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क्षेत्रीय सुरक्षा , शांति और सहयोग की प्रबल संभावना – चीथड़ों में लिपटी पाकिस्तान की राष्ट्रीयत

“ क्षेत्रीय सुरक्षा , शांति और सहयोग की प्रबल संभावना – चीथड़ों में लिपटी पाकिस्तान की राष्ट्रीयत ा “ —गोलोक विहारी राय पिछले कुछ वर्षों...

Monday, 30 October 2017

समीक्षा

दौड़ लगाते सोच
जिसकी प्रतिछवि
मन में उठते भाव की
वे तरंगें ही हैं जैसे
लड़ रही बाज़ से
एक स्याह भूरी चिड़िया
अपने रक्त की उजास में
जिसकी परछाई
एक उफनती नदी है

मैं दूरी से नहीं
देरी से डरता हूँ
जो घटित होना चाहता है
और सिर्फ स्मृति में नहीं
इस उधेड़बुन में कि
पहल कौन करेगा

जो सोच है
जो भाव है
मर जाते हैं
साहस की कमी से
कई बार तो मरते हैं
मौसम की उमस से
या अत्यधिक नमी से
जो शब्द, भाव, सोच
जो मरते नहीं ठंड या
ताप की प्रचंड दहक से
वे मर जाते हैं
मौसम की अतिवृष्टि से

अहर्निश लम्बी
बात सोच के बाद
हम लौटना चाहते हैं
अपने अपने खेलों में
जहाँ दिन में
किये जाने वाले
सभी काम
अपनी पूर्ण सूची के साथ
उजाले के सङ्ग टँगे हैं

जब कि
कच्चे सूत सा जीवन
खंजर सम्भाल तराशता
दूर बैठा वक़्त
पास बैठे ईश्वर से
मनुहार कर रहा होता
इस बार मेरे बीच में
मत आना
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Thursday, 26 October 2017

यात्रा - अकेला से एकांगी की

ये जीवन
और कुछ नहीं
वस्तुतः
अकेलेपन से
एकांत की ओर
एक ऐसी यात्रा है
जिसमें
रास्ता भी हम हैं
राही भी हम हैं
और मंज़िल भी
हम ही हैं

इस जीवन के सफर में
इसके गतियुक्त रिश्ते में
न जाने कितने लोग
हमसफर बन जाते हैं
पर मंज़िल पर पहुंचकर
एक बार ठहर जाता
यह जीवन भी
साथ ही काल भी
ठहर जाता है
अपनी ही गति से
स्तब्ध हो आँखें
खुली की खुली
रह जाती, फिर से
अकेले हो जाते हैं हम

एक छोटी सी
कश्ती में चल
पार उतरना है
धीरे-धीरे खेना
बस दरिया को
जगाना नहीं है

जीवन में वो यादें
जो अकेले में आती
वे यादें ही कहाँ ?
याद वो है जो
महफ़िल में आये और
अकेला कर जाये
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Sunday, 22 October 2017

