रिक्शेवाले को बुलाया
वो कुछ
लंगड़ाता हुआ आया
मैंने पूछा
पैर में चोट है
कैसे चलाओगे ?
वो कहता है
बाबू जी
रिक्शा पैर से नहीं
पेट से चलता है
उठाना खुद ही पड़ता है
थका हारा बदन अपना
जब तक साँस चलती है
कोई काँधा नहीं देता
पल पल सरकता जीवन
बंजर सी भावभूमि पर
जाने कितने
आस के
बीज
बो गया....
बड़े यत्न से संभाला था
एक क़तरा सपनों का
आँखें खुली
और
वह
खो गया....
निरंतर भागती राहों में
कितनी ही स्मृतियों को
बड़ी कुशलता से
समय
धीरे धीरे
धो गया....
ये ऐसा ही चलन है
कभी दर्द उभरा
तो कभी हिय में
चुपके से
वह
सो गया....
जीवन की अभिव्यक्ति जो
बरस कर मिट गया
पर विशिष्ट
जीवन की कहानी है
बादल
बिछड़ा जो आसमान से
तो धरा का
हो गया....!!
ज़िंदगी की
भागदौड़ व कशमकश में
अक्सर बामुश्किल
मिल तो जाती है
हमें ज़िंदगी
पर ज़िंदगी को हम
चाहकर भी
कभी कभी
मिल नही पाते
मूंगफली के ढेर से
सबसे ज्यादा
खांचो वाली मोटी
मूंगफली उठाते है
फोड़ने के बाद जब
पुच्ची निकलती है
तो कितना दुख होता है
यही होता है
जीवन के साथ
जो जीवन जीने की
और जीवित होने की
एक सरल अभिव्यक्ति है
वो कुछ
लंगड़ाता हुआ आया
मैंने पूछा
पैर में चोट है
कैसे चलाओगे ?
वो कहता है
बाबू जी
रिक्शा पैर से नहीं
पेट से चलता है
उठाना खुद ही पड़ता है
थका हारा बदन अपना
जब तक साँस चलती है
कोई काँधा नहीं देता
पल पल सरकता जीवन
बंजर सी भावभूमि पर
जाने कितने
आस के
बीज
बो गया....
बड़े यत्न से संभाला था
एक क़तरा सपनों का
आँखें खुली
और
वह
खो गया....
निरंतर भागती राहों में
कितनी ही स्मृतियों को
बड़ी कुशलता से
समय
धीरे धीरे
धो गया....
ये ऐसा ही चलन है
कभी दर्द उभरा
तो कभी हिय में
चुपके से
वह
सो गया....
जीवन की अभिव्यक्ति जो
बरस कर मिट गया
पर विशिष्ट
जीवन की कहानी है
बादल
बिछड़ा जो आसमान से
तो धरा का
हो गया....!!
ज़िंदगी की
भागदौड़ व कशमकश में
अक्सर बामुश्किल
मिल तो जाती है
हमें ज़िंदगी
पर ज़िंदगी को हम
चाहकर भी
कभी कभी
मिल नही पाते
मूंगफली के ढेर से
सबसे ज्यादा
खांचो वाली मोटी
मूंगफली उठाते है
फोड़ने के बाद जब
पुच्ची निकलती है
तो कितना दुख होता है
यही होता है
जीवन के साथ
जो जीवन जीने की
और जीवित होने की
एक सरल अभिव्यक्ति है
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