हिमालिनी के सौजन्य से ------
नेपाल-भारत सम्बन्ध
“कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी”
नेपाल-भारत सम्बन्ध
प्रो. नवीन मिश्रा
“कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी”
नेपाली राजनीति में शुरु से लेकर आज तक भार त की भूमिका के सर्न्दर्भ में अगर कहा जाए कि ‘कुछ बात है कि हस् ती मिटती नहीं हमारी’ तो अतिशयोक्ति नहीं होगी । यह कटु सत्य है कि भले ही हम भार तीय राजदूत पर जूता उछालें या फिर वीरगंज के कन्सुलर को बदनाम कर ने की कोशिश कर , नेपाली राजनीति में भार तीय वजूद को नकार नहीं सकते । अभी हाल ही में प्रकाशित श्याम शर ण जी के लेख से कुछ बातें सामने आई हैं । पहली महत्त्वपर्ण्ा बात नेपाली सेना में नियुक्ति, पदोन्नोति के सम्बन्ध में उन्होंने अपनी भूमिका को स् वीकार किया है । वास् तव में नेपाल-भार त सम्बन्ध में हमेशा नेपाल जैसे आर्थिक महत्त्व की बातों को तर जीह देता है- वैसे ही भार त सुर क्षात्मक बातों को । यही कार ण है कि सेना और सुर क्षा के मामले में भार त चुप नहीं बैठ सकता । दूसरी घटना नेपाल के एक वरि ष्ट पत्रकार से जुडी है- जिस में बिना सच्चाई जाने ही उसने भार त विर ोधी समाचारों का संप्रेषण किया, जिसके लिए उसने बाद में माफी भी मांगी । वास् तविकता तो यही है कि हमारे यहाँ राष्ट्रीय हित पर व्यक्तिगत हित हाबी है । किसी भी देश की विदेश नीति र ाष्ट्रीय हित पर आधारि त होती है । लेकिन हमारे यहाँ राष्ट्र की चिन्ता किसे है । हमने आज तक नहीं देखा है कि किसी र ाष्ट्रिय मुद्दे पर एकजूट होकर हम भार त के समक्ष उपस्िथत हों । यहाँ तो किसी की कर्ुर्सर्ीीीन जाती है तो वह भार त विरोधी बन जाता है । किसी नेता के बच्चे को अगर मेडिकल या इन्जीनीयरिंग में दाखिला नहीं मिलता हैं तो वह भारत के विरोध में आग उगलने लगता है । मिडिÞया का भी कमोबेश यही हाल है । जब तक किसी पत्रिका या चैनल को भार तीय र ाजदूतावास से प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष आर्थिक सहायता मिलती र ही है, तब तक तो ठीक, नहीं तो वह भी भार त विर ोधी बन जाता है ।
अभी हाल ही में कुछ दिनों पहले मार्टिन चौतार ी द्वार ा आयोजित सेमिनार में कार्यपत्र प्रस् तुत कर ने मैं काठमांडू गया था । एक सम्यवादी नेता उस सेमिनार में भार त विर ोधी तेवर लिए नेपाल-भार त सम्बन्ध पर टिप्पणी कर ते हुए एक लम्बी कहानी सुना गए, जिसका सार यही था कि कैसे एक व्यक्ति किसी बकर े को पाल पोस कर , खिलापिला कर बडÞा बनाता है और जब उसका मन कर ता है उसे मार कर खा जाता है । मैं कहता हूँ कि बकर ा की यह दर्ुदशा इसलिए है क्योंकि वह पर जीवी है । लेकिन सवाल यह है कि हम पर जीवी क्यों या कब तक बने र हें । हम क्यों नहीं स् वावलम्बी अब तब बन सके – विगत से लेकर आज तक हमें क्यों किसी की मदद या सहार े की जरुर त होती है – विभिन्न र ाजनीतिक दलों और माओवादियों के बीच अपने देश में भी तो कई बार बार्ताएँ हर्ुइ थी । देश में यह बार्ता क्यों सफल नहीं हर्ुइ – क्यों दिल्ली में ही यह बार्ता सफल होती है -