हमारी एकता का संकट

आज बार-बार यह अवाज उठाया जाता है कि पिछड़ा - वंचित वर्ग की समस्या एक सामाजिक समस्या है और इसका समाधान राजनीतिक नहीं है। पर इतना भी सत्य है कि जब तक पिछड़ा वंचित वर्गों के हाथों में राजनीतिक सत्ता नहीं आती, उनकी समस्या का समाधान नहीं हो साकता है।
              तुर्कों, मुग़लों और अंग्रेज़ों के हाथ से निकलकर राजनीतिक सत्ता ऐसे लोगों के हाथ में गयी, जिनका हमारे सामाजिक जीवन में आर्थिक, सामाजिक एवं  भद्रलोक ( सभ्य) होने का प्रभुत्व रहा। इसप्रकार के स्वराज्य का स्वरूप उन्हीं भुतकाल के विगत अत्याचार और अन्याय की याद दिलाएगा। अतः यह आवश्यक  है कि इन्हें भी सभी के साथ साथ राजनीतिक सत्ता में पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिले। इसका यह क़तई अर्थ नहीं कि इनका नेतृत्व पूर्वाग्रह से ग्रसित व दूषित बना रहे।
         डा लोहिया की सामाजिक न्याय की यह गूँज, जिसकी प्रतिध्वनि उनके जीवनकाल में ही सुनायी पड़ने लगी थी। वह 70 के दशक के बाद भारत के राजनीतिक - सामाजिक परिवर्तन के रूप में उभर कर सामने आया।
           पर इसका अर्थ यह नहीं कि हम योग्यता, प्रवीणता, ज्ञान-विज्ञान, रोज़गार एवं उद्योग तथा संस्थागत विकास में आरक्षण की बात करें। योग्य, कुशल, प्रवीण एवं ज्ञानी को पर्याप्त अवसर मिलना चाहिए। हम ज्ञान - विज्ञान और रोज़गार के क्षेत्र में योग्य बनने का सभी को अवसर प्रदान करें। शिक्षा एवं स्वास्थ्य सभी को निःशुल्क प्राप्त होना चाहिए। इसका पर्याय आरक्षण व सामाजिक स्थिति नहीं हो सकता है। योग्यता व प्रवीणता का  रोज़गार, ज्ञान - विज्ञान के क्षेत्र में वंचित होना एक सामाजिक राष्ट्रीय महापाप की कृति होगी, बल्कि इससे निकली प्रतिक्रिया की प्रतिध्वनि समाज में कटुता और वैमनस्य को जन्म देगा।
       इसप्रकार बिखराव और अपनी ही कुंठाओं में घुटता समाज राष्ट्रीय एकता के लिए महाघातक सिद्ध होगा। जो आगे चलकर समाज राष्ट्र के सामने अनेक जटिल समस्याओं को खड़ा करने में सदा तत्पर और सक्षम रहेगा।
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जीवन का चलन

रिक्शेवाले को बुलाया
वो कुछ
लंगड़ाता हुआ आया
मैंने पूछा
पैर में चोट है
कैसे चलाओगे ?
वो कहता है
बाबू जी
रिक्शा पैर से नहीं
पेट से चलता है

उठाना खुद ही पड़ता है
थका हारा बदन अपना
जब तक साँस चलती है
कोई काँधा नहीं देता

पल पल सरकता जीवन
बंजर सी भावभूमि पर
जाने कितने
आस के
बीज
बो गया....

बड़े यत्न से संभाला था
एक क़तरा सपनों का
आँखें खुली
और
वह
खो गया....

निरंतर भागती राहों में
कितनी ही स्मृतियों को
बड़ी कुशलता से
समय
धीरे धीरे
धो गया....

ये ऐसा ही चलन है
कभी दर्द उभरा
तो कभी हिय में
चुपके से
वह
सो गया....

जीवन की अभिव्यक्ति जो
बरस कर मिट गया
पर विशिष्ट
जीवन की कहानी है
बादल
बिछड़ा जो आसमान से
तो धरा का
हो गया....!!

ज़िंदगी की
भागदौड़ व कशमकश में
अक्सर बामुश्किल
मिल तो जाती है
हमें ज़िंदगी
पर ज़िंदगी को हम
चाहकर भी
कभी कभी
मिल नही पाते

मूंगफली के ढेर से
सबसे ज्यादा
खांचो वाली मोटी
मूंगफली उठाते है
फोड़ने के बाद जब
पुच्ची निकलती है
तो कितना दुख होता है
यही होता है
जीवन के साथ
जो जीवन जीने की
और जीवित होने की
एक सरल अभिव्यक्ति है
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Friday, 20 October 2017

यादें

यादों का क्या है
किसी भी पल
ज़हन के द्वार
खटखटा देती हैं
न सोचती
समझती
विचारती
न ही संकोच करती हैं
बिन बुलाए मेहमां सी
देहलीज़ पर
पग धर देती हैं

बड़ी बिगड़ैल हो गयी हैं
ये यादें
देर रात को
टहलने निकलती हैं
यादें कुछ ऐसी हैं, जैसे
कहानी की नायिका
हर अंक में चली जाती है
अन्त को एकाकी छोड़कर
अपनी विवशताओं के साथ
जहाँ नायक
दुखान्त सहानुभूति को लिखता है
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Wednesday, 18 October 2017

