिकार ी ने माना कि इस इलाके की पुलिस अपने काम के नाम पर सोती र ही, खासतौर पर इस वजह से कि जिले के अंदर आतंकवाद न के बर ाबर है । वे कहते हैं, ‘नेपाल की खुली सीमा होने के कार ण यह छिपने के लिहाज से एकदम माकूल जगह है । आप पर यहां किसी की नजर काफी समय तक नहीं पडÞेगी ।’
जिले में आतंकवादियों से लिंक का एक और पहलू है इस जिले का नेपाल के पास स् िथत होना । हालांकि नेपाल के साथ लगती बिहार की ६२५ किमी लंबी सीमा ज्यादातर खुली ही है, लेकिन इस जिले के पडÞोसी देश के साथ काफी समय से सांस् कृतिक संबंधों के कार ण यह सीमा पूर ी तर ह खुली है । एक वरि ष्ठ पुलिस अधिकार ी कहते हैं, ‘हिंदू और मुस् िलम दोनों समुदायों के सीमा पार वैवाहिक संबंध हैं । यहां तक कि संपत्ति भी साझी है ।’ इससे भी बदतर यह है कि नेपाल से आने वालों की कोई जांच-पडÞताल नहीं होती । इससे सीमा पार के आतंकवादियों को भार त में प्रवेश कर ने का एक आसान र ास् ता मिल जाता है । एक वरि ष्ठ आइपीएस अधिकार ी कहते हैं, ‘भार त, नेपाल से आने वाले पाकिस् तानियों के बार े में जानकार ी ले सकता है और इस बात की अपने स् तर पर जांच कर सकता है कि क्या उन में से कोई बिना जरूर ी कागजात के भार त में दाखिल हो र हा है । बिहार और नेपाल के अधिकारि यों के बीच सीमा पर तालमेल के स् तर में अभी काफी सुधार की जरूर त है ।’
एक पाकिस् तानी नागरि क की हाल ही में हर्ुइ गिर फ्तार ी इसे पक्का कर ती है । ३० नवंबर को मधुबनी अदालत परि सर से नेपाल से अवैध ढंग से घुस आने के आर ोप में हमीद-उर -र हमान को गिर फ्तार किया गया था । वह फर्जी पासपोर्ट के आधार पर पिछले साल भार त आने के आर ोपी अपने बेटे मुख्तार से मिलने आया था । मुख्तार न्यायिक हिर ासत में है । इंडियन मुजाहिदीन के कारि ंदों की गिर फ्तार ी से आतंकवाद विर ोधी कार्र वाई को बल मिला है । लेकिन आतंक की गुत्थी अभी भी अनसुलझी है । अगर गयूर चाहता तो फर ार हो सकता था । उसके पिता और सकर ी में होम्योपैथ मोहम्मद नसरुल्ला जमाल को एक हफ्ते से ज्यादा समय से पता था कि पुलिस उसके बेटे की तलाश में है ।
२४ नवंबर को जमाल ने पडÞोसी के यहां से अपने बेटे को फोन कर के बताया कि पुलिस इंतजार कर र ही है । गयूर खुद चल कर पछिया टोला इलाके में अपने घर के सामने खडÞी पुलिस की जीप में जाकर बैठ गया । उसके माता-पिता जोर देकर कहते हैं कि दर भंगा के अहमदिया शेफिया मदर से से फाजिल की पढर्Þाई कर ने वाला गयूर मधुबनी और दर भंगा जिलों से कभी बाहर निकला ही नहीं ।
उत्तर ी बिहार में पुलिस की कार्र वाई के बाद कई सवालों के जवाब नहीं मिले हैं । मसलन, पुलिस ने गयूर के घर की तलाशी क्यों नहीं ली – गुत्थी खोलने में मिली कामयाबी एक स् तर पर दिलासा देती है । लेकिन इनसे यह तकलीफदेह सवाल भी पैदा होता है-नेपाल की खुली सीमा से कितने आतंकवादी भार तीय क्षेत्र में दाखिल हो चुके हैं -
२०११ नवंबर के आखिर से लेकर दिसंबर की शुरुआत तक दो सप्ताह तक चले एक आँपरेशन में दिल्ली पुलिस ने यहां से इंडियन मुजाहिदीन -आइएम) के तीन और संदिग्ध कारि ंदों को पकडÞा है । आर ोप है कि ये लोग १३ सदस् यों के उस आइएम माँड्यूल के हिस् से हैं, जिसने फर वरी २०१० में पूणे की जर्मन बेकरी और अप्रैल २०१० में बंगलुरू के चिन्नास् वामी स् टेडियम में हुए विस् फोटों और सितंबर २०१० में जामा मस् िजद में हर्ुइ गोलीबार ी की साजिश र ची और उसे अंजाम दिया । ऐसा माना जाता है कि इस माँड्यूल के लीडर रि याज भटकल और इकबाल भटकल हैं । इन्हीं दोनों भाइयों ने इंडियन मुजाहिद्दीन को खडÞा किया था और दोनों फर ार हैं । उन्होंने ही इन हमलों की साजिश र ची और स् थानीय लोगों की मदद से उसे अंजाम दिया था । जर्मन बेकर ी में हुए धमाकों में १७ लोगों की जान गई थी और बंगलुरू में स् टेडियम के बाहर हुए विस् फोट में १५ लोग घायल हो गए थे । १९ सितंबर को, दिल्ली में काँमनवेल्थ खेलों के शुरू होने से ठीक पहले जामा मस् िजद पर हर्ुइ गोलीबार ी में दो ताइवानी पर्यटक घायल हुए थे ।