नेपाल-भार त बीच समझदार ी-असमझदार ी का एक प्रमुख कार ण नदी जल विवाद भी र हा है । भार त द्वार ा कोशी नदी पर बाँध बनाए जाने से नेपाल में असंतुष्टी जताई गई । ऐसा आकलन किया गया कि बाँध के कार ण नेपाल की जमीन का एक बडÞा हिस् सा पानी में डूब जाएगा । नेपाल सर कार को इस बाँध से उत्पन्न होने वाली बिजली का लाभ मिलना था, लेकिन इस बात की अनदेखी कर दी गई । बाँध से जुडेÞ किसी भी प्रकार के हर्जाने का भुगतान भी भार त सर कार को ही कर ना था । कुछ दिनों बाद जब महाकाली नदी पर पञ्चेश्वर नामक स् थान में एक नए बाँध के निर्माण की परि योजना को मञ्जूर ी मिली तो फिर से विवाद उत्पन्न हुआ और भार त द्वार ा नेपाली भूभाग को कब्जा में लिए जाने का आर ोप लगाया गया ।
नेपाल में भार त विर ोधी तत्वों की चहलकदमी के कार ण भी भार त और नेपाल के बीच मनमुटाव हुआ है । इसी भूमिका उपभोग भार त विर ोधी तत्व कर ते र हे हैं । नेपाल पर्यटकों का एक प्रमुख आकर्षा केन्द्र है और इसीलिए भार त विर ोधी तत्व यहाँ आसानी से पर्यटकों का जामा ओढÞकर चले आते हैं । जब जनवर ी २००० में काठमांडू से एक भार तीय विमान का अपहर ण हो गया, तब इस बात की पुष्टी हो गई कि कैसे इस षडÞयन्त्र के तार काठमांडू से कांधार और काबुल तक जुडेÞ हुए हैं । यह बात अवश्य है कि नेपाल सर कार इन भार त विर ोधी तत्वों की मदत तो नहीं कर ता है लेकिन उस पर पूर ी तर ह से अंकुश लगाने में भी सक्षम नहीं है ।
जब शाही महल के कत्लेआम में तत्कालीन र ाजा वीर ेन्द्र सपरि वार मौत के घाट उतार दिए गए और ज्ञानेन्द्र ने नेपाल की सत्ता पर कब्जा जमा लिया, तब उस समय में भी अचानक भार त-नेपाल सम्बंधों में तनाव बढÞ गया था । तत्कालीन शासक ज्ञानेन्द्र भार त और नेपाल के जनतान्त्रिकीकर ण दोनों ही के विर ोधी थे । नेपाल में माओवादी व्रि्रोह के कार ण भी नेपाल और भार त के सम्बन्ध तनावपर्ूण्ा र हे हैं । माओवादियों समेत नेपाल में जनतन्त्र के र्समर्थकों को लग र हा था कि र ाजशाही को भार त सर कार द्वार ा र्समर्थन दिया जा र हा है । जनआन्दोलन की तीव्रता के समय डाँ. कर्ण्र्ाासंह का काठमांडू आकर तत्कालीन शासक ज्ञानेन्द्र से मुलाकात के कार ण यह शंका और बढÞ गई । दूसर ी ओर र ाजवंश को लग र हा था कि पर्दे के पीछे विपक्षी दलों के माध्यम से र ाजमहल के विर ोधियों को भार त सहायता और संर क्षण प्रदान कर ता र हता है । उधर माओवादियों को लग र हा था कि भार त द्वार ा नेपाल को उपलब्ध कर ाए गए सैनिक साज समानों का उपभोग उन्हीं के विरुद्ध किया जा र हा है ।
लेकिन अब समय परिर् वतन हो चुका है । देश में गणतन्त्र की स् थापना हो गई है और एक समय के हिंसक नेपाली माओवादी न सिर्फजिम्मेवार संसदीय र ाजनेता की भूमिका निभा र हे हैं बल्कि सत्ता भी उन्हीं के हाथों में है । माओवादी सांसदों पर अन्य दलों के सांसदों की तुलना में भ्रष्टाचार निकम्मेपन का कम आर ोप लगा है । यह भी सत्य है कि नेपाली माओवादी हिंसा और तत्कालीन शाही सर कार भी हिंसा को एक ही तर ाजू के पलडÞो में नहीं तौला जा सकता । यह बात अलग है कि माओवादियों के एक गुट का तेवर अभी भी भार त विर ोधी बना हुआ है । यह सच है कि भार त सर कार ने संवैधानिक र ाजतन्त्र के नाम पर निर ंकुश र ाजशाही को प्रत्यक्ष और पर ोक्ष र्समर्थन दिया है, उस का प्रहार माओवादियों और जनतन्त्रवादियों ने ही झेला है । नेपाली सेना के दिए गए भार तीय हथियार किसी बाहर ी शत्रु के