तन्हा जीवन

दीवाली की खुशियाँ
तो एक पक्ष है
जीवन का होना
और चलना भी
एक पक्ष है
खुद को यादों से
परहेज कर के
खुद को खुद में
जीना होता है

जब बूंदे कुछ गिरी कि
ख्याल भी भीग गये
बड़ी भीड़ हो गयी है
जमाने की नजरों में
इसलिए आजकल
अकेले ही रहना ठीक है

बहुत सँजो कर रखी चीज
वक़्त पर नहीं मिलती
जीवन को कभी तो
खुला छोड़ दे जीने के लिए
बहने दें कुछ
जख्मों के दर्द को
जब लफ्जों का
जेहन भी घुटता हो
जो महसूस होता
वो बयाँ कर दें
जब लफ्जों की
कलाबाजी न होती
जीवन का जो
एहसास होता
तब वहीं लेखनी
उठ चल पड़ती है

पानी के बुलबुलों सा है
ये जीवन सतरंगी
पर बस पल भर ही
जो एहसास जीना होता
कभी कभी वे ही
उकेरे जाते हैं
आईना लेकर
जो भी आये
बस उनका
जमीर देखेगें
सब हैं तन्हा
सभी में खालीपन
तो किस किस की
फिर पीर देखेगें

जहन में एक नाराजगी भी
पर खफा किसी से नहीं
दूर होते जाता है जो
यादों में ठहर जाता है
गुजरते जीवन में थमा हुआ
कोई क्षण जीना भी सिखाता
बहुत पसंद है महँगे तोहफे
पर अगली बार कुछ यों
जरा सा वक़्त कोई लाये

एक होकर भी
सबका बने रहना
बहुत मुश्किल है
चाँद होना
ऐ चाँद
तू भी तन्हा
खुद भी तन्हा
आ जरा गप कर लें
ईधर जीवन ठहरा हुआ है
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Saturday, 14 October 2017

भारतीय नवजागरण - राष्ट्रीय चेतना का प्रवाह

प्रत्येक समाज, क्षेत्र की अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक परिस्थितियाँ होती है। परिस्थितियाँ-घटनायें और जन सामान्य की चितवृति की पारस्परिक टकराहट से समाज में आधारभूत बदलाव आते रहते हैं। जब देश पर बाह्य, यवन-तुर्क आक्रमण हुए तब इन आक्रमणों से जन सामान्य एवं समाज की सांस्कृतिक पहचान धुँधलाने लगा। उस काल खण्ड में स्पष्ट रूप से सामाजिक चेतना की वृत्ति में ईश्वर का कहीं न कहीं स्थान किसी न किसी रूप में जैन सामान्य में व्याप्त रहा। जिसे भारतीय साहित्य में भक्तिकाल के नाम से जाना गया। इस सांस्कृतिक पहचान को भक्तिकालीन कवियों ने ज्ञानमार्ग, प्रेममार्ग और भक्ति पूरक साहित्य के माध्यम से व्यक्त किया। जो जन सामान्य की चितवृति और तत्कालीन परिवेश की टकराहट का यह सहज स्वाभाविक परिणाम था।

समाज में वैज्ञानिक तकनिकी और विकास तथा शिक्षा के फलस्वरूप अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक परम्पराओं एवं व्यवहारों की विवेक सम्मत मूल्याँकन की शुरुआत की। आज का भारतीय नवजागरण सामाजिक-राजनैतिक खायी के वैचारिक पुनर्मूल्यांकन का वैचारिक साक्ष्य है। यह सत्य है कि एक ओर सम्पन्न, सक्षम सामाजिक-राजनैतिक वर्ग सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक तीनों मोर्चों पर लड़ने के लिए समाज में झूठी विषमता, अस्पृश्यता, पिछड़ापन का खोखला, क्षद्म नारा देकर समाज और राष्ट्र को तोड़ने, विभाजित करने का कुत्सित प्रयास कर अपनी स्वार्थ सिद्धि कर रहा है। वहीं दूसरी ओर पीड़ित जन अपनी पहचान और अधिकार के लिए मानवीय मूल्यों को पुनः परिभाषित करने का कार्य कर रहा है।