४१ लाख से ज्यादा की जनसंख्या वाला नेपाली सीमावर्ती मधुबनी जिला ‘एक और आजमगढÞ’ होने की बदनामी झेल र हा है । पर्ूर्वी उत्तर प्रदेश के आजमगढÞ जिले ने कई आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार इंडियन मुजाहिदीन के कम-से-कम १३ कारि ंदे भेजे थे । इन हमलों में दिल्ली में २००८ में हुए सिलसिलेवार धमाके भी शामिल थे जिनमें दो दर्जन से ज्यादा लोग मार े गए थे । दिल्ली पुलिस ने ६ दिसंबर को नेपाली सीमा से सटे एक गांव से फारूक उर्फनवाब उर्फआफताब आलम को कथित तौर पर चिन्नास् वामी स् टेडियम में बम र खने के आर ोप में गिर फ्तार किया था । फारूक, जो दुनिया को दिखाने के लिए किर ाने की छोटी-सी दूकान चलाता था, दिल्ली पुलिस की गिर फ्तार में आया आइएम का कथित सातवां कारि ंदा है ।
२२ नवंबर को दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे से दिल्ली पुलिस ने इंडियन मुजाहिदीन के पहले कारि ंदे कतील सिद्दीकी को गिर फ्तार किया । काफी दिनों तक नेपाल बिहार की सीमावर्ती क्षेत्रों में र हने के बाद वह दिल्ली गया ही था कि उसकी गिर फ्तार ी हो गई । उसके बाद के घटनाक्रम में ये सार ी गिर फ्तारि यां एक के बाद एक ताबडÞतोडÞ तेजी से होती गईं । बिहार पुलिस के साथ तालमेल से काम कर र ही दिल्ली पुलिस ने २४ नवंबर को २१ साल के छात्र और मजहबी तालीम देने वाले गयूर अहमद और एक २८ साल के पाकिस् तानी नागरि क मोहम्मद अजमल उर्फशोएब को नेपाल के सीमावर्ती मधुबनी से सटे अलग-अलग इलाकों से दबोच लिया गया था । मधुबनी में सकर ी के पछिया टोला के एक गर ीब, मगर प्रतिष्ठित परि वार के गयूर की गिर फ्तार ी से स् थानीय मुसलमान नार ाज हो गए । वे उसे बेकसूर मानते हैं । अजमल ऊनी कपडÞों का दूकानदार बन कर र हता था और उसने सकर ी से १५ किमी दूर सिग्निया चौक पर इसी साल सितंबर में कमर ा किर ाए पर लिया था ।
कमर ा लेने के बाद दो महीने के भीतर ही उसकी मौजूदगी सबकी नजर में आ गई थी । उसके हैर ान-पर ेशान मकान मालिक मोहम्मद नासिर का दावा है कि उसकी बूढÞी मां ने विश्वास के आधार पर उसे कमर ा किर ाए पर दे दिया था । नासिर का कहना है, ‘वह सिर्फर ात में घर लौटता था । हमार ी उससे बहुत कम मुलाकात हर्ुइ । कभी-कभार अनजान लोग उससे मिलने आते थे । पडÞोसियों से उसने सिर्फएक बार तब बात की थी, जबर् इद-उल-जुहा पर उसने एक बकर ा कर्ुबान किया था ।’ अजमल और गयूर इंडियन मुजाहिदीन के उन छह संदिग्धों में से हैं, जिन्हें ५ दिसंबर को १० दिन के लिए दिल्ली पुलिस की हिर ासत में सौंपा गया है । इन पर जामा मस् िजद गोलीबार ी और पुणे तथा बंगलुरू सहित विभिन्न आतंकवादी वार दातों को अंजाम देने का आर ोप है । हालांकि इंडियन मुजाहिदीन से जुडÞने वाली कडिÞयों की छानबीन कर र हे दिल्ली पुलिस के अधिकारि यों ने दोनों से बर ामद चीजों के बार े में बताने से इनकार कर दिया, लेकिन सूत्रों से मिली जानकार ी के मुताबिक अजमल के कब्जे से ६३५ डाँलर , पांच भार तीय और और ६ नेपाली सिम कार्ड तथा तीन मोबाइल फोन बर ामद हुए हैं ।
पुलिस का यह भी कहना है कि आतंकवादी हमलों की झडी लगाने के बाद अजमल मधुबनी के पास नेपाली सीमावर्ती गांव में सुस् ता र हा था । उसने किर ाए पर कमर ा इस वजह से लिया था जिससे उसके परि वार को पता न चल सके कि वह क्या कर र हा है । बुलाए जाने पर गयूर तो पुलिस के पास चला गया, मगर अजमल ने पिंड छुडÞाने के लिए तमाम चालें चलीं । एक आला पुलिस अधिकार ी के मुताबिक, ‘उसने कहा कि वह जयपुर का र हने वाला भार तीय है, लेकिन दिल्ली पुलिस के पास उसके खिलाफ सबूत थे ।’