विरुद्ध नहीं, अपने ही नौजवानों को कुचलने के लिए इस् तेमाल हुए है । यह जरुर है कि भार त का र ाष्ट्रहित नेपालियों पर थोपना उचित नहीं होगा । भार त की भलाई इसी में है कि नेपाल में स् िथर ता और शान्ति बहाल होने के बाद, आर्थिक विकास गति पकडÞे । जैसे जैसे समाज में व्याप्त दर्दनाक विषमता कम होगी, नेपाल-भार त सम्बन्ध भी खूद बखूद सामान्य होता चला जाएगा । खुली सीमा के कार ण भार त को अपनी सुर क्षा व्यवस् था के लिए चिन्तित होना स् वाभाविक है लेकिन यह भी सच है कि बिना स् थानीय लोगों की मदत से कोई भी आतंकवादी गतिविधि सम्भव नहीं होती । अतः हर विस् फोट को विदेशी साजिश कर ार देकर सर कार जो अपना पल्ला झाडÞ लेती है, वह भी उचित नहीं है । केन्द्र सर कार और र ाज्यों की सर कार ों को भी अपनी सुर क्षा व्यवस् था को चुस् त दुरुस् त बनाना होगा । वैसे भी मुझे लगता है कि नेपाल के किसी भी संघ या संगठन की इतनी ताकत या प्रभाव नहीं है कि वह भार त के उग्रवादियों को प्रभावित या मार्गदर्शन कर सके ।
अभी हाल ही में कुछ दिनों पहले मार्टिन चौतार ी द्वार ा आयोजित सेमिनार में कार्यपत्र प्रस् तुत कर ने मैं काठमांडू गया था । एक सम्यवादी नेता उस सेमिनार में भार त विर ोधी तेवर लिए नेपाल-भार त सम्बन्ध पर टिप्पणी कर ते हुए एक लम्बी कहानी सुना गए, जिसका सार यही था कि कैसे एक व्यक्ति किसी बकर े को पाल पोस कर , खिलापिला कर बडÞा बनाता है और जब उसका मन कर ता है उसे मार कर खा जाता है । मैं कहता हूँ कि बकर ा की यह दर्ुदशा इसलिए है क्योंकि वह पर जीवी है । लेकिन सवाल यह है कि हम पर जीवी क्यों या कब तक बने र हें । हम क्यों नहीं स् वावलम्बी अब तब बन सके – विगत से लेकर आज तक हमें क्यों किसी की मदद या सहार े की जरुर त होती है – विभिन्न र ाजनीतिक दलों और माओवादियों के बीच अपने देश में भी तो कई बार बार्ताएँ हर्ुइ थी । देश में यह बार्ता क्यों सफल नहीं हर्ुइ – क्यों दिल्ली में ही यह बार्ता सफल होती है -
नेपाल-भार त बीच समझदार ी-असमझदार ी का एक प्रमुख कार ण नदी जल विवाद भी र हा है । भार त द्वार ा कोशी नदी पर बाँध बनाए जाने से नेपाल में असंतुष्टी जताई गई । ऐसा आकलन किया गया कि बाँध के कार ण नेपाल की जमीन का एक बडÞा हिस् सा पानी में डूब जाएगा । नेपाल सर कार को इस बाँध से उत्पन्न होने वाली बिजली का लाभ मिलना था, लेकिन इस बात की अनदेखी कर दी गई । बाँध से जुडेÞ किसी भी प्रकार के हर्जाने का भुगतान भी भार त सर कार को ही कर ना था । कुछ दिनों बाद जब महाकाली नदी पर पञ्चेश्वर नामक स् थान में एक नए बाँध के निर्माण की परि योजना को मञ्जूर ी मिली तो फिर से विवाद उत्पन्न हुआ और भार त द्वार ा नेपाली भूभाग को कब्जा में लिए जाने का आर ोप लगाया गया ।
नेपाल में भार त विर ोधी तत्वों की चहलकदमी के कार ण भी भार त और नेपाल के बीच मनमुटाव हुआ है । इसी भूमिका उपभोग भार त विर ोधी तत्व कर ते र हे हैं । नेपाल पर्यटकों का एक प्रमुख आकर्षा केन्द्र है और इसीलिए भार त विर ोधी तत्व यहाँ आसानी से पर्यटकों का जामा ओढÞकर चले आते हैं । जब जनवर ी २००० में काठमांडू से एक भार तीय विमान का अपहर ण हो गया, तब इस बात की पुष्टी हो गई कि कैसे इस षडÞयन्त्र के तार काठमांडू से कांधार और काबुल तक जुडेÞ हुए हैं । यह बात अवश्य है कि नेपाल सर कार इन भार त विर ोधी तत्वों की मदत तो नहीं कर ता है लेकिन उस पर पूर ी तर ह से अंकुश लगाने में भी सक्षम नहीं है ।