महात्मा ज्योति फूले और बाबा साहब अम्बेडकर इन पीड़ित जनों का सफल नेतृत्व प्रदान किया।उन्होंने महसूस किया कि हम अपनी सांस्कृतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना को अक्षुण रखते हुए अपनी पहचान को प्राप्त करने का  सफल संघर्ष कर सकते हैं। इसलिए अपनी पहचान की लड़ाई लड़ते हुए भी भारतीय मानस व जन मानस से कभी भी विलग नहीं हुए। उन्होंने पीड़ित समाज में एक नयी ऊर्जा भारी। जो राष्ट्रीय पहचान के साथ व्यक्ति की पहचान और अधिकार को स्पष्ट दिशा दिया। भारतीय नवजागरण के सकारात्मक परिणामों एवं स्वतंत्रता पश्चात संवैधानिक तथा विधि-व्यवस्थाओं के चलते आज मानवीय-समानता, सामाजिक-समन्वय तथा सामाजिक-न्याय , राष्ट्रीय-एकता और राष्ट्रीय जनभाव की अक्षुणता की अनुगूँज सर्वत्र चहुँ दिश सुनाई देने लगी है। " एक राष्ट्र - एक जन - एक मूल्य " यह विचार फैल रहा है। जिसे महात्मा फूले व बाबा साहब अम्बेडकर ने अपनी कृति से सदा सर्वथा चरितार्थ किया। इसी के साथ सामाजिक परिस्थितियाँ भी बदल रही हैं। समता, स्वतंत्रता,बंधुत्व और न्याय जैसी मानवीय मूल्यों का बोध समाज के अंदर एक क्रांति के रूप में, वर्तमान के युगधर्म के रूप में दिखायी पड़ रहा है। फलस्वरूप राष्ट्र - समाज - व्यक्ति के जीवन में एक क्रांतिकारी परिवर्तन की धारा चल पड़ी है।
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Friday, 13 October 2017

Sagar Putra Yatra Minutes

Minutes of Sagar Putra Yatra
Palaverkadu(Chennai) to Kochi
13th Oct to 28th Oct 17

13.10.2017
Innagural Function of the Sagar Putra Yatra with participation of National and State Leaders
Start from Palaverkadu at 9AM (border of Andrapradesh and Tamilnadu)
Ernavur  small meeting
Lunch halt at Kasimedu and meeting
Night halt at Kottivakkam
14.10.2017
Starting 9Am at Kottivakkam
Meeting at Kovalam 12 Noon
Lunch at Kattukuppam
Meeting at  Kalpakkam
Night halt at Paramakeni – Meeting with  Central and State Leaders
15.10.2017
Paramankeni starting 9AM
Lunch and meeting Ekkiyarkuppam
8PM Anumanthakuppam
Reception at Kalapattu 5PM
Meeting night halt Nadukuppam
16.10.2017
Start at 9AM- Solainagar - Meeting with  Central and State Leaders
Veerampattinam meeting 10.30AM
11.30AM Devanampattinam
Lunch at Singarathoppu at MGR Thittu
Meeting at Chidambaram, night halt
17.10.2017
Starting at 10AM MGR Thittu
Lunch Palaiyar
Night halt at Karaikal- Meeting with State Leaders.
18.10.2017
Starting 9AM
Lunch at Kameshwaram
Night halt Vellappallam
19.10.2017
Starting 9AM
Vellappalam (Thanjai District)
Lunch Mallipattinam
Halt Jagathapatnam (Pudukottai District)
20.10.2017
Starting 9AM
Lunch Thondi
Night halt Rameshwaram- Meeting with Central and State Leaders
21.10.2017
Starting Rameshwaram 9AM
Visit Dhanuskodi, Lunch Yervadi
Night Halt Sayalkudi
22.10.2017
Start at 9AM from Sayalkudi
Lunch at Thoothukudi& Meeting
Night halt Tiruchendur
23.10.2017
9AM Start to Kanyakumari
Lunch at Kanyakumari
6 to 8 meeting - Meeting with Central and State Leaders
24.10.2017
9AM leaving Kanyakumari
Meeting at Kulachak
Lunch at Thiruvallam
Night halt Trivandram- Meeting with Central and State Leaders
25.10.2017
Leaving from Trivandram after lunch
Visit fishing villages
Reach Kollam and night halt
26.10.2017
Leaving Kollam

