ईरान में बंदरगाह, भारत के लिए गेमचेंजर : चीन को एक गम्भीर चुनौती
भारत और ईरान दो प्राचीन सभ्यताओं के देश हैं और इनका संबध हज़ारों साल पुराना है.
आज़ादी से पहले ईरान भारत का पड़ोसी था लेकिन पाकिस्तान बनने के बाद संपर्क टूट गया.
दोनों देशों के बीच रेल और रोड के माध्यम से आवाजाही भले ही समाप्त हो गई हो मगर एक बार फिर वह समुद्री मार्ग के माध्यम से जुड़ने का प्रयास कर रहे हैं.
ईरान ने भारत को चाबहार शहर में बंदरगाह बनाने का काम सौंप दिया है और अगले दस साल तक इसका प्रबंधन भी भारत करेगा.
इस बंदरगाह को बनाने में भारत लगभग 8.5 करोड़ डॉलर खर्च करेगा. यह विदेश में स्थित भारत का पहला बंदरगाह होगा जो भारत के मुन्द्रा पोर्ट से केवल 940 किमी की दूरी पर है. इस यात्रा को पूरा करने में चार दिन लगेंगे.
चाबहार पोर्ट ईरान के दक्षिण-पूर्व प्रांत सिस्तान-बलूचिस्तान में है जो चीन द्वारा बनाए जाने वाले ग्वादर पोर्ट से काफी नजदीक है.
यह पोर्ट रेल तथा रोड के माध्यम से ईरान द्वारा बनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर से भी जुड़ जाएगा.
इसके माध्यम से भारत अपना सामान मध्य एशिया तथा रूस तक पहुंचाने में सक्षम होगा.
यहां पर तेल, प्राकृतिक गैस तथा अन्य खनिज-पदार्थों के बड़े भंडार पाए जाते हैं.
इन सभी देशों को व्यापार का एक नया अवसर प्राप्त होगा. ईरान चाबहार पोर्ट में फ्री ट्रेड इंडस्ट्रियल ज़ोन भी बना रहा है.
चाबहार पोर्ट का सामरिक महत्व भी है जो कि आने वाले समय में दक्षिण-एशिया, मध्य-एशिया तथा पश्चिम-एशिया के दूसरे बड़े व्यापार केन्द्रों को भी जोड़ने का काम करेगा.
चाबहार स्वयं एक बड़े औद्योगिक क्षेत्र तथा यातायात केन्द्र के रूप में उभर रहा है. यह परियोजना एक बड़े गेम चेंजर का काम करेगी जो कि दक्षिण-एशिया तथा मध्य एशिया के आर्थिक एकीकरण में मदद करेगा.
इस पोर्ट को बनाने में भारत तथा ईरान के निजी स्वार्थ शामिल हैं. चाबहार पोर्ट भारत के माल को मध्य-एशिया, ईरान की खाड़ी तथा पूर्वी-यूरोप तक एक तिहाई समय में पहुंचाने का काम करेगा और भाड़े में भी कटौती होगी.
इसके अतिरिक्त भारत चाबहार पोर्ट को रेल तथा रोड के माध्यम से अफगानिस्तान को जोड़ने का काम कर रहा है.
अभी तक पाकिस्तान ने भारत से अफगानिस्तान जाने के मार्ग को रोका हुआ है. भारत के अफगानिस्तान से आर्थिक और सुरक्षा संबंधी हित जुड़े हुए हैं.
पश्चिमी देशों के प्रतिबंध से राहत मिलने पर भारत चाबहार में लगभग 2 लाख करोड़ रुपए का निवेश करने की योजना बना रहा है. यह तभी संभव होगा जब ईरान भारत को सस्ते दाम पर प्राकृतिक गैस देने पर राजी होगा.
ईरान ने भारत को यूरिया प्लांट लगाने के लिए गैस 2.95 डॉलर प्रति मिलियन बीटीयू देने का प्रस्ताव रखा है.
भारत इसमें और अधिक छूट चाहता है क्योंकि वह इस प्लांट को चाबहार में लगाएगा.
इसके अतिरिक्त भारत की बहुत सी कंपनियां ईरान में कोल गैस, रेल, शिंपिंग (नौपरिवहन) तथा खेती के क्षेत्र में निवेश करना चाहते हैं.
भारत ने ईरान से समुद्री मार्ग के द्वारा गैस पाइपलाइन लाने की योजना भी बनाई है.
इस पाइपलाइन के माध्यम से तुर्कमेनिस्तान तथा ओमान भी गैस भारत में भेज सकते हैं. ईरान उन सभी देशों को व्यापार में छूट देने का विचार रखता है जिन्होंने उसका बुरा समय में साथ दिया था.
राष्ट्रपति हसन रोहानी के सत्ता में आने के बाद से ईरान की नीतियों में काफी परिवर्तन आ रहा है.
ईरान इस क्षेत्र में एक बड़ा शक्तिशाली देश बनना चाहता है और वह तभी संभव है जब उसके संबंध सभी देशों से अच्छे हों. यही नहीं बल्कि वह अपनी विदेश नीति के मामले में किसी दूसरे देश का प्रभाव भी नहीं देखना चाहता.
वह पश्चिम देशों के साथ रिश्तों में सुधार करके रूस के प्रभाव को ईरान में कम करना चाहता है और भारत से अपना संबंध बढ़ाकर चीन के बढ़ते प्रभाव में संतुलन लाना चाहता है.
भारत भी नहीं चाहता कि ईरान, पाकिस्तान और चीन मिलकर कोई नया गठबंधन बनाए जो आगे चलकर भारत के विरुद्ध काम करे.
भारत के लिए ईरान एक बहुत महत्वपूर्ण देश है. वो न केवल तेल का बड़ा व्यापारिक केन्द्र है, बल्कि मध्य-एशिया, रूस तथा पूर्वी यूरोप जाने का एक मार्ग भी है.
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