पूर े आँपर ेशन को दिल्ली पुलिस ने अंजाम दिया और बिहार पुलिस की भूमिका सिर्फछापेमार ी के दौर ान उसकी मदद कर ने की र ही । बिहार के एक वरि ष्ठ आइपीएस अधिकार ी का कहना है कि वे यह नहीं समझ सके कि दिल्ली पुलिस ने अजमल के भार तीय ससुर ाल वालों से पूछताछ न कर ने का फैसला क्यों किया । नेपाली सीमावर्ती मधुबनी जिला आतंकवादियों का अड्डा क्यों बना – दर भंगा में एक वरि ष्ठ पुलिस अधिकार ी ने माना कि इस इलाके की पुलिस अपने काम के नाम पर सोती र ही, खासतौर पर इस वजह से कि जिले के अंदर आतंकवाद न के बर ाबर है । वे कहते हैं, ‘नेपाल की खुली सीमा होने के कार ण यह छिपने के लिहाज से एकदम माकूल जगह है । आप पर यहां किसी की नजर काफी समय तक नहीं पडÞेगी ।’
जिले में आतंकवादियों से लिंक का एक और पहलू है इस जिले का नेपाल के पास स् िथत होना । हालांकि नेपाल के साथ लगती बिहार की ६२५ किमी लंबी सीमा ज्यादातर खुली ही है, लेकिन इस जिले के पडÞोसी देश के साथ काफी समय से सांस् कृतिक संबंधों के कार ण यह सीमा पूर ी तर ह खुली है । एक वरि ष्ठ पुलिस अधिकार ी कहते हैं, ‘हिंदू और मुस् िलम दोनों समुदायों के सीमा पार वैवाहिक संबंध हैं । यहां तक कि संपत्ति भी साझी है ।’ इससे भी बदतर यह है कि नेपाल से आने वालों की कोई जांच-पडÞताल नहीं होती । इससे सीमा पार के आतंकवादियों को भार त में प्रवेश कर ने का एक आसान र ास् ता मिल जाता है । एक वरि ष्ठ आइपीएस अधिकार ी कहते हैं, ‘भार त, नेपाल से आने वाले पाकिस् तानियों के बार े में जानकार ी ले सकता है और इस बात की अपने स् तर पर जांच कर सकता है कि क्या उन में से कोई बिना जरूर ी कागजात के भार त में दाखिल हो र हा है । बिहार और नेपाल के अधिकारि यों के बीच सीमा पर तालमेल के स् तर में अभी काफी सुधार की जरूर त है ।’
एक पाकिस् तानी नागरि क की हाल ही में हर्ुइ गिर फ्तार ी इसे पक्का कर ती है । ३० नवंबर को मधुबनी अदालत परि सर से नेपाल से अवैध ढंग से घुस आने के आर ोप में हमीद-उर -र हमान को गिर फ्तार किया गया था । वह फर्जी पासपोर्ट के आधार पर पिछले साल भार त आने के आर ोपी अपने बेटे मुख्तार से मिलने आया था । मुख्तार न्यायिक हिर ासत में है । इंडियन मुजाहिदीन के कारि ंदों की गिर फ्तार ी से आतंकवाद विर ोधी कार्र वाई को बल मिला है । लेकिन आतंक की गुत्थी अभी भी अनसुलझी है । अगर गयूर चाहता तो फर ार हो सकता था । उसके पिता और सकर ी में होम्योपैथ मोहम्मद नसरुल्ला जमाल को एक हफ्ते से ज्यादा समय से पता था कि पुलिस उसके बेटे की तलाश में है ।
२४ नवंबर को जमाल ने पडÞोसी के यहां से अपने बेटे को फोन कर के बताया कि पुलिस इंतजार कर र ही है । गयूर खुद चल कर पछिया टोला इलाके में अपने घर के सामने खडÞी पुलिस की जीप में जाकर बैठ गया । उसके माता-पिता जोर देकर कहते हैं कि दर भंगा के अहमदिया शेफिया मदर से से फाजिल की पढर्Þाई कर ने वाला गयूर मधुबनी और दर भंगा जिलों से कभी बाहर निकला ही नहीं ।
उत्तर ी बिहार में पुलिस की कार्र वाई के बाद कई सवालों के जवाब नहीं मिले हैं । मसलन, पुलिस ने गयूर के घर की तलाशी क्यों नहीं ली – गुत्थी खोलने में मिली कामयाबी एक स् तर पर दिलासा देती है । लेकिन इनसे यह तकलीफदेह सवाल भी पैदा होता है-नेपाल की खुली सीमा से कितने आतंकवादी भार तीय क्षेत्र में दाखिल हो चुके हैं -
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