Vallikavu –visit to Amma’s Ashram and Dharshan
Visit Fishing villages and Kayankulam night Halt
27.10.2017
Leave Kayankulam  after break fast.
Visit fishing villages and Pallana Kumaranasan Memorial  Lunch
 Alapuzha night halt
28.10.2017
Alapuzha  - Leave by 11am to Kochi. Lunch on the way.
2.00 pm -Valedictory Function – Reception and Felicitation to the Yatris - Ma Indreshkumarji Patron- FANS  along with Central and State Leaders at Kochi.


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सागरपुत्र यात्रा

FORUM FOR AWARENESS OF NATIONAL SECURITY-TAMILNADU CHAPTER
KADAL MAINDHAN PAYANAM - SAGAR PUTRA YATRA
Chennai to Kochi--
13th October to 28th October 2017

Bharat has survived the alien aggression for many centuries and retained its culture intact. In the modern times, the world has been looking with awe at the vibrant dynamic democracy. While in other South Asian countries that became free at the same time as India, democracy had been lost or threatened many times in the past 70 years. If India retained its free status despite its being so large both in terms of area and population, it is because its soul is in its cultural heritage. However, there has been a degradation of Indigenous culture over the years. The Sagar Putra Yatra will study the issues at the grass root level and aim at evaluating the causes.

The alien invasion in the past few centuries has had its impact on the indigenous culture although it has not been able to destroy it. Nevertheless, alien religions have taken root in the country. The Sagar Putra Yatra will study and evaluate the effect of such conversions on the socio-economic state of the people in the region, particularly the area under study.

Covert and overt communal domination activities have gained ground in the recent times. The impact of these activities is being felt in a pronounced manner on issues related to governance and law and order. The Sagar Putra Yatra will study and evaluate such impact on the socio – economic – politico aspects of the people in the region, particularly the area under study.

The fishermen of the Southern Coast have been undergoing untold miseries in the high seas. Their arduous life is often threatened by the vagaries of nature. In addition the accusation of crossing the ‘never visible’ maritime boundary looms large on them, despite the fact that such boundary is nebulous and  will be continuously disturbed by the ever active sea waves. Weather could also play truant to drift them beyond the boundary even if they do not want to. The Indo-Sri Lankan relations is delicately balanced on these issues among other issues. Suggestions are being made that an equitable sharing of the marine wealth of the sea among the fishermen from both the countries coupled with suitable surveillance mechanism among both Countries could bring an everlasting solution to this vexed issue. The Sagar Putra Yatra will study and evaluate the nuances of this delicate issue.

Each village or town has its own unique strength, weakness and problems. The Sagar Putra Yatra will study and evaluate such issues if any that may crop up in the personal level interactions with the masses en route the Yatra.

The States of Tamilnadu and Kerala are rich in heritage and have a hoary past. The Sagar Putra Yatra will cover historic/ archeological / ancient sites on the route in an effort to understand and visualise the rich tradition and culture that the Chola, Pandia and Chera kingdoms had at one point of time. Study how sustainable tourism promotion can be done for additional income of the coastal communities.

Apart from natural calamities manmade disasters have put immense pressure on the costal environment and marine life. The Sagar Putra Yatra will study, create awareness among the local communities and make them participate in sustainable development and Swatch Bharat Abhyan to contribute and conserve our marine bio diversity and National security.