जब शाही महल के कत्लेआम में तत्कालीन र ाजा वीर ेन्द्र सपरि वार मौत के घाट उतार दिए गए और ज्ञानेन्द्र ने नेपाल की सत्ता पर कब्जा जमा लिया, तब उस समय में भी अचानक भार त-नेपाल सम्बंधों में तनाव बढÞ गया था । तत्कालीन शासक ज्ञानेन्द्र भार त और नेपाल के जनतान्त्रिकीकर ण दोनों ही के विर ोधी थे । नेपाल में माओवादी व्रि्रोह के कार ण भी नेपाल और भार त के सम्बन्ध तनावपर्ूण्ा र हे हैं । माओवादियों समेत नेपाल में जनतन्त्र के र्समर्थकों को लग र हा था कि र ाजशाही को भार त सर कार द्वार ा र्समर्थन दिया जा र हा है । जनआन्दोलन की तीव्रता के समय डाँ. कर्ण्र्ाासंह का काठमांडू आकर तत्कालीन शासक ज्ञानेन्द्र से मुलाकात के कार ण यह शंका और बढÞ गई । दूसर ी ओर र ाजवंश को लग र हा था कि पर्दे के पीछे विपक्षी दलों के माध्यम से र ाजमहल के विर ोधियों को भार त सहायता और संर क्षण प्रदान कर ता र हता है । उधर माओवादियों को लग र हा था कि भार त द्वार ा नेपाल को उपलब्ध कर ाए गए सैनिक साज समानों का उपभोग उन्हीं के विरुद्ध किया जा र हा है ।
लेकिन अब समय परिर् वतन हो चुका है । देश में गणतन्त्र की स् थापना हो गई है और एक समय के हिंसक नेपाली माओवादी न सिर्फजिम्मेवार संसदीय र ाजनेता की भूमिका निभा र हे हैं बल्कि सत्ता भी उन्हीं के हाथों में है । माओवादी सांसदों पर अन्य दलों के सांसदों की तुलना में भ्रष्टाचार निकम्मेपन का कम आर ोप लगा है । यह भी सत्य है कि नेपाली माओवादी हिंसा और तत्कालीन शाही सर कार भी हिंसा को एक ही तर ाजू के पलडÞो में नहीं तौला जा सकता । यह बात अलग है कि माओवादियों के एक गुट का तेवर अभी भी भार त विर ोधी बना हुआ है । यह सच है कि भार त सर कार ने संवैधानिक र ाजतन्त्र के नाम पर निर ंकुश र ाजशाही को प्रत्यक्ष और पर ोक्ष र्समर्थन दिया है, उस का प्रहार माओवादियों और जनतन्त्रवादियों ने ही झेला है । नेपाली सेना के दिए गए भार तीय हथियार किसी बाहर ी शत्रु के विरुद्ध नहीं, अपने ही नौजवानों को कुचलने के लिए इस् तेमाल हुए है । यह जरुर है कि भार त का र ाष्ट्रहित नेपालियों पर थोपना उचित नहीं होगा । भार त की भलाई इसी में है कि नेपाल में स् िथर ता और शान्ति बहाल होने के बाद, आर्थिक विकास गति पकडÞे । जैसे जैसे समाज में व्याप्त दर्दनाक विषमता कम होगी, नेपाल-भार त सम्बन्ध भी खूद बखूद सामान्य होता चला जाएगा । खुली सीमा के कार ण भार त को अपनी सुर क्षा व्यवस् था के लिए चिन्तित होना स् वाभाविक है लेकिन यह भी सच है कि बिना स् थानीय लोगों की मदत से कोई भी आतंकवादी गतिविधि सम्भव नहीं होती । अतः हर विस् फोट को विदेशी साजिश कर ार देकर सर कार जो अपना पल्ला झाडÞ लेती है, वह भी उचित नहीं है । केन्द्र सर कार और र ाज्यों की सर कार ों को भी अपनी सुर क्षा व्यवस् था को चुस् त दुरुस् त बनाना होगा । वैसे भी मुझे लगता है कि नेपाल के किसी भी संघ या संगठन की इतनी ताकत या प्रभाव नहीं है कि वह भार त के उग्रवादियों को प्रभावित या मार्गदर्शन कर सके ।
0 comments:
Post a Comment