" मेड इन इंडिया" की रौनक अब स्पष्ट दिखने लगी
अब चीनी सामान भी 'मेड इन इंडिया'
चीन से आने वाले खिलौने और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण अब भारत में ही बनने लगे हैं और इसकी शुरुआत खुद चीनी कंपनियों ने की है.
आंध्र प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में स्थित ये चीनी कंपनियां अमरीका को निर्यात के लिए भी सामान बना रही हैं.
'मेक इन इंडिया' अभियान से आकर्षित होकर श्री सिटी इंडस्ट्रियल हब में ऐसी छोटी बड़ी 100 कंपनियां हैं.
पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को मैन्युफ़ैक्चरिंग हब बनाने के लिए यह अभियान शुरू किया था.
इस योजना के तहत सरकार उन कंपनियों को रियायत देगी जो भारत में उत्पादन करेंगी.
हाल ही में केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा था, “साफ़ लब्जों में कहा जाय तो अगर आप 100 रुपये निवेश करते हैं तो हम 25 रुपये देंगे. इसके अलावा अन्य छूट भी मिलेगी.”
इंडस्ट्रियल ज़ोन के संस्थापक रवींद्र सन्नारेड्डी कहते हैं कि ये रियायतें भारत को चीनी कंपनियों के लिए एक पंसदीदा जगह बनाती हैं.
वो कहते हैं, “परंपरागत रूप से भारत को निर्यात करने वाली चीनी कंपनियां इन रियायतों का फायदा उठाने भारत आ रही हैं.”
लेकिन कंपनियों के लिए यही एक आकर्षण नहीं है. ये औद्योगिक क्षेत्र ग्रामीण इलाक़े में है, बावजूद इसके यहां श्रमिकों की कमी नहीं है.
रेड्डी का अनुमान है कि आस पास के गांवों में नौकरी करने लायक क़रीब दो लाख नौजवान होंगे.
पाल्स प्लश यूनिवर्सल स्टूडियोज़, वॉलमार्ट और पॉटरी बार्न किड्स जैसे ब्रांडों के लिए खिलौने बनाती है.
इसकी निदेशक सीमा नेहरा कहती हैं कि उनकी फ़ैक्ट्री में क़रीब 80 प्रतिशत मज़दूर महिलाएं हैं.
उनके मुताबिक़, “ये सभी गांव से हैं और हम शुरुआत में उन्हें ट्रेनिंग देते हैं. हालांकि खिलौने बाने में सिलाई और फ़िनिशिंग जैसे कामों में उन्हें दिक्कत नहीं आती.”
और यही वो चीज़ है जो भारत दुनिया को बेच रहा है यानी, नौजवान और सस्ते मज़दूर.
भारत की दो तिहाई आबादी 35 साल से कम उम्र की है और अगले दशक में भारत के पास किसी भी अन्य जगह के मुक़ाबले काम कर सकने वाली सबसे अधिक आबादी होगी.
शायद इन्हीं वजहों ने एप्पल आई फ़ोन बाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनी फ़ॉक्सकॉन को भारत में 20 अरब डॉलर का निवेश और 10 फ़ैक्ट्रियां लगाने को आकर्षित किया है.
इस कंपनी ने चीन में 10 लाख लोगों को नौकरी दी है.
फ़ॉक्सकॉन शाओमी समेत कई अन्य चीनी ब्रांडों के लिए असेम्बलिंग का काम यहां एक साल पहले ही शुरू कर चुकी है.
कंपनी की भारतीय शाखा के मुखिया मनु जैन कहते हैं, “हम बाहर से सामान आयात करते हैं और इसमें तकरीबन चार से पांच सप्ताह का समय लगता है.”
वो बताते हैं, “जब हम भारत में ही सामान बनाते हैं तो यह समय घटकर दो से तीन सप्ताह हो जाता है. यह बहुत बड़ी बचत है. आपूर्ति में मुनाफ़े और उपभोक्ताओं के क़रीब होने की सहूलियत के कारण हमने भारत में फ़ोन बनाने का फैसला किया.”
पिछले साल शाओमी, वनप्लस, लेनोवो, जियोनी और आसुस जैसी कंपनियों ने भी मेक इन इंडिया के तहत भारत में निवेश की घोषणा की.
मैन्यूफ़ैक्चरिंग फ़र्म शियान लोंगी सिलिकॉन मैटीरियल्स कॉर्पोरेशन हाल ही में निवेश के लिए एमओयू साइन करने वाली कंपनियों में सबसे नई है.
कंपनी ने शुरुआत में आंध्रप्रदेश में 25 करोड़ डॉलर के निवेश और बाद में इसका छह गुना निवेश का वादा किया है, जिससे पांच हज़ार नौकरियों के अवसर पैदा होंगे.
लांगी के चेयरमैन बाउशेन झोंग के मुताबिक़, “भारत भविष्य का बहुत शानदार बाज़ार है और हम इस मौके को चूकना नहीं चाहते.”
अगले दशक में भारत को 10 करोड़ नौकरियों के अवसर पैदा करने की ज़रूरत पड़ेगी, ऐसे भारत के लिए चीनी कंपनियां अहम हैं.
विश्व बैंक के मुताबिक़, “चीन में तेज़ी से बढ़ती मज़दूरी का मतलब है कि चीनी कंपनियां अब बाहर की ओर जाना चाह रही हैं और भारत इस मौके को भुनाने की आस लगाए है.”
हालांकि सस्ते और श्रमिकों की पर्याप्त उपलब्धता ही उन्हें यहां खींच कर ला रही है, फिर भी कुछ चीनी कंपनियों का कहना है कि भारत सरकार को लालफ़ीताशाही में और कटौती करने की ज़रूरत है.
ज़ेडटीटी इंडिया के निदेशक चेन झाओफ़ेंग कहते हैं, “उम्मीद थी कि यहां की सरकार बहुत सक्षम होगी. लेकिन इसमें बहुत सुधार की ज़रूरत है.”
यह कंपनी फ़ाइर ऑप्टिक और पॉवर ट्रांसमिशन के उपकरण बनाती है.
चीनी कंपनियों की संख्या भले ही बढ़ रही हो लेकिन उनके लिए जीवन की गुणवत्ता एक चिंता का मुद्दा है.
अधिकांश को लगता है कि बड़े शहरों की तरह यहां सुपरमार्केट, ग्लोबल रेस्त्रां की शाखाएं, मन बहलाव की और जगहें हों.
लेकिन ये चिंताएं चीनी कंपनियों को यहां अपनी फ़ैक्ट्रियां लगाने से रोकने के लिए पर्याप्त नहीं हैं.
हालांकि अगर भारत अपनी बुनियादी संरचनाओं में सुधार नहीं करता है तो यह अपने एशियाई प्रतिद्वंद्वी से अधिक से अधिक निवेश हासिल करने के मौके गंवा देगा.
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