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त्रिविध प्रदूषण

त्रिविध प्रदूषण

आज महागौरी सर्वसिद्धिदात्री
महाष्टिमी, कालरात्रि
निशा आराधना
प्रकाश की लालसा
नव ज्योतिपुंज का आविर्भाव
आज महागौरी सर्वसिद्धिदात्री
महाष्टिमी, कालरात्रि
निशा आराधना
प्रकाश की लालसा
नव ज्योतिपुंज का आविर्भाव
आनेवाली विजयादशमी
जलेगा रावण, पर
पर वातावरण का ठहराव
सामने खड़ा प्रदूषण
दैविक, दैहिक, भौतिक
बर्फ से ढ़का पहाड़
पहाड़ से ढ़का
दुख का पहाड़
संवेदनाओं के पिघलते
हिमनद, और
जीते हैं हम
पहाड़ की व्यथा
नदी पूर्णतः शान्त थी
आज यों ही कुछ
उदास थी
सोई थी पानी में
एक दर्पण सदृश
जिस पर पड़े थे
बादल के वस्त्र
आज महागौरी, सिद्धिदात्री
कालाष्टमी निशापूजा को भी
उसको जगाया नहीं
दबे पाँव लौट आया
वापस हो
शब्द मेरे
मुखर होते हैं
दबी हुई संवेदनाओं को
आकृति देने को
उसी समय एक
“मौन”
उपजता है मन में
जो मौन होता है
अंतहीन
समाधि सा
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छटपटाहट

छटपटाहट

जिंदगी में चलते चलते
हम कहाँ आगये
हर दिन
अजीब मुसीबतों संग
लड़ते लड़ते तंग आगये
अक्सर ऐसा होता है
दिमाग अशान्त होता है
दिल लाख चाहे
खुश होना फिर भी
उदासियों का ही
बसेरा होता है
उदासियाँ अकसर
मौन कर देती हैं
खुशियां चीख चीख कर
अपना अहसास करवाती हैं
व्यवस्था सम्बन्धों की
बेड़ियों में जो हम हैं
आज़ादी कुछ यों ही
छटपटाती है
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चंचल मन

चंचल मन

मन को कहाँ
सीमाओं का पता है
ये तो बस
भागने में लगा है
कभी शून्य में
शून्य हो जाता है
तो कभी ब्रह्मांड
नापने को चला है
जो प्रश्न समय लेते हैं
उभरने में
वे कई नये प्रश्न भी
खड़ा कर देते हैं
जो स्मृतियों में
शेष रह जाता है
वो भी क्या गंगा
में बह जाते हैं
वह पतझड़ ही क्या
जो बीता याद न दिलाये
वह सावन ही क्या
जो मन को भिगो न पाए
कुछ ऐसा भी है
आखिर तक कहानी का
हिस्सा न बन पाया
ऐसा पात्र ही क्या
स्वयं की कहानी में
अजनबी बन जाता है
या इतना भी अह्म
चरित्र क्या निभाया कि
उसमें से बाहर हो न सका
एक सीमा के अन्दर
मन को जो मिल गया
वह मुकाम नहीं
जो छू गया
वो चाँद नहीं
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मौन का होना

मौन का होना

एक ही जीवन में
बारम्बार मृत्यु होती है
हर एक प्रसंग की
अनेकों व्याख्या होती है
एक सुख के पीछे
सौ दुख आ जाते हैं
एक सूरज से करोड़ों
दिन रात सृजित होते हैं
एक शून्य कई अंकों की
गणना बदल देता है
एक कुविचार सौकड़ों को
भटका देता है
एक सत्य हजारों झूठ पर
भारी पड़ जाता है
एक संवाद बहुत
विवाद खड़ा कर देता
एक मन सौ अन्तर्द्वन्द की
रणभूमि बन जाता
एक निराशा अनेकों
सफलताओं की जननी होती
एक विषय की बहुल
परिभाषाएं हो जाती
जब मन की व्याख्या
परिधि से बाहर निकल
विचरण करता नभ में तो
कभी लोष्ठित हो
धरातल के नीचे
समा जाता है अतः
सबसे सार्थक संवाद
मौन ही होता है
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Thursday, 12 October 2017

विचारों की सरहद में

विचारों की सरहद में

कोई सपना
देखने से पहले
यह कहाँ
सोचा था हमने कि
विचारों, सोच की भी
कोई सरहद
हुआ करती है
आज खाई हुई
ठोकर से
आने वाला कल
संभलने वाला है
यही सोचकर आज
हमने दिया है
हर जख्म को दिलासा
ये समय, हर घाव
भरने वाला है
घायल हैं
कुछ इस तरह
आत्मा अपनी
अब कहाँ है? हम
उस ईश तक पहुँच पायेंगे
इस दुनिया से
विदा होकर
जाने कहाँ ? जायेंगे


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